देश के वो 3 प्रोटेम स्पीकर जो बने लोकसभा के अध्यक्ष, क्या भर्तृहरि महताब दोहरा पाएंगे इतिहास?
New Delhi: सोमवार 24 जून को सांसदों के शपथ ग्रहण के बाद अगर भर्तृहरि महताब को बीजेपी अपने लोकसभा अध्यक्ष के प्रत्याशी के तौर पर उतार दे तो चौंकिएगा नहीं।
देश में 18वीं लोकसभा का चुनाव हो चुका है और प्रधानमंत्री मोदी लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री के रुप में नई सरकार की कमान भी संभाल चुके हैं। लेकिन अभी तक नवनिर्वाचित सांसदों ने अपने पद की शपथ नहीं ली है। ऐसे में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने ओडिशा के कटक से सांसद भर्तृहरि महताब को प्रोटेम स्पीकर नियुक्त कर दिया है। बता दें कि भर्तृहरि लगातार 7 बार के सासंद हैं। उनका काम प्रधानमंत्री मोदी समेत देश के सभी 543 सांसदों को सांसद पद का शपथ दिलाना और स्पीकर का चुनाव कराना होगा। लेकिन क्या आप जानते हैं कि देश में 3 मौके ऐसे भी आए, जब प्रोटेम स्पीकर रहे शख्स ही लोकसभा के अध्यक्ष चुने गए लेकिन उससे पहले जान लीजिए कैसे चुने जाते हैं प्रोटेम स्पीकर…
कैसे चुने जाते हैं प्रोटेम स्पीकर? संसदीय मामलों के जानकार बताते है कि प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ति राष्ट्रपति करती है। उनका चयन वरीयता के आधार पर होता है। यह वरीयता 2 आधार पर तय की जाती है। पहला आधार होता है कि अगर कोई सांसद लगातार सबसे ज्यादा बार जीत कर आए हैं, तो उन्हें प्रथम वरीयता दी जाती है। दूसरी वरीयता सबसे वरिष्ठ सांसदों को दी जाती है। इनमें लोकसभा और राज्यसभा दोनों के कार्यकाल शामिल होता हैं।
ये 3 प्रोटेम स्पीकर लोकसभा के अध्यक्ष सोमवार 24 जून को सांसदों के शपथ ग्रहण के बाद अगर भर्तृहरि महताब को बीजेपी अपने लोकसभा अध्यक्ष के प्रत्याशी के तौर पर उतार दे तो चौंकिएगा नहीं, क्योंकि देश में इससे पहले तीन बार ऐसे मौके आए है जब प्रोटेम स्पीकर ही लोकसभा के अध्यक्ष बने हैं। इनमें सबसे पहला नाम देश के पहले लोकसभा अध्यक्ष गणेश वासुदेव मावलंकर दूसरा नाम हुकुम सिंह और तीसरा नाम यूपीए वन की सरकार के दौरान लोकसभा के अध्यक्ष रहे सोमनाथ चटर्जी का है।
प्रोटेम स्पीकर से स्पीकर बने थे मावलंकर हम जब इतिहास के पन्नों को पलटते है तो पाते है कि प्रोटेम से स्पीकर बनने वाले पहले नेता थे गणेश वासुदेव मावलंकर थे। 1952 में देश में पहला आम चुनाव कराया गया। इसमें कांग्रेस पार्टी को पूर्ण बहुमत मिली। सांसदों को शपथ दिलाने के लिए प्रोटेम स्पीकर का चुनाव किया गया। उस वक्त जीवी मावलंकर को यह जिम्मेदारी सौंपी गई। स्पीकर चुनाव की जब बारी आई, तो कांग्रेस ने मावलंकर के नाम का ही प्रस्ताव रखा। इस तरह मावलंकर देश के पहले लोकसभा अध्यक्ष बन गए। मावलंकर उस वक्त अहमदाबाद लोकसभा सीट से सांसद थे। मावलंकर इसके बाद 1956 तक लोकसभा के अध्यक्ष रहे।
सरदार हुकुम सिंह भी बने प्रोटेम से स्पीकर 1956 में जब मावलंकर का निधन हो गया तो कुछ समय के लिए प्रोटेम स्पीकर बनाकर सदन चलाने की जिम्मेदारी हुकुम सिंह को दी गई। पंजाब के कद्दावर नेता रहे सिंह इसके बाद साल 1957 में लोकसभा के डिप्टी स्पीकर बनाए गए। 1962 में कांग्रेस ने उनका नाम लोकसभा स्पीकर के लिए प्रस्तावित कियाय़ सिंह इस पद पर साल 1967 तक रहे। लोकसभा अध्यक्ष पद से हटने के बाद हुकुम सिंह ने सक्रिय राजनीति छोड़ दी। राष्ट्रपति ने बाद में उन्हें राजस्थान का राज्यपाल बना दिया।
सोमनाथ चटर्जी का नाम कांग्रेस ने किया था प्रस्तावित 2004 में सोनिया गांधी के नेतृत्व में यूपीए ने एनडीए को पटखनी दे दी। उस वक्त यूपीए में सीपीएम दूसरी सबसे बड़ी पार्टी थी। हालांकि, उसने सरकार में शामिल होने से इनकार कर दिया था। इसके बाद कांग्रेस ने सीपीएम को स्पीकर का पद ऑफर कर दिया. स्पीकर चुनाव से पहले जब प्रोटेम स्पीकर बनाने की बारी आई तो लोकसभा सचिवालय ने सोमनाथ चटर्जी के नाम का ऐलान किया। सभी सांसदों को शपथ दिलाने के बाद कांग्रेस ने सोमनाथ चटर्जी के नाम का ही स्पीकर पद के लिए प्रस्ताव कर दिया। कांग्रेस के इस प्रस्ताव का सभी दलों ने समर्थन कर दिया, जिसके बाद चटर्जी स्पीकर चुन लिए गए। सोमनाथ चटर्जी जब लोकसभा के स्पीकर बने, उस वक्त वे पश्चिम बंगाल के बोलपुर से सांसद थे।
भृर्तहरि का नाम आगे कर सकती है BJP ओडिशा के कटक से सातवीं बार सांसद बने महताब को बीजेपी लोकसाभा का नया स्पीकर बना सकती है। इसके पीछे कारण बताया जा रहा है कि बीजेपी की सरकार में महाराष्ट्र, आंध्र, राजस्थान और मध्य प्रदेश से ही लोकसभा के अध्यक्ष बनाए गए हैं। ऐसे में पार्टी के विस्तार की नीति के तहत पार्टी इस बार ओडिशा से किसी को अध्यक्ष बना सकती है। ओडिशा में बीजेपी को लोकसभा की 21 में से 20 सीटों पर जीत मिली है।
भृर्तहरि महताब 1998 से लगातार सांसद बनते हुए आ रहे हैं। संसदीय कार्य के दौरान महताब की छवि साफ-सुथरी रही है. उन्हें 2018 में बेस्ट सांसद का भी अवार्ड मिला था। राजनीतिक करियर में भी उन पर कोई बड़ा आरोप नहीं है। यह तथ्य भी उनके पक्ष में है।
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