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मनुस्मृति पढ़ें, लड़कियां 17 साल की उम्र में देती थी बच्चे को जन्म, गुजरात हाईकोर्ट ने क्यों कही ये बात, जानें मामला

Gujarat Hight court on Fetus Termination: एक नाबालिक बलात्कार पीड़िता के 7 महीने से अधिक के भ्रूण को हटाने की मांग वाली याचिका पर गुजरात हाई कोर्ट ने सुनवाई की। जिसमें गुजरात हाईकोर्ट ने मनुस्मृति का हवाला देते हुए कहा पहले 17 की उम्र में बच्चे को जन्म देना सामान्य था।

Jun 09, 2023 / 07:14 am

Paritosh Shahi

मनुस्मृति पढ़ें, पहले 17 साल से पहले बच्चे को जन्म देना सामान्य था- गुजरात हाइकोर्ट

मनुस्मृति पढ़ें, पहले 17 साल से पहले बच्चे को जन्म देना सामान्य था- गुजरात हाइकोर्ट

Gujarat Hight court on Fetus Termination: गुजरात हाई कोर्ट की जस्टिस समीर जे. दवे की खंडपीठ ने एक नाबालिक बलात्कार पीड़िता, जिसकी उम्र महज 16 साल 11 महीने है, इसके 7 महीने से अधिक के भ्रूण को हटाने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई की। सुनवाई के दौरान गुजरात हाईकोर्ट ने कहा, पहले 14-15 साल की उम्र में लड़कियों की शादी हो जाना सामान्य था और इसी वजह से 17 साल की होने से पहले ही वो पहले बच्चे को जन्म दे देती थी। अभी हम 21वीं सदी में जी रहे हैं, अपनी मां या परदादी से पूछिएगा तो पता चलेगा की उस समय 14-15 शादी करने के लिए अधिकतम उम्र थी। बच्चा 17 साल की उम्र से पहले ही जन्म ले लेता था। लड़कियां लड़कों से पहले मैच्योर हो जाती हैं। इन सारी बातों की जानकारी के लिए एक बार मनुस्मृति जरूर पढ़ें। आपको इस बारे में पता चल जाएगा। हालांकि बाद में कोर्ट ने यह भी कहा कि उन्होंने अपने चैंबर में डॉक्टरों से सलाह ली है और पूछा है कि क्या इस मामले में गर्भावस्था को समाप्त किया जा सकता है, क्योंकि भ्रूण 7 महीने से अधिक का है।


पीड़िता की मानसिक स्थिति जांच करने के आदेश

मामले के गंभीरता और मौजूदा परिस्थितियों पर विचार करते हुए, सिविल अस्पताल, राजकोट के चिकित्सा अधीक्षक को तत्काल सिविल अस्पताल के डॉक्टरों के पैनल के माध्यम से नाबालिग लड़की की चिकित्सा जांच कराने का निर्देश दिया गया।

कोर्ट ने डॉक्टरों के पैनल को बलात्कार पीड़िता का ऑसिफिकेशन टेस्ट कराने और उसकी मानसिक स्थिति का पता लगाने के लिए सिविल अस्पताल के मनोचिकित्सक से जांच कराने का भी निर्देश दिया। इस आदेश के बाद कोर्ट ने कहा- जो निर्देश दिए गए हैं, वो सारे टेस्ट करने के बाद, इसकी रिपोर्ट तैयार की जाएगी,इसके बाद उस रिपोर्ट का अध्ययन किया जायेगा और सुनवाई की अगली तारीख भी उसके हिसाब से तय की जाएगी।

अदालत असमंजस की स्थिति में

अदालत इस मामले में निर्णय लेने में काफी उलझी हुई दिख रही है। इसने चिकित्सा अधीक्षक, सिविल अस्पताल, राजकोट को डॉक्टरों के पैनल को इससे सम्बंधित राय देने को कहा है जिसमें गर्भावस्था के चिकित्सकीय समापन की प्रक्रिया को करने की सलाह दी जाती है।

सुनवाई के दौरान, जब नाबालिग लड़की के पिता सिकंदर सैयद की ओर से पेश वकील ने जल्द सुनवाई का अनुरोध किया, क्योंकि डिलीवरी की संभावित तारीख 16 अगस्त थी, तो अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया कि अगर भ्रूण और दुष्कर्म पीड़िता की स्थिति अच्छी है। अगर दोनों सामान्य हैं, तो अदालत के लिए भ्रूण (समाप्ति के लिए) आदेश पारित करना बहुत मुश्किल होगा।

अदालत ने कहा- अगर मां या भ्रूण में कोई गंभीर बीमारी है, तो न्यायालय निश्चित रूप से इस फैसले पर विचार कर सकता है। अंत में कोर्ट ने वकील से यह भी कहा की बच्चे को गोद लेने के विकल्पों पर भी ध्यान दीजिए । अदालत चाहे इस केस पर जो फैसला दे, लेकिन उसे मानवीय आधार पर उसे पीड़िता के दुख को, उसके साथ हुए अन्याय को ध्यान में रखते हुए ही कोई फैसला लेना चाहिए।

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