पीड़िता की मानसिक स्थिति जांच करने के आदेश
मामले के गंभीरता और मौजूदा परिस्थितियों पर विचार करते हुए, सिविल अस्पताल, राजकोट के चिकित्सा अधीक्षक को तत्काल सिविल अस्पताल के डॉक्टरों के पैनल के माध्यम से नाबालिग लड़की की चिकित्सा जांच कराने का निर्देश दिया गया।
कोर्ट ने डॉक्टरों के पैनल को बलात्कार पीड़िता का ऑसिफिकेशन टेस्ट कराने और उसकी मानसिक स्थिति का पता लगाने के लिए सिविल अस्पताल के मनोचिकित्सक से जांच कराने का भी निर्देश दिया। इस आदेश के बाद कोर्ट ने कहा- जो निर्देश दिए गए हैं, वो सारे टेस्ट करने के बाद, इसकी रिपोर्ट तैयार की जाएगी,इसके बाद उस रिपोर्ट का अध्ययन किया जायेगा और सुनवाई की अगली तारीख भी उसके हिसाब से तय की जाएगी।
अदालत असमंजस की स्थिति में
अदालत इस मामले में निर्णय लेने में काफी उलझी हुई दिख रही है। इसने चिकित्सा अधीक्षक, सिविल अस्पताल, राजकोट को डॉक्टरों के पैनल को इससे सम्बंधित राय देने को कहा है जिसमें गर्भावस्था के चिकित्सकीय समापन की प्रक्रिया को करने की सलाह दी जाती है।
सुनवाई के दौरान, जब नाबालिग लड़की के पिता सिकंदर सैयद की ओर से पेश वकील ने जल्द सुनवाई का अनुरोध किया, क्योंकि डिलीवरी की संभावित तारीख 16 अगस्त थी, तो अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया कि अगर भ्रूण और दुष्कर्म पीड़िता की स्थिति अच्छी है। अगर दोनों सामान्य हैं, तो अदालत के लिए भ्रूण (समाप्ति के लिए) आदेश पारित करना बहुत मुश्किल होगा।
अदालत ने कहा- अगर मां या भ्रूण में कोई गंभीर बीमारी है, तो न्यायालय निश्चित रूप से इस फैसले पर विचार कर सकता है। अंत में कोर्ट ने वकील से यह भी कहा की बच्चे को गोद लेने के विकल्पों पर भी ध्यान दीजिए । अदालत चाहे इस केस पर जो फैसला दे, लेकिन उसे मानवीय आधार पर उसे पीड़िता के दुख को, उसके साथ हुए अन्याय को ध्यान में रखते हुए ही कोई फैसला लेना चाहिए।