भगवान की मूर्ति उगलती थी सोना
नरसिंहपुर जिले के सिंहपुर (बड़ा) गांव के लक्ष्मीनारायण मंदिर में विराजमान भगवान लक्ष्मीनारायण की अद्भुत मूर्ति से सालों पहले सोना बरसता था। रोजाना मूर्ति के पास सोने की हल्की सी परत जमी मिलती थी। मंदिर के पुजारी जुगल किशोर स्वामी ने बताया कि नौ पीढ़ियों से उनका परिवार मंदिर की सेवा में लगा हुआ है। नरसिंहपुर जिले के बरहटा ग्राम जो कि प्राचीन काल में विराट नगर के नाम से जाना जाता था वहां एक चरवाहे को सबसे पहले मूर्ति मिली थी। मूर्ति जमीन में उल्टी थी और चरवाहा मूर्ति के पिछले हिस्से पर अपनी कुल्हाड़ी को घिसकर पैना किया करता था। चरवाहे को मूर्ति के पास ही सोने की बारीक परतें मिलती थीं। एक बार जब एक साहूकार को चरवाहे ने सोना दिया तो उसे चरवाहे पर शक हुआ। साहूकार ने नगर के राजा को इस बात की जानकारी दी तो राजा ने चरवाहे को बुलाकर पूछा तो उसने पत्थर के पास सोने की परत मिलने की बात कही थी। तब इस मूर्ति का पता चला था। ऐसी भी कहा जाता है कि ये मूर्ति द्वापर युग की है। यह भी पढ़ें
लक्ष्मी जी का ऐसा मंदिर जहां नहीं है मूर्ति, दीप जलाने लगती है भक्तों की कतार..
1680 में हुआ मंदिर का निर्माण
पुजारी जुगल किशोर के मुताबिक बरहटा (विराट नगर) में मूर्ति के मिलने के बाद जब स्थानीय लोगों ने उसे उठाने का प्रयास किया तो मूर्ति नहीं उठी। जिसके बाद सिंहपुर में रहने वाले उनके पूर्वज को बुलाया। जिन्होंने पूजन पाठ कर जब मूर्ति को उठाया तो मूर्ति आसानी से उठ गई। मूर्ति को लेकर दिलहरी के राजा अपने दिलहरी स्थित महल ले जा रहे थे। रात होने पर मूर्ति को सिंहपुर में रखा गया पर भगवान की लीला कहें या फिर कुछ और दूसरे दिन फिर मूर्ति सिंहपुर से नहीं उठी। जिसके बाद दिलहरी के राजा ने सिंहपुर में ही लक्ष्मीनारायण के मंदिर का निर्माण कराया। यह भी पढ़ें