नरसिंहपुर

राम मंदिर को लेकर शंक्राचार्य का बड़ा बयान, इस तरह दिखेगा अद्भुत और विशाल

राम मंदिर निर्माण को लेकर शंक्राचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने सुझाव देते हुए कहा कि, इस मंदिर को कंबोडिया के अंकोरवाट मंदिर की तर्ज पर बनना चाहिए।

नरसिंहपुरNov 13, 2019 / 06:25 pm

Faiz

राम मंदिर को लेकर शंक्राचार्य का बड़ा बयान, इस तरह दिखेगा अद्भुत और विशाल

नरसिंहपुर/ सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अयोध्या में बनने वाले राम मंदिर के निर्माण को लेकर देश के प्रमुख शंकराचार्यों में से एक स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने बड़ सुझाव दिया है। उन्होंने कहा कि, अयोध्या में बनने वाले राम मंदिर का निर्माण कंबोडिया के अंकोरवाट मंदिर की तर्ज पर होना चाहिए। उन्होंने बताया कि, 11वीं शताब्दी में वहां चालुक्य नरेशों का राज था, जिन्होंने वहां एक भव्य मंदिर का निर्माण कराया था, जो सेकड़ों सालों के बाद आज भी अपनी भव्यता और सुंदरता से पूरी दुनिया को मोहित करता है। इसी तरह राम मंदिर का निर्माण भी एक ही बार होना है, इसलिए इसकी विशालता और भव्यता का ध्यान रखना बेहद जरूरी है।

 

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जिम्मेदार हाथों में जाए मंदिर निर्माण की जिम्मेदारी

नरसिंहपुर में मीडिया से बातचीत के दौरान शंकराचार्य ने अंकोरवाट मंदिर का फोटो दिखाते हुए कहा कि, इसी के साथ अयोध्या में बनने वाले राम मंदिर के निर्माण की जिम्मेदारी भी योग्य लोगों के हाथों में देना भी बेहद जरूरी है। अयोध्या की 67 एकड़ भूमि का अधिग्रहण नरसिम्हाराव की तत्कालीन केंद्र सरकार द्वारा किया गया था।

 

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शंकराचार्य ने दिया इस ट्रस्ट का सुझाव

शंकराचार्य ने दस्तावेजों का हवाला देते हुए दावा किया कि, नरसिम्हा राव ने कहा था कि, अगर धर्माचार्य इस भूमि की मांग करेंगे तो उन्हे ये अवश्य दी जाएगी। उन्होंने कहा कि, इसके लिखित प्रमाण उनके पास हैं। इसके बाद कई जगह सम्मेलन करके हमने रामानुज ट्रस्ट का गठन किया, जो अधिग्रहण के बाद बना। इसलिए मौजूदा सरकार को इस 67 एकड़ जमीन की जिम्मेदारी रामानुज ट्रस्ट को दे देनी चाहिए और उसी के सानिध्य में राम मंदिर का निर्माण कराना चाहिए।

 

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अंकोरवाट दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक स्मारक, जानिए इसकी विशेषताएं

राम मंदिर को लेकर शंक्राचार्य का बड़ा बयान, इस तरह दिखेगा अद्भुत और विशाल

भारत से करीब 5 हजार किमी दूर कंबोडियाके अंकोर में स्थित अंकोरवाट भगवान विष्णु को समर्पित दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक स्मारक माना जाता है। इसका निर्माण 11वीं शताब्दी में चालुक्य नरेशों ने करवाया था। करीब 162.6 हेक्टेयर में फैला ये भव्य मंदिर मूल रूप से खमेर साम्राज्य में भगवान विष्णु के एक हिंदू मंदिर के रूप में बनाया गया था। मीकांग नदी के किनारे सिमरिप शहर में बने इस मंदिर को आज भी दुनिया के सबसे बड़े हिंदू मंदिर का स्थान प्राप्त है। इस मंदिर को मेरु पर्वत का प्रतीक भी कहा जाता है। इसकी दीवारों पर भारतीय धर्म ग्रंथों के प्रसंगों का चित्रण बड़े ही अद्भुत ढंग से किया गया है।

 

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यहां स्थापित हैं हिन्दू और बौद्ध धर्म की मूर्तियां

मंदिर के बनने को लेकर कई मान्यताएं प्रचलित हैं। एक मान्यता ये भी है कि, स्वयं देवराज इन्द्र ने महल के तौर पर अपने बेटे के लिए इस मंदिर का निर्माण एक ही रात में करवाया था। इतिहास पर नजर डालें तो करीब 27 शासकों ने कंबोदेश पर राज किया, जिनमें से कुछ शासक हिन्दू और कुछ बौद्ध थे। शायद यही कारण है कि, कंबोडिया स्थित इस भव्य मंदिर में हिन्दू और बौद्ध धर्म से जुड़ी कई मूर्तियां देखने को मिलती हैं। मंदिर की दीवारें अपने आप में रामायण और महाभारत जैसे धर्मग्रंथों की कहानियां दर्शाती हैं।

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