अब बात करते हैं परिषद के इस फैसले के पीछे की कहानी की। दरअसल, इस निर्णय को अमलीजामा पहनाने के लिए जल कार्य एवं सीवरेज विभाग के सभापति प्रकाश जैन द्वारा दिए तीन पन्नों के दो पत्र सबसे ताकतवर साबित हुए। 8 जून 2023 को सीएमओ के नाम लिखें पत्र में जैन ने लिखा कि नपा अधिनियम में नामांतरण को लेकर किसी तरह की रोक का उल्लेख नहीं हैं। तो फिर शासन के किस गजट या सर्कुलर के आधार पर नामांतरण के प्रकरणों को रोका जा रहा है? नामांतरण प्रक्रिया महज संबंधित व्यक्ति को टैक्स वसूलने मात्र तक की व्यवस्था है। नामांतरण का दस्तावेज किसी भी तरह का मालिकाना हक का अधिकार नहीं देता हैं। इतना सबकुछ होने के बावजूद अंतत: क्यों लोगों को नामांतरण के लिए चक्कर काटना पड़ रहें हैं। इससे मप्र सरकार और नगर सरकार दोनों की छवि खराब हो रही है। जैन के इस पत्र पर अफसरों ने संज्ञान नहीं लिया तो उन्होंने 25 जुलाई 2023 को सीएमओ के नाम दोबारा रिमाइंडर पत्र लिखकर जिम्मेदारों को सजग करने की कोशिश की थी। विधि विशेषज्ञों के सलाह मशवरा किया गया। इसके बाद पीआईसी की बैठक में इन पत्रों में किए गए धाराओं के उल्लेख पर अफसरों ने स्टडी की तो उन्हें भी यह मानना पड़ा कि नामांतरण जनता का अधिकार है, जो उससे नहीं छीना जा सकता। इसीलिए…. केवल तीन पन्नों के इस पत्र ने जनता को उसका अधिकार दिलाया।
इससे फायदा यह नपा की राजस्व विभाग की सभापति बबीता रघुवंशी ने बताया कि किसी भी प्लॉट का नामांतरण होने पर वह रजिस्र्ड संपत्ति मानी जाती है। इससे निकाय टैक्स वसूली कर सकती हैं। मकान और प्लॉट के सौदे एक नंबर की संपत्ति में दर्शाने के लिए भी नामांतरण का अहम रोल हैं। इसके जरिएं ही लोन, नल कनेक्शन आदि दिए जाते हैं। नागदा औद्योगिक क्षेत्र होने से यहां बड़ा मजदूर वर्ग हैं। इसलिए ज्यादातर प्लॉटधारक लोन लेकर ही मकान बनाते हैं। नामांतरण नहीं होने का खामियाजा गरीब व मध्यमवर्गीय लोगों को भुगतना पड़ रहा था। नपाध्यक्ष संतोष ओपी गेहलोत ने कहा- जनता की सुविधा को दृष्टिगत रखते हुए निकाय का यह फैसला मील का पत्थर साबित होगा।