कुचेरा (नागौर). सत्संग में जीवन बदलने की शक्ति है। यहां बैठने के बाद व्यक्ति के बुरे कर्मों का नाश होकर सद्कर्मों का विकास होता है। यह विचार करुणामूर्ति धाम भादवासी आश्रम में चातुर्मासीय भागवत कथा के समापन अवसर पर रविवार को संत संत नेमीराम महाराज ने व्यक्त किए गए।
इस अवसर पर संत ने गुरुवाणी का पाठ करते हुए राम नाम की आराधना के साथ अच्छे कर्म करने का आह्वान किया। संत ने कहा कि मनुष्य को अपने जीवन में क्रोध, लोभ, मोह, हिंसा, संग्रह आदि का त्याग कर विवेक के साथ श्रेष्ठ कर्म करने चाहिए। भगवान के नाम मात्र से ही व्यक्ति भवसागर से पार उतर जाता है।
संत हेतमराम ने कहा कि जब आपके घर में कोई मिलने आता है तो उनका पहनावा न देखें, बल्कि आपके प्रति उनके मन का भाव देखें। कृष्ण ने सुदामा के जीर्णशीर्ण कपड़े, नंगे पैर को नहीं देखा और प्रिय मित्र के भाव को एहसास किया। मित्रता करनी हो तो सुदामा और कृष्ण जैसी, वरना मित्रता करें ही नहीं। जो दुख में काम आये, वही सच्चा मित्र होता है। संत ने कहा कि रिश्तों को प्रगाढ़ता दें और अपना स्वार्थ त्याग कर परिवार के सुख दुख में साथ रहें, मित्रता को आगे बढ़ाएं। कथा के दौरान अरे द्वारपालों कन्हैया से कह दो … बता मेरे यार सुदामा रे भाई घणा दिना सु आयो… आदि भजनों पर भक्तों ने जमकर नृत्य किया। संत ने कहा कि मनुष्य को जन्म व मृत्यु के बंधन से मुक्त कराने के लिए भक्ति मार्ग से जुड़कर सत्कर्म करना चाहिए।