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नागौर

बलिदान की माटी लेकर जवान पहुंचे शहीद के घर

हरियाणा के ये जवान वहीं हैं तैनात, शहीद के परिजन भी ऐसा सम्मान पाकर सुबक पड़े

नागौरJul 25, 2024 / 09:39 pm

Sandeep Pandey

शहादत का सम्मान

शहीद मंगेज सिंह के घर आए जवान

नागौर. शहादत कभी नहीं भूली जा सकती है। सैकड़ों किलोमीटर दूर करीब 25 साल पहले जहां शहादत दी गई, वहीं की मिट्टी लेकर जब कोई शहीद के घर पहुंचे तो वतन पर मिटने वालों का मोल पहचाना जा सकता है। वो तो तब जब मिट्टी के साथ हमेशा याद रखने वाला स्मृति चिन्ह भी वो दे जाएं जिन्हें कोई घर वाला जानता तक नहीं हो।
करीब एक पखवाड़ा पहले दस जुलाई को शहीद सूबेदार मंगेज सिंह के घर पहुंचे सेना के कुछ जवानों ने शहादत का सम्मान किया, वहीं वीरांगना के साथ उनके परिवार का भी हाल-चाल जाना। ये जवान अभी वहीं तैनात हैं जहां मंगेज सिंह ने दुश्मनों पर जीत हासिल कर जान गंवाई थी। वहां की मिट्टी साथ में थी, जवानों ने अपने सिर से लगाकर यह मंगेज सिंह के परिजनों को दी। साथ ही कहा कि ये माटी है, इसका कर्ज जान देकर चुकाना ही हमारा फर्ज है। बिना किसी फोटो अथवा जान-पहचान के इन जवानों का व्यवहार देख शहीद के परिजन तक सुबक पड़े।गौरतलब है कि छह जून 1999 को मंगेज सिंह करगिल युद्ध में शहीद हो गया था। तकरीबन 25 साल हो गए मंगेज सिंह की शहादत को। गांव का बच्चा-बच्चा आज भी उनके शहादत दिवस पर उनको श्रद्धांजलि देने के लिए एकत्रित होते हैं। कई तो घर वालों के मुंह से मंगेज सिंह की बहादुरी के किस्से सुनते-सुनते ही बड़े हुए हैं। कमल हो या रामूराम, सावित्री हो या सीता, ऐसे अनेक नाम हैं जो मंगेज सिंह की शहादत के बाद शव नहीं मिलने पर कई दिनों तक आंसू बहाते रहे। कई बड़े-बुजुर्ग आज भी इस गांव में कहते मिल जाते हैं कि भगवान हम जैसों को ही उठा लेता, हम तो वैसे भी किस काम के हैं।मंगेज नाम रखने का चलन पड़ा
पूर्व सैनिक कल्याण अधिकारी मुकेश शर्मा हो या राजेंद्र सिंह जोधा, इनका कहना है कि उनसे मिलने वाले दर्जनों सैनिकों ने बताया कि मंगेज सिंह की शहादत के बाद पैदा होने वाले बच्चों के नाम कई परिजनों ने मंगेज ही रखे। उनका कहना था कि मंगेज जैसा बहादुर बच्चा ही परिवार और देश के काम आ सकता है। यह चलन बरसों से है, वीरता के साथ श्रेष्ठ होने वाले का नाम बाद के लोगों के लिए प्रेरणादायी हो जाता है।
सबसे छोटे थे मंगेज सिंह

हरनावा गांव के मंगेज सिंह राठौड़ का जन्म 2 अक्टूबर 1958 में हुआ था। वे तीन भाइयों में सबसे छोटे थे, 10 वी कक्षा पास करते ही संतोष कंवर से उनका विवाह हुआ। बाद में मंगेज सिंह 11 वीं राजपूताना राइफल्स बटालियन में सूबेदार पद पर तैनात हुए।
ऐसे हुई शहादत

मंगेज सिंह को 6 जून 1999 को 10 सैनिकों के साथ एक विशेष क्षेत्र में भेजा गया। मंगेज सिंह जब सैनिकों के साथ वहां पहुंचे तब हथियारों से लैस पाक सैनिक मिले। मंगेज सिंह की टूकडी पर ऑटोमेटिक हथियारों से अचानक फायरिंग हुई, जिसमें 6 सैनिक घायल हो गए और एक गोली मंगेज सिंह को भी लग गई। जांबाज मंगेज सिंह ने बाकी बचे सैनिकों को तुरंत घायल सैनिकों को संभालने तथा वहां से ले जाने को कहा, मंगेज सिंह घायलावस्था में ही आगे बढ़े और बंकर के पीछे पाकिस्तान सैनिकों पर कई राउंड फायरिंग कर उनके 7 सैनिक ढेर कर दिए।
66 दिन बाद मिला शव, पत्नी ने छोड़ा अन्न-जल

परिजनों को मंगेज सिंह की शहादत की सूचना मिली पर सैनिकों को उनका शव नहीं मिला। शहीद का शव युद्ध स्थल के बर्फीले इलाकों में सर्च आपरेशन के बाद भी शव नहीं मिला, उधर परिजन घर पर शव के इंतजार में बैठे थे । इस दौरान शहीद की वीरांगना सन्तोष कंवर ने कहा जब तक पति का मुंह नहीं देखूगी तब तक अन्न जल ग्रहण नहीं करूंगी और उपवास पर बैठ गई। उच्च स्तर बैठक में सेना अध्यक्ष ने शव ढूंढने के लिए मंगेज आपरेशन चलाया। करीब 66 दिन तक चले सर्च आपरेशन के बाद 5 अगस्त 1999 को शहीद का शव मिला। उधर, पति का शव नहीं मिले पर वीरांगना सन्तोष कंवर को तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोसिंह शेखावत व विदेश मंत्री वसुंधरा राजे ने खुद परबतसर के हरनावां आकर जूस पीलाकर अनशन तुडवाया। वीरांगना ने पानी ही पीया पर शव के बाद ही उपवास तोड़ा। खास बात यह है कि जिस क्षेत्र में युद्ध हुआ वो आज भारत के कब्जे में है। उसे क्षेत्र को मंगेज सिंह हरनावा के नाम से जाना जाता है । मंगेज सिंह के तीन पुत्र हैं।

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