नागौर. राजधानी जयपुर में गैस टैंकर में हुए ब्लास्ट में आग लगने की लापवाही की तपन नागौर तक पहुंची है। आग पर काबू पाने के इंतजाम लचर होने या इसकी वजह समेत अन्य बातें हमेशा हादसे के बाद ही सामने आती है। समय रहते ना सड़क की बनावट की सुध ली जाती है ना ही गलत कट को बंद किया जाता है। अतिक्रमण से लेकर सरेराह बिक रहे पटाखे की दुकान पर अग्निशमन यंत्र लगा है या नहीं, इसे देखने की भी आवश्यकता नहीं समझी जाती। आग लगने की संभावित आशंका व वजह की मॉनिटरिंग करने वाले जिम्मेदार यहां अब तक नहीं जागे हैं। अकेले नागौर में ही करीब चालीस ऐसे रोड कट हैं जो हादसे का सबब बन जाते हैं।
सूत्रों के अनुसार जयपुर में हुए इस भयावह हादसे के बाद भी नागौर की सार-संभाल नहीं की जा रही है। आग शॉर्ट सर्किट से भी लग सकती है तो सरेराह ठण्ड बचाने के लिए जलाई गई लकडिय़ों से भी। खुली बोतल में दिए जा रहे पेट्रोल की बात हो या फिर सड़क पर पड़े गैस सिलेण्डर या फिर बिजली के लटकते/झूलते तार। जरा सी असावधानी से आग कभी भीस कहीं भी आग लग सकती है। बावजूद इसके इन कारणों व असवाधानी को नहीं देखा जा रहा।
सूत्र बताते हैं कि बीकानेर रोड हो या जोधपुर बायपास या फिर अन्य मार्ग, यहां तक कि नागौर शहर की सड़कों पर गलत कट काफी हैं। मॉनिटरिंग का अभाव कहें या मिलीभगत, डिवाइडर तक तोड़कर गलत कट के ढेरों उदाहरण हैं। इनसे हादसे बढ़ ही रहे हैं, असावधानी के कारण यह कभी भी बड़ा रूप ले सकते हैं। शहर और हाइवे पर चल रहे होटल/ढाबों के अलावा अन्य रेस्टारेंट/पेट्रोल पम्प से लेकर गैस गोदाम ही नहीं अन्य ऐसे छोटी-बड़ी दुकान पर आग से बचने के इंतजाम हैं या नहीं, आग लगे तो बुझेगी कैसे, इसके भी इंतजाम से सब अनजान हैं।
एमसीएच विंग: हादसे के बाद भी अनजान जयपुर ही नहीं कुछ समय पहले उत्तर प्रदेश के झांसी स्थित मेडिकल कॉलेज के शिशु वार्ड में आग से कई बच्चों की मौत हो गई थी। तब भी मुद्दा यह उठा कि नागौर के पुराना अस्पताल स्थित एमसीएच विंग में क्या हालात हैं। ज्यादा पुरानी बात नहीं करीब पांच महीने पहले भी एमसीएच विंग के एमसीएच विंग के एसएनसीयू (नवजात शिशु गहन चिकित्सा केन्द्र) में धुआं उठा और उपकरण भी जले । वो तो समय रहते नवजात को वहां से हटा दिया गया वरना आधा दर्जन नवजात की जिंदगी पर बन आती। नागौर के पुराना अस्पताल में करीब छह माह पूर्व एमसीएच विंग शिफ्ट हुई। यहां अब भी फायर फाइटिंग सिस्टम नहीं लग पाया है। आग से संबंधित किसी भी हादसे से निपटने के लिए अग्निशमन सिलेण्डर का ही भरोसा है।
अभी तक प्रस्ताव ही नहीं बना रोजाना बीस-पच्चीस प्रसव हो रहे हैं, इसके अलावा गर्भवती महिलाएं ही नहीं अन्य बच्चे भी यहां भर्ती रहते हैं। बावजूद इसके फायर फाटिंग सिस्टम नहीं लगा ताकि ठीक तरीके से आग पर काबू पा सके। जेएलएन अस्पताल स्थित एमसीएच विंग में यह पूरा सिस्टम था, जिसमें पानी से लेकर पाइप समेत अन्य सभी इंतजाम थे। पुराना अस्पताल में शिफ्ट एमसीएच विंग में लोकल टंकी/सिलेण्डर और पाइप समेत अन्य इंतजाम काफी लचर हैं। खास बात यह है कि यहां इसके लिए अभी तक प्रस्ताव ही तैयार नहीं हो पाया।
…उठा था धुआं, जल गए थे उपकरण पुराना अस्पताल स्थित एमसीएच विंग में सितम्बरगीके शुरुआत में एसएनसीयू में अचानक धुआं उठने लगा और कुछ उपकरण फुंक गए। वार्ड में भगदड़ मच गई और छह-सात नवजात को अन्यत्र ले जाया गया। इसके पीछे शॉर्ट सर्किट था या अन्य कोई वजह, इसकी जानकारी भी आधिकारिक तौर पर बाद तक नहीं मिल पाई। यह हादसा बड़ा रूप ले सकता था। कुछ डॉक्टरों ने तो यहां तक कहा कि वायरिंग समेत उपकरण को लगाने में कुछ खामी रह गई, इसके कारण ऐसा हुआ।
ऐसे हादसों की ना हो पुनरावृत्ति, इंतजाम कड़े हों नागौर के लोगों का कहना है कि जरा-जरा सी खामियां कभी भी बड़ा हादसा बन सकती हैं। पार्षद धर्मेन्द्र पंवार का कहना है कि गलत कट से बढ़ती दुर्घटना ही नहीं अतिक्रमण के अलावा साफ-सफाई का ध्यान रखना परिषद की जिम्मेदारी है। सभी संबंधित विभागों को अपने हिस्से का काम ईमानदारी से करना चाहिए। व्यापारी राधेश्याम कहते हैं कि समय रहते ही तमाम खामियां दूर होनी चाहिएं। अनकट/गलत कट कैसे रह जाते हैं, संबंधित विभाग अथवा जिम्मेदारों को रोकना चाहिए। दुर्गादेवी, रहीसा बानो, श्यामा समेत अन्य गृहिणी भी कहती हैं कि जयपुर ही नहीं कहीं भी आग हो या सड़क दुर्घटना, इसे बढ़ाने वाले कारणों को खोजा जाना चाहिए। उधर, इस संबंध में जेएलएन अस्पताल के पीएमओ डॉ आरके अग्रवाल को फोन किया पर उनसे सम्पर्क नहीं हो पाया।
इनका कहना गलत तरीके से रोड काटने का सर्वे होगा, जहां-जहां से भी इसे तोड़कर रास्ते बनाए गए हैं, उसे बंद किया जाएगा। नागौर नगर परिषद के पास दो बड़ी व दो छोटी दमकल गाडिय़ा हैं। यहां पूरा इंतजाम है। आवश्यकता पडऩे पर मूण्डवा समेत अन्य जगह से दमकल मंगवाई जाती हैं।
-रामरतन चौधरी, आयुक्त, नगर परिषद, नागौर।