नागौर. सोना-चांदी के जेवरात अब घर में सुरक्षित नहीं हैं। चोरी की बढ़ती वारदातों पर अंकुश लगाने में पुलिस सफल नहीं हो पा रही है। चोरों को पकड़ पाने के तमाम पुलिसिया करतब फेल हैं। इसके बावजूद लोग जेवरात को घर पर ही रखने को सर्वाधिक सुरक्षित मानते हैं। जेवरात के लिए बार-बार बैंक जाने की मुश्किल से बचना हो या फिर तमाम औपचारिकताओं के झंझट से मुक्ति पाने की चाहत, फिर भी बैंक लॉकर इस्तेमाल करने से अधिकांश दूर ही रहते हैं।
सूत्रों के अनुसार नागौर (डीडवाना-कुचामन) जिले की स्थिति कमोबेश यही है। जहां अन्य शहरों में लॉकर का उपयोग कर जेवर सुरक्षित करने को प्राथमिकता दी जा रही है, वहीं नागौर में अभी तक इसे लेकर खासी उत्सुकता या जागरूकता नहीं है। आलम यह है कि शहरी इलाकों में मौजूद अधिकांश बैंकों के लॉकर खाली हैं। चोरी की वारदात में लाखों के जेवरात चले जाने के बाद लोगों को अफसोस हो रहा है, लॉकर नहीं लेने का। ऐसे कई पीडि़त अब दूसरों को लॉकर लेने की सलाह दे रहे हैं।यह सबको मालूम है असल में चोर/नकबजन सोने-चांदी के जेवरात के लिए ही सेंध लगाते हैं।
घरों में नकदी रखने का चलन अब पूरी तरह खत्म हो गया है। डिजिटल बैंकिंग के बाद तो यह लगभग पूरी समाप्त हो गया। लाख-पचास हजार से अधिक की नकदी कहीं मिलती भी नहीं है। ऐसे में पांच-दस तोला सोना मिलते ही चोर-नकबजन अपने मिशन में कामयाब हो जाते हैं। चोर/नकबजन जहां भी हाथ मारते हैं उन्हें दस-बीस तोला सोने के जेवरात आसानी से मिल जाते हैं। ऐसे कई लोग हैं जिनके यहां पहले भी चोरी हुई पर अपनी सम्पत्ति को सुरक्षित रखने के कोई एहतियातन कदम नहीं उठाए।
आखिर चोर पकड़ में क्यों नहीं आते… चोरी/नकबजनी की वारदात खोलना पुलिस के लिए मुश्किल सा काम हो गया। वारदात के बाद सीसीटीवी फुटेज खंगालने के बाद मिली लाइन पर पुलिस कितना काम करती है, यह तो पता नहीं पर गिने-चुने शातिर ही पुलिस की पकड़ में आ पाते हैं। चोरी/नकबजनी का आलम यह है कि नागौर (डीडवाना-कुचामन) जिले में रोजाना तीन-चार बड़ी वारदात हो रही है। बाइक चोरी का आलम यह है कि कई बार दिनभर में चार-पांच वाहन चोरी हो जाते हैं। एक अनुमान के मुताबिक रिकॉर्ड देखें तो पुलिस बमुश्किल चोरी/नकबजनी की चालीस फीसदी वारदात ही खोल पाती है। वाहन चोरी में यह भी माना जाता है कि पीडि़त क्लेम उठा लेता है पर घरों में लाखों की चोरी का क्लेम कौन दे?
फिर भी लॉकर से परहेज क्यों… चोरी गए माल की वापसी की उम्मीद असल में पीडि़त छोड़ ही देते हैं। सोना-चांदी के जेवरात के लिए लॉकर क्यों नहीं लेते, इस पर लोगों से हुई बात में कई जानकारियां सामने आईं। कविता, भंवरी, हेमलता का कहना था कि बैंक में लॉकर तो ले लें पर गहने की समय-समय पर जरुरत पड़ती रहती है। इसके लिए बार-बार कौन बैंक जाए। कृष्णा का कहना था कि असल में अधिकांश बैंक की औपचारिकता ही नहीं, लगने वाले किराए समेत अन्य झंझटों से बचने के लिए घर पर ही रखते हैं। अब पांच-सात तोला सोना भी नहीं बच पाए तो करें क्या? शिक्षिका चंदा मीना का कहना है कि थोड़ी जागरूकता की कमी के कारण भी लोग लॉकर लेने से बचते हैं।
सीसीटीवी कैमरे या शो-पीस चोरी/नकबजनी की वारदात खोलने के लिए पुलिस के लिए सबसे अहम माने जाने वाले सीसीटीवी कैमरे के हालात भी अधिकांश जगह ठीक नहीं मिलते। बंद मिलते हैं या फिर खराब। सीसीटीवी कैमरे लगाए ही इसलिए जाते हैं कि वारदात करने वाले को पहचाना जाए, बताया जाता है कि अधिकांश तो तकनीकी कमी के कारण बंद सीसीटीवी फुटेज को चालू कराने में ही देर कर देते हैं।
मानसिकता बदलनी होगी… नॉमिनल कार्रवाई/किराए पर लॉकर सहजता से मिलता है। जेवरात निकालने के साथ कुछ भी जमा कराने में कोई दिक्कत नहीं है। महज बीस-पच्चीस हजार की एफडीआर और 2360 रुपए लॉकर का सालाना किराया है। सम्पत्ति को सुरक्षित रखने के लिए लोग लॉकर ले रहे हैं। जागरूकता की कमी कहें या पुरानी मानसिकता के चलते कुछ लोग अभी इससे बचते हैं। कुछ लोगों को डर रहता है कि इनकम टैक्स वालों की जद में ना आ जाएं।
–आशीष मित्तल, ब्रांच मैनेजर, एसबीआई, डीडवाना रोड, नागौर। अलग से भी बीमा… घर का इंश्योरेंस होता है, किसी आपदा के लिए। सोने-चांदी के लिए अलग से प्रपोजल बनाकर कम्पनी को भेजा जाता है। वैसे लॉकर की सुविधा अच्छी है, कम चार्ज में, जब चाहें आप निकलवाओ और यूज कर फिर उसमें रख दो। अब चोरी/नकबजनी से बचने के लिए लोगों को कोई ना कोई रास्ता तो अपनाना होगा।
रघुवर शर्मा, रिटायर मैनेजर यूनाइटेड इण्डिया इंश्योरेंस कम्पनी बेहद सुविधाजनक है लॉकर सिस्टम अधिकतर सूने मकान को चोर/नकबजन निशाना बना लेते हैं। पुलिस अपने स्तर पर अधिकांश वारदात में शामिल चोर/नकबजनों को गिरफ्तार करती है। यह सही है कि अधिक सोना/चांदी घर में रखना उतना सुरक्षित नहीं है जितना लॉकर में। नॉमिनल चार्ज में पूरी तरह सुरक्षित, जब चाहो तब काम में लेकर वापस लॉकर में जमा कर दो।
-नारायण टोगस, एसपी, नागौर।