नागौर

प्रदेश में प्रजनन नीति की उड़ रही धज्जियां, खराब हो रही पशुओं की नस्ल

विश्व पशु कल्याण दिवस पर विशेष : नस्ल खराब होने से भैंसे जा रही बुचडख़ाने में और गायें जा रही गोशालाओं में, सरकार उदासीन

नागौरOct 05, 2024 / 12:00 pm

shyam choudhary

नागौर. प्रदेश में गाय एवं भैंस प्रजनन नीति-2014-15 की खुलेआम धज्जियां उड़ रही हैं। राजस्थान सरकार के पशुपालन विभाग ने जिस उद्देश्य से प्रजनन नीति को लागू किया, धरातल पर अकुशल कृत्रिम गर्भाधन कर्ता उसकी बैंड बजा रहे हैं। चिंता की बात यह है कि कृत्रिम गर्भाधान करने वाले निजी लोगों पर न तो विभाग का कोई नियंत्रण है और न ही मॉनिटरिंग, ऐसे में दुकानों पर बिक रहा ‘सीमनस्ट्रा’ कहां से आ रहा है और कौनसी नस्ल का है, इस पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा। परिणामस्वरूप गोवंश की नस्ल तो बिगड़ ही रही है, साथ ही गायों में प्रजनन संबंधी बीमारियां भी हो रही हैं, जिससे पशुपालकों को आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ रहा है। यह कारण है कि खराब गायें गोशाला में जा रही हैं और भैंसे बुचडख़ानों में।
नागौर की बात करें तो जिले में करीब 150 पशु धन सहायक (एलएसए) और करीब 50 पशु चिकित्सक हैं, जो कृत्रिम गर्भाधान का काम कर रहे हैं, जिनको सरकारी स्तर सीमन उपलब्ध करवाया जाता है और यह प्रजनन नीति के तहत हो रहा है। वहीं दूसरी तरफ निजी स्तर पर करीब 400 से अधिक व्यक्ति कृत्रिम गर्भाधान का कार्य कर रहे हैं, जिनके पास सीमन कहां से आ रहा है, इसका न तो सरकार या विभाग के पास कोई रिकार्ड है और न ही कोई मानिटरिंग, ऐसे में वो मनमर्जी से कृत्रिम गर्भाधान कर रहे हैं। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार यह सीमन गुजरात या अन्य राज्यों से आ रहा है, जो यहां के पशुओं की नस्ल बिगाडऩे का काम कर रहा है। यही स्थिति पूरे प्रदेश की है। विभागीय अधिकारियों का कहना है कि सरकारी स्तर पर जहां सालभर में करीब एक लाख पशुओं का कृत्रिम गर्भाधान किया जा रहा है, वहां निजी स्तर पर ढाई से तीन लाख पशुओं का कृत्रिम गर्भाधान किया जा रहा है और इसका पशुपालन विभाग के पास कोई रिकॉर्ड नहीं है।
फेक्ट फाइल

वर्ष 2019 की पशुगणना

राजस्थान में कुल गोवंश – 13.9 मिलियन – देश में छठा स्थान

राजस्थान में कुल भैंस वंश – 13.7 मिलियन – देश में दूसरा स्थान
विशेष

भारत में वर्ष 2012 की तुलना में 2019 में संकर / विदेश नस्ल का गोवंश 26.9 प्रतिशत बढकऱ 39.73 मिलियन से 50.42 मिलियन हो गया। वहीं दूसरी तरफ स्वदेशी/अनिर्दिष्ट गोवंश की संख्या 6 प्रतिशत घट गई। यानी 2012 में जहां 151.17 मिलियन थी, वहां 2019 में घटकर 142.11 मिलियन रह गई।
यह है प्रजनन नीति के नियम

– सरकारी प्रजनन नीति-2014-15 के अनुसार कोई भी एजेंसी या एनजीओ कृत्रिम गर्भाधान केन्द्र चलाता है तो उसे पशुपालन विभाग से अनुमति लेनी आवश्यक होगी। साथ ही भारतीय पशु चिकित्सा परिषद अधिनियम के तहत जो भी कृत्रिम गर्भाधान कर्ता है, वो अधिनियम के नियमों की अवहेलना नहीं करेगा।
पहले भुगत चुके परिणाम, इसलिए बदली प्रजनन नीति

प्रजनन नीति-2014-15 में सरकार ने माना कि राज्य में गायों और भैंसों की उत्पादकता बढ़ाने की व्यापक गुंजाइश है, जिसे वैज्ञानिक प्रजनन और स्थानीय किसानों की भौगोलिक-जलवायु स्थितियों और ज़रूरतों के अनुकूल नीति के ज़रिए ही हासिल किया जा सकता है। विदेशी रक्त के साथ क्रॉस ब्रीडिंग के अनुभवों से पता चला कि राज्य में अत्यधिक भू-जलवायु भिन्नता इस तरह के क्रॉस ब्रीडिंग के लिए अनुकूल नहीं थी और वांछित परिणाम भी प्राप्त नहीं हुए। इसलिए अब व्यापक रूप से चयनात्मक प्रजनन और उन्नयन के माध्यम से देशी नस्लों के संरक्षण और सुधार पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है और विदेशी रक्त के साथ क्रॉस ब्रीडिंग को प्रतिबंधित किया गया। इसके स्थान पर नीति में स्वदेशी नस्लों के भीतर चयनात्मक प्रजनन के माध्यम से प्राथमिकता के आधार पर स्वदेशी जर्मप्लाज्म को उन्नत करने की परिकल्पना की गई, जबकि गैर-वर्णित मवेशियों और भैंसों को उच्च उपज देने वाली स्वदेशी नस्लों के साथ उन्नत करने का निर्णय लिया गया।
नीति में यह भी निर्णय लिया गया कि गिर, हरियाणा, मालवी, राठी, कांकरेज, नागौरी, साहीवाल और थारपारकर की देशी नस्लों के मवेशियों का चयनात्मक प्रजनन उन मूल क्षेत्रों में किया जाएगा, जहां ये जानवर अपने वास्तविक स्वरूप में पाए जाते हैं। हालांकि, पशुपालकों को किसी विशेष क्षेत्र के मूल निवासी नहीं होने वाली विशिष्ट देशी नस्ल के झुंडों को रखने के लिए विशेष अनुमति इस शर्त पर दी जा सकती कि उनके झुंड में सभी नरों का अनिवार्य रूप से बधियाकरण किया जाएगा, जिनका चयनात्मक प्रजनन के लिए उपयोग नहीं किया जाना है।
न तो बधियाकरण हो रहा, न कंट्रोलिंग

सरकार ने अवर्गीकृत नर बछड़ों के बधियाकरण को लेकर दिए जाने वाले प्रोत्साहन को बंद कर दिया, जिसके चलते अब बधियाकरण का कार्य लगभग बंद हो गया है। ऐसे में गायों में प्रजनन संबंधी बीमारियां भी हो रही हैं। दूसरी तरफ दुकानों पर सीमन स्ट्रा बिक रहा है। कोई भी खरीद कर कृत्रिम गर्भाधान कर रहा है, आठवीं व दसवीं पास अकुशल व्यक्ति भी इस काम में लगे हैं। इससे किसानों व पशुपालकों को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है।
– शौकत खान, सेवानिवृत्त वरिष्ठ पशु चिकित्सा अधिकारी

हमारा कोई नियंत्रण नहीं

निजी स्तर पर कृत्रिम गर्भाधान का काम करने वाले लोगों पर पशुपालन विभाग का कोई नियंत्रण नहीं है। हमारा प्रयास रहता है कि कम से कम उनसे आंकड़े तो लें, लेकिन कंट्रोलिंग पॉवर हमारे पास कुछ नहीं है।
– डॉ. महेश कुमार मीणा, संयुक्त निदेशक, पशुपालन विभाग, नागौर

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