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दम तोड़ दिया पर हौसला नहीं छोड़ा, वीरता सबकी जुबान पर

ग्राम कठौती के करगिल शहीद मूलाराम बिडियासर : पाक जवानों ने धोखे से पकड़ लिया, यातनाएं भी मिलीं पर कुछ नहीं बोले

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नागौर

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Suresh Vyas

Jul 26, 2019

Jayal Kargil News

Jayal News

जायल. देश पर जान कुर्बान करने का जज्बा आखिर जीत ही गया। तमाम मुश्किलें उसे कमजोर नहीं बन सकी। हौसला टूटा नहीं और जीने के मायने में सिर्फ अपना कर्तव्य ही याद रह गया। आखिरकार शहीद हुए मूलाराम बिडियासर ने विरासत में छोड़ दी बहुत सी यादें, जो नई पीढ़ी के जीने की दिशा बदल सकती है। तमाम परेशानियों में जी रहे शहीद के माता जेठादेवी व पिता रूगनाथराम भी गर्व से कहते हैं कि लाल ने जो भी किया, उसके सामने बड़ी से बड़ी दिक्कत भी हमारे लिए कुछ नहीं है।
चरवाहों के वेश में आए दुश्मनों ने पकड़ा
ग्राम कठौती के मूलाराम बिडियासर करगिल युद्ध में पहले 6 जवानों के दल में शामिल थे। भारतीय थल सेना में 4 जाट रेजिमेंट में भर्ती हुए मूलाराम के नेतृत्व में 6 सदस्य दल के साथ करगिल की पहाडिय़ों पर पेट्रोलिंग करते रवाना हुए। चरवाहे के वेश में पाक जवानों ने धोखे से मूलाराम को पकड़ लिया। इसके बाद क्रूर यातनाएं देने लगे। पाक फौजों की तमाम कोशिशें भी सफल नहीं हो पाई। मूलाराम ने सामरिक गोपनियता नहीं बताई। 9 जून 1999 को शहीद हुए मूलाराम के वीरता के किस्से ही अब ग्राम कठौती की हर जुबां पर मौजूद है।
सेना में भर्ती होने की बढ़ी ललक
देश सेवा के लिए सेना में भर्ती होने के लिए युवा वर्ग में होड़ मची हुई है। गांव के लगभग 150 जने सेना में कार्यरत हैं। मूलाराम के शहीद होने के 20 वर्षों में 70 युवा सेना में भर्ती हुए है। गांव के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय का नामकरण शहीद के नाम पर हो चुका है। युवा शहीद मूलाराम के नाम पर हर साल क्रिकेट प्रतियोगिता सहित कई आयोजन कर श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं। शहीद के पिता भी प्रतिदिन बेटे की स्मृति में बने सामुदायिक भवन में रहकर सेवा कार्य में जुटे हुए हैं।
बेटे ने शहीद होकर किया नाम रोशन, लेकिन सरकारी सहायता को मोहताज हो गए माता-पिता
20 वर्ष पूर्व देश की सीमा की रक्षार्थ बेटे के शहीद होने की खबर मिलते ही बेटे को खोने के गम के साथ ही देश का नाम रोशन करने पर गर्व महसूस हुआ, आज तक बेटे की स्मृति की जिंदा रखने के लिए बुजुर्ग माता-पिता रोजाना शहीद स्मारक पहुंचकर पूजा पाठ करते हैं, लेकिन बहु ने जीना मुश्किल कर दिया। 70 वर्षीय जेठीदेवी का बोलते-बोलते गला रूंध जाता है, बोली पत्नी का हक बनता है तो क्या जन्म देने वाले माता पिता का पुत्र पर कोई अधिकार नहीं है। शहीद होने पर करोड़ों की सरकारी सहायता मिली, लेकिन वो सम्पूर्ण सुविधा लेकर बहु रामेश्वरी ने अपना ससुराल छोडकऱ दूसरे के साथ शादी रचा ली, काश वो यहां रहकर सरकारी सहायता का लाभ उठाती तो उन्हें भी फक्र होता, अपनी पोती को अपने पास रखने के लिए भी हरसंभव प्रयास किया, लेकिन उसे भी नहीं रहने दिया। 72 वर्षीय बुजुर्ग शहीद पिता रूघनाथराम बताते हैं कि शहीद के माता-पिता को पेंशन मिलने लगी, वो भी दो वर्ष से बंद कर दी। हमने अपने बेटे को खोने के साथ ही बहु की परेशानियों ने जीना ***** कर दिया है। 8 वर्ष पूर्व बहु की भी मौत हो गई, बेटे के नाम पर मिली सहायता पोती को भी नहीं मिली, कोई तीसरा ही खा रहा है। इसी का उन्हें दर्द है। क्या जन्म देने वाले माता-पिता के बारे में सरकार कोई प्रावधान नहीं कर सकती है।