गौरतलब है कि कृषि वैज्ञानिकों ने सॉयल हैल्थ कार्ड योजना के तहत मृदा के नमूनों की जांच कर मिट्टी की बीमारी एवं गुणवत्ता का पता तो लगा लिया, लेकिन योजना की खामी एवं किसानों में जागरुकता की कमी के कारण मृदा का उपचार आज भी नहीं हो रहा है। अधिकतर किसानों को कार्ड का महत्व एवं जानकारी नहीं होने के कारण उन पर धूल जम रही है। जबकि सरकार चाहे तो खेती की तस्वीर बदल सकती है। यह तभी संभव है जब गांव-गांव में किसानों को एकत्र करके उनको खेतों के स्वास्थ्य के बारे में स्पष्ट रूप से बताया जाए। केवल कार्ड बांटने का लक्ष्य पूरा करने से कागज और पैसे की बर्बादी से अधिक कुछ नहीं है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस कार्ड को सीधेतौर पर रासायनिक खाद की कम खपत और बढ़ी हुई उपज से जोडऩा होगा।
कृषि विशेषज्ञ डॉ. देविन्दर शर्मा का कहना है कि केन्द्र सरकार ने जब योजना लागू की, उस समय उर्वरकों एवं केमिकल फर्टीलाइजर के कृषि में उपयोग को कम कर जैविक खेती पर जोर देना उद्देश्य होना चाहिए था, लेकिन मृदा स्वास्थ्य कार्ड में भी यही बताया गया है कि यूरिया, डीएसपी, जिंक या फॉस्फोरस कितना उपयोग करना है। तकनीकी जानकारी नहीं होने से किसान मृदा स्वास्थ्य कार्ड को न तो महत्व समझ पाए और न ही उसका सही उपयोग कर पाए। यह समस्या राजस्थान ही नहीं पूरे देश की है।
योजना के लिए खोली थी 55 नई प्रयोगशालाएं भारत सरकार की ओर से सॉयल हैल्थ कार्ड मिशन के अन्तर्गत राजस्थान में 50,000 हैक्टेयर सिंचित भूमि एवं 1.50 लाख हैक्टेयर असिंचित भूमि के लिए एक मृदा परीक्षण प्रयोगशाला स्थापित करने के मापदण्ड निर्धारित किए थे। उसके फलस्वरूप राज्य की परिस्थितियों के मद्देनजर प्राथमिकता के आधार पर 55 नवीन प्रयोगशालाओं की स्थापना की गई थी। वर्तमान में प्रदेश में 100 से अधिक स्थाई मिट्टी परीक्षण प्रयोगशालाएं संचालित हैं।
लक्ष्य से अधिक वितरित किए कार्ड प्रधानमंत्री मोदी ने मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना का शुभारम्भ करते हुए मार्च 2019 तक प्रदेश के एक करोड़ 65 लाख से अधिक मृदा स्वास्थ्य कार्ड वितरित करने का लक्ष्य रखा, ताकि किसान को मिट्टी की गुणवत्ता का अध्ययन करके एक अच्छी फसल प्राप्त करने में सहायता मिल सके। कृषि विभाग के अधिकारियों ने पूरी मेहनत से काम करते हुए 31 मार्च 2019 तक लक्ष्य से अधिक करीब एक करोड़ 85 लाख मृदा स्वास्थ्य कार्ड बनाकर किसानों को बांट दिए।
राजस्थान – योजना के तहत वितरित मृदा स्वास्थ्य कार्ड डिविजन – प्रथम चरण – द्वितीय चरण जयपुर – 17,46,139 – 15,80,369 उदयपुर – 11,25,283 – 7,18,114 कोटा – 8,80,046 – 6,03,241
जोधपुर – 4,02,186 – 3,77,073 भरतपुर – 16,91,232 – 18,75,121 भीलवाड़ा – 7,35,631 – 6,15,087 बीकानेर – 3,31,725 – 3,11,749 गंगानगर – 5,29,601 – 5,53,990 जालोर – 6,83,716 – 6,67,766
सीकर – 9,84,206 – 9,62,378 नोट – केन्द्र सरकार की योजना के तहत मार्च 2019 तक प्रदेश में वितरित किए गए मृदा स्वास्थ्य कार्ड। किसानों हो रहे हैं जागरुक नागौर की मृदा प्रयोगशाला के कनिष्ठ वैज्ञानिक सहायक मोइनुदीन ने बताया कि जिले में योजना लागू होने के बाद किसान काफी जागरूक हुए हैं। विभाग के लक्ष्य के अनुसार कृषि पर्यवेक्षकों की ओर से मिट्टी के नमूने लाए जाते हैं, वहीं कई किसान खुद मिट्टी की जांच के लिए नमूने लेकर प्रयोगशाला पहुंचते हैं। हालांकि अभी और जागरुकता की दरकार है।
दस सालों में 12 लाख से अधिक कार्ड बनाए नागौर जिले में पिछले दस साल में साढ़े 12 लाख से अधिक मृदा स्वास्थ्य कार्ड बनाकर किसानों को वितरित किए जा चुके हैं। केन्द्र सरकार की योजना के अलावा भी हर वर्ष 20 से 25 हजार कार्ड बनाए जा रहे हैं, जिसमें कई नमूने खुद किसान लेकर आते हैं। धीरे-धीरे किसानों में मिट्टी जांच को लेकर जागरुकता आई है। नागौर जिले की मिट्टी में आयरन व सल्फर की कमी ज्यादा है।
– रणजीतसिंह, कृषि अनुसंधान अधिकारी रसायन, मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला, नागौर