केस-3 मनोहर सांसी (35) ने घर पर ही फंदे पर झूलकर आत्महत्या कर ली। कारण घर वालों को ही नहीं पता। स्पॉट लाइट न्यूज नागौर. कारण कुछ भी हो, अब परिजन आत्महत्या तक छिपाने लगे हैं। कहीं सामान्य मौत पर शक के आधार पर पोस्टमार्टम कराया जा रहा है तो कहीं इत्तला के बाद पहुंची पुलिस को कह दिया जाता है कि हार्ट अटैक से मौत हुई, अंतिम संस्कार कर दिया है। आत्महत्या भले ही अब अपराध के हिसाब से हल्की हो गई हो पर जरा-जरा सी बात पर मौत को गले लगाने वालों की संख्या भारी हो रही है। एक महीने में नागौर जिले में 27 लोगों ने जान दे दी। इनमें महिलाएं तीस फीसदी थीं।
जिन तीन केसों का हवाला दिया है वो पिछले हफ्ते में श्रीबालाजी थाना इलाके के ही हैं। इसी साल अक्टूबर माह तक 68 जनों ने आत्महत्या कर ली। कुछ मामलों में तो परिजनों ने आत्महत्या करने से ही इनकार कर दिया। तीन-चार मामलों में तो परिजन पुलिस के सामने हो गए। वे शव को पोस्टमार्टम नहीं ले जाने पर अड़ गए। यही नहीं एक मामले में तो मृतक के परिजन पुलिस से ही इस बात को लेकर भिड़ गए कि मौत हार्ट अटैक से हुई थी, उसे आत्महत्या क्यों मानी जा रही है?
असल में आत्महत्या वाले घरों में बदनाम हो जाने का डर पसर जाता है। कई मामलों में तो ऐसा भी हुआ कि अंतिम यात्रा निकालने की तैयारी पर पुलिस पहुंची। गिने-चुने मामलों में ऐसा भी हुआ कि पोस्टमार्टम के बाद मामला सामान्य मौत का निकला। पिछले दिनों शहर की एक कॉलोनी में एक जने की मौत हो गई, वो एक महिला के साथ लिव इन रिलेशन में रह रहा था। अब उसकी मौत पर संदेह जताते हुए उसके परिजनों ने पोस्टमार्टम करवाया।
अच्छी बात यह भी… आत्महत्या की वजह भले ही ढेरों है पर अब किसी परीक्षा में फेल होने या कम नम्बर आने पर अपने नागौर में आत्महत्या अब धीरे-धीरे खत्म सी हो गई। पहले दसवीं/बारहवीं बोर्ड परीक्षा के रिजल्ट आने पर ही पांच-सात आत्महत्या सामान्य मानी जाती थीं। प्रिंसिपल मनीष पारीक का कहना है कि पेरेंट्स फ्रेण्डली हो गए, स्कूल में भी प्रेशर कम कर दिया। पहले बोर्ड परीक्षा का ही खौफ था। अब काफी बदलाव आ गया है, पढ़ाई के तौर-तरीकों से लेकर भी बच्चा पहले से अच्छी स्थिति में रहता है।
इसलिए कर रहे हैं आत्महत्या… पुलिस अफसरों से बातचीत में सामने आया कि इन दिनों आर्थिक तंगी/कर्जे की अधिकता के साथ घरेलू मनमुटाव/क्लेश के चलते आत्महत्या ज्यादा हो रही हैं। कुछ मामलों में प्रेम प्रसंग पर विवाद या फिर दहेज प्रताडऩा का कारण भी सामने आया। अचरज की बात यह कि केवल दस फीसदी मामलों में सुसाइड नोट मिलने की बात सामने आई। एक पुलिस अधिकारी का कहना था कि दो मामले तो ऐसे आए जिनमें परिजनों ने बिना सूचना के अंतिम संस्कार तक करवा दिया। उनका कहना था कि कई मामलों में ऐसा ही होता है, आसपास की सूचना पर पहुंची पुलिस को घर वाले तक सामान्य मौत बता देते हैं।
इनका कहना… अर्थिक तंगी-बीमारी हो या अन्य कोई कारण। परिवार के लोगों को ऐसे सदस्य पर पूरा ध्यान देना चाहिए। अवसाद अथवा तनाव से ग्रसित व्यक्ति को परिवार के सभी लोग सपोर्ट/सहयोग करें, उसका उपचार कराएं। अधिकांश सुसाइड मामलों में देखा गया है कि जब व्यक्ति पूरी तरह अलग-थलग पड़ जाता है तब ही ऐसा कदम उठाता है। आत्महत्या करने वाला किसी भी उम्र का हो सकता है। परिवार वाले बदनामी की वजह से यह बताने से बचते हैं।
-डॉ शंकरलाल, मनोचिकित्सक, नागौर…. स्टूडेंट तो बढ़ती प्रतिस्पद्र्धा के चलते तनाव में आकर ऐसा करते हैं। यह बड़े शहरों में अधिक है। नागौर-डीडवाना में आर्थिक तंगी, अवसाद समेत कुछ वजह से ही आत्महत्या ज्यादा होती है।
-डॉ प्रियंका, मनोचिकित्सक, डीडवाना