जानिए, कब कौनसा चुनाव लड़ा और क्या परिणाम रहा – 1992 में राजस्थान कॉलेज से अध्यक्ष का पहला चुनाव हारे। – 1993 में राजस्थान कॉलेज से अध्यक्ष बने। – 1995 में लॉ कॉलेज जयपुर के अध्यक्ष बने।
– 1996 में राजस्थान विश्वविद्यालय के अध्यक्ष पद का चुनाव हारे। – 1997 में राजस्थान यूनिवर्सिटी के छात्रसंघ अध्यक्ष का चुनाव निर्दलीय लड़ा और जीता। – 1998 में पिता रामदेव बेनीवाल की मृत्यु होने पर भाजपा ने मूण्डवा विधानसभा से टिकट दिया, लेकिन सिम्बल समय पर नहीं देने के कारण नामांकन खारिज हो गया।
– 2003 में भाजपा ने टिकट नहीं दिया तो इनेलो से मूण्डवा से चुनाव लड़ा और दूसरे स्थान पर रहे। – 2005 में जिला परिषद सदस्य का चुनाव जीता। – 2008 में भाजपा के टिकट से खींवसर विधानसभा से चुनाव लड़ा और पहली बार विधायक बने। कुछ समय बाद भाजपा से निष्कासित कर दिए गए।
– 2013 में खींवसर से निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीते। – 2014 में नागौर लोकसभा से निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ा, हार गए। – 2018 के विधानसभा चुनाव से एक महीने पहले खुद की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी बनाई और खींवसर से जीतने के बाद पार्टी से कुल तीन विधायक जीताने में कामयाब रहे।
– 2019 में भाजपा के साथ गठबंधन किया और लोकसभा चुनाव जीतकर सांसद बने। – 2023 में खींवसर से आरएलपी से चुनाव लड़ा और जीते। – 2024 में कांग्रेस से गठबंधन किया और नागौर लोकसभा से दूसरी बार सांसद बने।
हनुमान बेनीवाल की खासियत यह है कि उन्होंने कोई भी चुनाव लगातार दो बार नहीं हारा। कॉलेज में पहली बार हारे तो दूसरी बार जीत गए। विश्वविद्यालय में पहले हारे, लेकिन दूसरी बार जीत गए। विधानसभा में भी 2003 में हारे, लेकिन 2008 में जीत गए। इसी प्रकार 2014 में लोकसभा का चुनाव हारे, लेकिन 2019 में जीत गए। यानी बेनीवाल ने हार से सबक लिया और दुगुनी मेहनत की, साथ ही यह भी पता लगाया कि जीत कैसे हो सकती है। हार के कारणों को तलाशा, उन्हें दूर करने का प्रयास किया।
हुंकार रैलियों से बढ़ा कद बेनीवाल ने 2013 के विधानसभा चुनाव के बाद नागौर, बाड़मेर, बीकानेर, सीकर व जयपुर में पांच किसान हुंकार महा रैलियों का सफलतापूर्वक आयोजन किया, जिसके बाद उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई।