लोकल फ़ॉर वोकल का दिखा असर
शहर के रामकुमार, मुदित, संजय, रमाशंकर, भूपेन्द आदि का कहना है कि इस बार दीपावली मिट्टी के दिए ही खरीदेंगे, इससे पुरानी परंपरा भी कायम रहेगी और दिए बनाने वाले कुम्भकार समाज के लोगों को भी दीपावली पर रोजगार मिलेगा। सोशल मीडिया पर लगातार लोकल फ़ॉर वोकल स्लोगन के बाद लोग भी जागरूक हो रहे है और लोकल दुकानदारों से ही सामान खरीद रहे है।
शहर के रामकुमार, मुदित, संजय, रमाशंकर, भूपेन्द आदि का कहना है कि इस बार दीपावली मिट्टी के दिए ही खरीदेंगे, इससे पुरानी परंपरा भी कायम रहेगी और दिए बनाने वाले कुम्भकार समाज के लोगों को भी दीपावली पर रोजगार मिलेगा। सोशल मीडिया पर लगातार लोकल फ़ॉर वोकल स्लोगन के बाद लोग भी जागरूक हो रहे है और लोकल दुकानदारों से ही सामान खरीद रहे है।
बढ़ गई मिट्टी के दिए कि डिमांड
मिट्टी के दीए की डिमांड बढऩे से इस पेशे में लगे कुम्हार की धीमी पड़ी चाक ने गति पकडऩा शुरू कर दिया है, मिट्टी के दीए की डिमांड बढऩे के साथ ही निर्माण भी युद्ध स्तर पर शुरू हो गया है, ताकि दीपावली तक ज्यादा से ज्यादा स्टॉक रखा जा सके। प्रजापति ने बताया की अलग-अलग डिज़ाइन और रंग बिरंगे दिए भी बनाए जा रहे है, मिट्टी के दीपक में तेल डाल कर जलाना काफी शुभ माना जाता है, वहीं दीए का प्रयोग छठ के मौके पर भी होता है।
मिट्टी के दीए की डिमांड बढऩे से इस पेशे में लगे कुम्हार की धीमी पड़ी चाक ने गति पकडऩा शुरू कर दिया है, मिट्टी के दीए की डिमांड बढऩे के साथ ही निर्माण भी युद्ध स्तर पर शुरू हो गया है, ताकि दीपावली तक ज्यादा से ज्यादा स्टॉक रखा जा सके। प्रजापति ने बताया की अलग-अलग डिज़ाइन और रंग बिरंगे दिए भी बनाए जा रहे है, मिट्टी के दीपक में तेल डाल कर जलाना काफी शुभ माना जाता है, वहीं दीए का प्रयोग छठ के मौके पर भी होता है।
डिमांड बढऩे से दाम में भी हुई वृद्धि
शहर में गांधी चौक बाजार एवं चैनार व गोगेलॉव सहित अन्य जगह कुम्भकार समाज के लोग दुकान लगाकर मिट्टी के दिए, झालर, तोरण, बंदनवार सामान बेच रहे है। दुकानदारो ने बताया कि इस बार डिमांड बढऩे से दीये के दाम में भी वृद्धि हुई है। पहले दीये 50 रुपए में 100 पीस मिलते थे। लेकिन, डिमांड बढऩे से इस वर्ष 80 से 100 रुपए में 100 दीये मिल रहे हैं। अलग-अलग आकार के दीये की अलग-अलग कीमत हैं, अब आकर्षक और डिजाइनर दीये भी बाजार में उपलब्ध हैं।
शहर में गांधी चौक बाजार एवं चैनार व गोगेलॉव सहित अन्य जगह कुम्भकार समाज के लोग दुकान लगाकर मिट्टी के दिए, झालर, तोरण, बंदनवार सामान बेच रहे है। दुकानदारो ने बताया कि इस बार डिमांड बढऩे से दीये के दाम में भी वृद्धि हुई है। पहले दीये 50 रुपए में 100 पीस मिलते थे। लेकिन, डिमांड बढऩे से इस वर्ष 80 से 100 रुपए में 100 दीये मिल रहे हैं। अलग-अलग आकार के दीये की अलग-अलग कीमत हैं, अब आकर्षक और डिजाइनर दीये भी बाजार में उपलब्ध हैं।
मिट्टी के दिए जलाने का धार्मिक महत्व
मिट्टी के दीये का काफी धार्मिक महत्त्व है, पूजा पाठ से लेकर हर जगह मिट्टी के दीए जलाये जाते हैं। इसका आध्यात्मिक महत्व भी है, मान्यता है कि दीए से निकलने वाली रंग बिरंगी रोशनी लोगों के जीवन में खुशियां का प्रतीक है। दीए जलाने से बरसात के बाद उत्पन्न कीड़े मकोड़े इसमें जल जाते हैं। वहीं, इसका आर्थिक फायदा भी है इस धंधे से जुड़े लोगों को भी रोजगार मिल जाता है।
डिमांड तो बढ़ी, अब युवा पीढ़ी दिलचस्पी नहीं ले रही
दयाराम प्रजापत कहते हैं कि मिट्टी के दीयों की पूछ होने के साथ ही मिट्टी के कुल्हड़ भी अब खासी मात्रा में बिकने लगे हैं। पहले की तरह अब मंदी की स्थिति नहीं रहती है। बाजार में अब मिट्टी से निर्मित उत्पाद भी अन्य उत्पादों की तर्ज पर अपनी जगह बनाने लगे हैं। इसके बाद भी युवा पीढ़ी अब इस परंपरागत कार्यों में दिलचस्पी नहीं ले रही। चंद रुपए की नौकरी से बेहतर पैसा इस कारोबार में हैं। बशर्ते हुनर में सुधार के साथ बदले हुए समय के अनुरूप मिट्टी उत्पाद तैयार होंगे तो निश्चित रूप से इनकी महत्ता बढ़ेगी। अब लोग भी पहले से ज्यादा इसको लेकर जागरुक भी होने लगे हैं।
मिट्टी के दीये का काफी धार्मिक महत्त्व है, पूजा पाठ से लेकर हर जगह मिट्टी के दीए जलाये जाते हैं। इसका आध्यात्मिक महत्व भी है, मान्यता है कि दीए से निकलने वाली रंग बिरंगी रोशनी लोगों के जीवन में खुशियां का प्रतीक है। दीए जलाने से बरसात के बाद उत्पन्न कीड़े मकोड़े इसमें जल जाते हैं। वहीं, इसका आर्थिक फायदा भी है इस धंधे से जुड़े लोगों को भी रोजगार मिल जाता है।
डिमांड तो बढ़ी, अब युवा पीढ़ी दिलचस्पी नहीं ले रही
दयाराम प्रजापत कहते हैं कि मिट्टी के दीयों की पूछ होने के साथ ही मिट्टी के कुल्हड़ भी अब खासी मात्रा में बिकने लगे हैं। पहले की तरह अब मंदी की स्थिति नहीं रहती है। बाजार में अब मिट्टी से निर्मित उत्पाद भी अन्य उत्पादों की तर्ज पर अपनी जगह बनाने लगे हैं। इसके बाद भी युवा पीढ़ी अब इस परंपरागत कार्यों में दिलचस्पी नहीं ले रही। चंद रुपए की नौकरी से बेहतर पैसा इस कारोबार में हैं। बशर्ते हुनर में सुधार के साथ बदले हुए समय के अनुरूप मिट्टी उत्पाद तैयार होंगे तो निश्चित रूप से इनकी महत्ता बढ़ेगी। अब लोग भी पहले से ज्यादा इसको लेकर जागरुक भी होने लगे हैं।