नागौर

Nagaur patrika…डिजाइनदार मिट्टी निर्मित बरतन बनाने के रूप में ख्यात चेनार की पहचान पर संकट

-चेनार के डिजाइनदार बरतन बरतनों में कप, थर्मस से लेकर घरेलू बर्तनों की पूरी शृंखला तैयार करने वाले कुम्भकार छोड़ रहे यह पुश्तैनी धंधा-ग्राम चेनार के 100 परिवारों में महज 30 परिवार ही इससे जुड़े, लेकिन दूसरी पीढ़ी का एक भी कुम्भकार नहीं जुड़ा है इस कला से अब-सरकार कुम्भकारों के लिए अलग से बनाए […]

नागौरDec 18, 2024 / 10:23 pm

Sharad Shukla

-चेनार के डिजाइनदार बरतन बरतनों में कप, थर्मस से लेकर घरेलू बर्तनों की पूरी शृंखला तैयार करने वाले कुम्भकार छोड़ रहे यह पुश्तैनी धंधा
-ग्राम चेनार के 100 परिवारों में महज 30 परिवार ही इससे जुड़े, लेकिन दूसरी पीढ़ी का एक भी कुम्भकार नहीं जुड़ा है इस कला से अब
-सरकार कुम्भकारों के लिए अलग से बनाए बाजार, और विशेष योजना बनाकर कुम्भकारों तक पहुंचाए तो ही बनेगी बात, नहीं तो खत्म हो जाएगा चेनार से लुप्त हो जाएगी कुम्भकारी की कला
नागौर.
मिट्टी के डिजाइनदार बरतन बनाने की कला में निपुण व ख्यात कुम्भकारों के ग्राम चेनार की पहचान पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। सरकारी प्रोत्साहन के अभाव में अब कुम्भकारों का इस कला से मोह भंग होने लगा है। कारण कि बरतन बनाने की कला से जुड़े तो हैं, लेकिन कारोबारी हालत यह है कि एक माह में बमुश्किल 10-12 हजार रुपए ही आय हो पाती है। अब इससे न तो घर का खर्च चल पाता है, और न ही अपने परिवार को इतने कम पैसे में व्यवस्थित कर पा रहे हैं। बरतन बनाने के लिए अच्छी मिट्टी तक नहीं मिल पा रही है। स्थिति यह है कि इस काम में लगी पीढ़ी अब बुजुर्गों की श्रेणी में आ चुकी है, और नई पीढ़ी न तो इसमें दिलचस्पी रखती है, और न ही बुजुर्गों की पीढ़ी इसके लिए इनको प्रोत्साहित कर रही है। कारण कुम्भकारों का मानना है कि ज्यादा मेहनत, लागत भी अधिक, मगर मुनाफा औसत से भी कमतर…ऐसे जब तक सांस चल रही है तो यह काम चल रहा है, नहीं तो फिर इसके बाद इसे उनके परिवारों में कोई नहीं बनाएगा।
कुम्भकारों के 100 परिवार, लेकिन इससे महज 30 जुड़े हैं
ग्राम चेनार में कुम्भकारों के कुल 100 परिवार निवास करते हैं, लेकिन मिट्टी से बरतन बनाने की कला में केवल 30 परिवार जुड़े हुए हैं। इसमें भी बुजुर्गुआ पीढ़ी ही जुड़ी है, जबकि इन्हीं 30 परिवारों के युवा दूसरे काम से जुड़े हैं। बुजुर्गुआ पीढ़ी इससे निराश है। इनका कहना है यह कुम्भकारी कला तो हमारे साथ ही चली जाएगी। आज स्थिति यह है कि घर में बच्चे तो हैं, लेकिन इनको मिट्टी के बरतन बनाना नहीं आता है। वजह यही है कि इस काम में हमें जो कष्ट की स्थिति का सामना करना पड़ा, या अभी जो कर रहे हैं। हम नहीं चाहते हैं कि हमारे बच्चों को मेहनत करने के बाद भी उपेक्षित रवैये के साथ ही आर्थिक तंगी की स्थिति में जीवन गुजारना पड़े।
मिट्टी तक नहीं मिल रही
चेनार के कुम्भकारों का कहना है कि आज से 70 साल पहले चेनार के खेतों में ही अच्छी मिट्टी मिल जाती थी, लेकिन अब नहीं मिलती है। चेनार के खेतों से मिट्टी मिलने का सिलसिला खत्म हुआ तो अमरपुरा से मिट्टी आने लगी थी। बाद में अमरपुरा में भी मिट्टी मिलना बंद हुई तो तो कातपुरा, चिमरानी, खरनाल एवं गोवा खुर्द गांव से मिट्टी आने लगी। अब यहां से भी मिट्टी मंगाने में कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है, तब जाकर मिल पाती है। स्थिति यह है कि बरतनों की कला को जिंदा रखने के लिए मिट्टी ही नहीं मिल रही।
प्रति टैक्टरट्राली सात हजार रुपए
कुम्भकारों का कहना है कि पहले तो मिट्टी नहीं मिलती, लेकिन बमुश्किल से यह मिलती है तो सात हजार रुपए प्रति टैक्टरट्राली की दर से इसकी कीमत चुकानी पड़ रही है। एक ट्रेक्टरट्राली में कम से कम केवल 500 बरतन ही बन पाते हैं। ऐसे में कम से कम से कम दो ट्रेक्टरट्राली मिट्टी मंगाने में ही 14 हजार की राशि का व्यय हो जाता है।
बरतनों के नहीं मिलते उचित दाम
कुम्भकारों का मानना है कि कड़ी मशक्कत के बाद भी मिट्टी मिलती है तो इसे बरतन योग्य बनाए जाने के लिए मिट्टी को अच्छी तरह से कूटने के बाद साफ करने के साथ ही कई प्रक्रिया से गुजारा जाता है। इसमें मिले हुए कंकरों को छांटकर मिट्टी को छाना जाता है। इसके बाद इसे गीला कर आटे की तर्ज पर मुलायम बनाने के लिए मिट्टी को तैयार किया जाता है। इस प्रक्रिया में तीन से चार दिन तक लग जाते हैं। कई बार मिट्टी कठोर होने पर यह समय ज्यादा भी लग जाता है। इतनी कड़ी मेहनत के बाद तैयार मिट्टी से निर्मित बरतन को भट्टी की आग में तपाया जाता है। फिर भट्टी से इसको निकालकर बेचने के लिए रखा जाता है। इतनी मेहनत के बाद भी उनकेा इन बरतनों के समुचित दाम नहीं मिल पाते हैं। मसलन मिट्टी का एक दीया उनको सिर्फ 40 पैसे की दर से बेचना पड़ता है। व्यापारी या दुकानदार खुद आकर ले जाते हैं। हालत यह है कि माह भर में बमुश्किल 10-12 हजार रुपए मिल पाते हैं। अब इतनी राशि में घर कैसे चल पााएगा। इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।
न ग्राम पंचायत की मदद, न प्रशासन की
कुम्भकारों का मानना है कि सरकार की ओर से संचालित योजनाओं में एक भी योजना का लाभ उनको आज तक नहीं मिल पाया। सरकार को चाहिए कि इस प्रकार की योजनाओं को संचालित करने वाले विभाग खुद ही कुम्भकारों के पास पहुंचकर उनको योजना की जानकारी देने के साथ इससे जोडऩे का काम करें, तभी बात बन सकती है। सरकार ने यह प्रयास नहीं किया तो फिर कुम्भकारों का कारोबार पूरी तरह से समाप्त हो जाएगा।
चेनार से सटे राजमार्गों के पास आवंटित की जाए दुकानें
कुम्भकारों की माने तो उनको चेनार से सटे राजमार्गों के पास किनारे की ओर रियायती दर पर सरकार को दुकानों का आवंटन करना चाहिए। ताकि वह अपनी दुकानें लगाकर खुद ही अपने बरतनों की बेहतर दरों पर बिक्री कर सकें। इसके साथ ही निकटवर्ती सोमणा ग्राम में सरकारी जमीन में मिट्टी खनन की अनुमति मिल जाए तो फिर मिट्टी की उपलब्धता सहजता से हो सकती है। इस संबंध में प्रयास भी किए गए, मगर सफलता अब तक नहीं मिल पाई।
रतलाम तक जाते हैं बरतन
ग्राम चेनार में निर्मित पानी की बोतल, कुण्डा, हाण्डी, परात, सजावटी दीये, कलात्मक ढक्कन, मिट्टी एवं सुराही आदि डीडवाना, , ओसियाना, खाटू, लाडनू, अऊ, डेगाना, गोगेलाव, मौलासर, लाडनू, भोपालगढ, नोखा मण्डी, रावला मण्डी एवं रतलाम आदि क्षेत्रों में बहुतायत से जाते हैं।
कुम्भकारों की जुबानी, कारोबारी पीढ़ा
यूं तो राज्य एवं केन्द्र सरकार योजनाओं का लाभ जन-जन पहुंचाने तक के दावे करती है, लेकिन आज तक एक भी योजना का लाभ हमारे तक नहीं पहुंचा है। हालांकि हमारा चेनार गांव ग्राम पंचायत में आता है, लेकिन हमारे लिए न तो पंचायत ने कुछ किया, और न ही किसी अन्य ने किया। यही वजह है कि अब कुम्भकारों का कुम्भकारी कला से मोह भंग हो चुका है। सरकार की ओर से दावा या घोषणा नहीं, बल्कि कुछ बेहतर काम हमारे उद्योग के लिए किया जाए तो फिर बात बन सकती है।
पापालाल प्रजापत, कुम्भकार, ग्राम चेनार
मेरे बाद मेरे क्या, यहां किसी के भी परिवार में कोई मिट्टी के बरतन बनाने वाला काम नहीं करेगा।कारण कि युवा पीढ़ी न तो इसमें दिलचस्पी रखती है, और न ही इसमें कोई फायदा होता है। हमारे लिए भी अलग से बाजार व दुकानें आदि की व्यवस्था सरकार को करनी चाहिए। हमें बनाने के लिए मिट्टी तक नहीं मिल पा रही है। ऐसे में नए बरतनों के लिए मिट्टी की तलाश में कड़ी मशक्कत करनी पड़ ही है।
लालाराम प्रजापत, कुम्भकार, ग्राम चेनार
कुम्भकारों के लिए अलग से बाजार की व्यवस्था सरकार को करनी चाहिए। इनके लिए योजनाओं का लाभ इन तक पहुंचाने के लिए सरकारी स्तर पर ठोस कदम उठाने होंगे। स्थिति यह है कि इन कुम्भकारों को न तो योजना की जानकारी है, और न ही यह योजनाओं का लाभ लेने के लिए शिक्षित हैं। इनको हर दिन काम करना पड़ता है। अब यह सरकारी कार्यालयों के चक्कर काटेंगे तो इनके घरों में चूल्हे ही नहीं जल पाएंगे।
लोकेश टाक, ग्राम चेनार

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