नागौर. तकरीबन डेढ़ साल में नागौर (डीडवाना-कुचामन) जिले में एक लाख से अधिक बच्चे कुपोषित के रूप में चिन्हित किए गए। इनमें गंभीर कुपोषित बच्चे करीब बीस फीसदी थे। यह आंकड़ा सिर्फ नवजात से पांच साल तक की उम्र वाले बच्चों का है। स्तनपान नहीं कराने से लेकर अशिक्षा व अज्ञानता इसके लिए बड़ी वजह है। खुशी की बात यह है कि कुपोषित बच्चों की मृत्यु दर एक फीसदी से भी कम है।सूत्रों के अनुसार तमाम जागरूकता के बावजूद कुपोषण की बीमारी पूरी तरह खत्म नहीं हुई है। आंगनबाड़ी से लेकर पीएचसी/सीएचसी समेत जिला अस्पताल की मौजूदगी और स्कूलों में मिल रहे पोषाहार के बावजूद चिन्हित कुपोषित बच्चों की संख्या अच्छी-खासी है। वो तो तब जब बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर सरकार इतनी योजनाएं चला रही है। टीकाकरण, स्वास्थ्य परीक्षण व पोषाहार के साथ अन्य देखरेख का जिम्मा अनेक विभाग संभाल रहे हैं। यहां तक कि कई एनजीओ (गैरसरकारी संस्था) तक इस क्षेत्र में सरकार के अनुदान पर कार्यरत हैं।
सूत्र बताते हैं कि मई 2023 से अक्टूबर 2024 के दौरान पांच वर्ष तक की उम्र वाले नागौर (डीडवाना-कुचामन) जिले में 88 हजार 170 साधारण कुपोषित तो 27 हजार 731 गंभीर कुपोषित पाए गए। यानी करीब एक लाख 15 हजार बच्चों को कुपोषण की वजह से बीमार पाया गया। अलग-अलग उपचार व जागरूकता के जरिए अधिकांश जल्द ही इससे बाहर आकर पूरी तरह स्वस्थ की श्रेणी में आ गए। अच्छी बात यह रही कि इनमें से सिर्फ 70 बच्चों की ही मृत्यु हुई वो भी कुपोषण नहीं अन्य बीमारी की वजह से।
दस साल में ढाई हजार भर्ती, चार फीसदी रैफर सूत्र बताते हैं कि पुराना अस्पताल स्थित एमटीसी वार्ड कुपोषित बच्चों का है। वर्ष 2015 से नवम्बर 2024 तक करीब ढाई हजार गंभीर कुपोषित बच्चों ने यहां भर्ती रहकर इलाज कराया। इनमें से एक सौ पांच बच्चे हाई सेंटर रैफर किए गए, जबकि 2350 कुछ ही दिनों में पूरी तरह स्वस्थ होकर घर लौटे। सरकार ने यहां भी राहत देने में कोई कमी नहीं रखी। भर्ती बच्चों के उपचार के साथ समस्त दवा ही नहीं भोजन तक फ्री मिल रहा है। यहां तक कि उसकी मां अथवा अन्य परिजन को रोजाना सवा दो सौ रुपए के हिसाब से मानदेय/भत्ता दिया जाता है। साथ में खाना भी। मां को बच्चों को दिए जाने वाले भोजन के साथ अन्य जानकारी भी दी जाती है। दस-बारह दिन बाद बच्चे को स्वस्थ कर आगे की दिनचर्या के साथ डिस्चार्ज किया जाता है।
ये कारण आए सामने… बताया जाता है कि माताओं में पोषण, स्तनपान और पालन-पोषण के बारे में पर्याप्त जानकारी का अभाव इसकी सबसे बड़ी वजह है। डॉ. मूलाराम कड़ेला का कहना है कि नवजात को छह माह तक मां अपना दूध पिलाए पर वे ऐसा करती नहीं हैं। यहां तक कि छह माह से दो साल तक दी जाने वाली डाइट/भोजन का भी ख्याल नहीं रख पाती। ऐसे में बच्चे कुपोषण का शिकार हो जाते हैं। वो बच्चे जो बार-बार बीमार पड़ते हैं, जल्दी थकते हैं, समझने में देर लगाते हैं, ये ही कुपोषण का कारण रहता है। जन्म से लेकर दो साल की आयु तक कुपोषण से ग्रस्त होने की संभावना अधिक होती है। कुपोषण की शुरूआत जन्म से पहले हो जाती है।
ये होते हैं लक्षण साधारण कुपोषित: शारीरिक वृद्धि रुक जाती है। वजन के साथ खून की कमी, बार-बार बीमार होना, शारीरिक व मानसिक गतिविधियों में कमी। गंभीर कुपोषित: शरीर में पानी की कमी होना, खून के साथ तापमान भी कम रहना, शरीर में लवण की कमी, बार-बार बीमार होना।
आंगनबाड़ी/आशा तक सक्रिय यह भी सर्वविदित है कि गर्भवती महिला से लेकर कम उम्र के बच्चों के स्वास्थ्य का अधिकांश जिम्मा आंगनबाड़ी कार्यकर्ता/आशाओं का रहता है। ये ही बच्चों के टीकाकरण से लेकर अन्य आवश्यक खान-पान का पूरा ध्यान रखती हैं। यहां तक कि कुपोषित बच्चों को चिन्हित करने की भी जिम्मेदारी इनकी है।
एक्सपर्ट व्यू कुपोषण को पूरी तरह खत्म करने के लिए सबको समझदार बनना होगा। मां की सबसे अधिक जिम्मेदारी है कि वो छह माह तक बच्चे को केवल स्तनपान कराए। जन्म के आधा घंटे में ही स्तनपान शुरू कराए। टीकाकरण पर ध्यान देने के साथ छह माह से दो साल की उम्र तक स्तनपान के साथ भोजन, प्रचुर मात्रा में डाइट का पूरा ध्यान रखे। यही नहीं दो बच्चों के जन्म में पर्याप्त अंतराल रखा जाए। अज्ञानता के साथ अंधविश्वास भी इसकी वजह है, कई बार बीमार बच्चे को इधर-उधर लेकर टोना-टोटके में लग जाती हैं। बच्चे को मूल रूप से फैट/वसा, प्रोटीन/एनर्जी और कार्बोहाइड्रेट (पीईएम) आवश्यक है, हरी सब्जियां, मूंग-मोठ/चना, सोयाबीन, फल/दाल आदि इसके लिए उपयुक्त हैं। समझदार बनने की आवश्यकता है, समय पर उपचार कराकर नियम से चल कर कुपोषण से मुक्ति पाई जा सकती है।
-डॉ शीशराम चौधरी -शिशु रोग विशेषज्ञ व एडिशनल सीएमएचओ, नागौर।