नागौर

प्रदेश में बिना प्राचार्य के चल रही प्रदेश की 400 से ज्यादा कॉलेज, पढ़ाई का बंटाधार

प्रदेश में उच्च शिक्षा के हाल, सात महीने पहले प्राचार्य चयन के लिए मांगे आवेदन ठंडे बस्ते में डाले, राजसेस की कॉलेजों में ज्यादातर व्याख्याता गेस्ट फेकल्टी वाले

नागौरOct 09, 2024 / 11:41 am

shyam choudhary

नागौर. राज्य में सरकारी कॉलेजों की संख्या भले ही अधिक हो, लेकिन शिक्षा का स्तर बदतर है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अधिकतर कॉलेजों में प्राचार्य के पद खाली पड़े हैं। नागौर (डीडवाना-कुचामन सहित) जिले के 28 कॉलेजों में से मात्र तीन कॉलेजों में स्थाई प्राचार्य हैं, जबकि चार कॉलेजों (लाडनूं, कुचामन, कुचामन कन्या व डीडवाना कन्या महाविद्यालय) में डेपुटेशन पर प्राचार्य लगाए हुए है। यानी 21 कॉलेज बिना प्राचार्य ही संचालित हो रही हैं। यदि पूरे प्रदेश की बात करें तो कुल 631 सरकारी कॉलेजों में से करीब 444 कॉलेज बिना प्राचार्य संचालित हो रही हैं। कई जगह तो अतिरिक्त चार्ज देकर काम चला रहे हैं। यह हालात तो तब है, जब सरकार कॉलेजों में राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू करने पर जोर देर ही है। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि बिना प्राचार्य ही कॉलेजों में राष्ट्रीय शिक्षा नीति को कैसे लागू किया जा रहा है।
दरअसल, कॉलेजों में प्राचार्य के पद भरने के लिए कॉलेज आयुक्तालय ने कवायद तो शुरू कर दी थी। मार्च 2024 में आवेदन भी ले लिए थे, लेकिन सात माह बाद भी प्राचार्य नहीं लगाए गए हैं। कॉलेज आयुक्तालय की ओर से यह प्रक्रिया ठंडे बस्ते में डाल दी गई है।
यूजीसी मापदंड पूरे नहीं

उच्च शिक्षा में गुणवत्ता के लिए यूजीसी की ओर से दिशा-निर्देश जारी किए जा रहे हैं। लेकिन राज्य के सरकारी कॉलेज यूजीसी के मापदंडों को पूरा नहीं करते। कारण यह है कि राजस्थान के कई कॉलेजों के पास भवन नहीं है। वहीं, शिक्षकों की कमी है। इसके अलावा कहीं प्राचार्य नहीं है। ऐसे हालात में सरकारी कॉलेज नेक ग्रेड भी नहीं ले पाए। स्थाई शिक्षकों के मानदेय व कालांश में भी यूजीसी के नियमों की धज्जियां उड़ रही हैं।
कॉलेजों में ये काम भी अटके

नई सरकार आने के बाद 18 दिसम्बर 2023 को उच्च शिक्षा मंत्री बनने से पहले ही सरकार ने प्रदेश के सभी विश्वविद्यालयों के सिंडिकेट, बॉम व चयन समितियों के सदस्यों को एक ही आदेश से हटा दिया था। 10 महीने गुजरने के बाद भी कोई योग्य शिक्षक की नवनियुक्ति नहीं की है। न ही प्रदेश के सभी महाविद्यालयों में विकास समिति के सदस्य नामित हो पाए। इसकी वजह से विवि और महाविद्यालयों के सुचारू संचालन में परेशानी आ रही है।
इसके साथ सरकार ने 336 राजसेस महाविद्यालयों का रिव्यू करने के लिए कमेटी बनाई थी, लेकिन उसकी रिपोर्ट भी अब तक पेश नहीं हो पाई।

शिक्षकों की नाराजगी यह भी

– जुलाई 2024 में आरवीआरईएस के शिक्षकों को पदनाम सहित समस्त परिलाभ दिए जाने की घोषणा पर काम नहीं हुआ।
– कोरोना काल की यूजीसी की ओर से 31 दिसम्बर 2023 तक मिली ओरिएंटेशन/रिफेशर में छूट नहीं दी।

– 2018 व 2022 बैच के नवनियुक्त शिक्षक पीएसडी के लिए अनापत्ति, ओरिएंटेशन रिफेशर करने जैसी छोटी-छोटी समस्याओं से जूझ रहे हैं।
– मुख्यमंत्री की ओर से की गई सेवानिवृत्ति आयु 65 वर्ष करने की घोषणा पूरी नहीं की गई।

अस्थाई शिक्षकों को मात्र 14 कालांश

सरकारी कॉलेजों में शिक्षकों की कमी को पूरी करने के लिए विद्या संबल योजना से लगाए गए अस्थाई शिक्षकों को एक सप्ताह में मात्र 14 कालांश लेने की अनुमति है, वो भी टाइम-टेबल के अनुसार। यानी यदि किसी सप्ताह में अवकाश आ गया तो उस दिन की कालांश कट जाएगी। हालांकि यूजीसी के नियमानुसार एक सप्ताह में 20 कालांश लेने का नियम है, लेकिन सरकार ने मात्र 14 का प्रावधान कर दिया है। योजना में लगे सहायक आचार्य डॉ. गणेशराम धुंधवाल का कहना है कि उन्हें न तो नियुक्ति पत्र दिया जाता है और न ही कोई शैक्षणिक अनुभव प्रमाण पत्र दिया जा रहा है। सारा काम मौखिक रूप से हो रहा है।
तीन कॉलेजों में स्थाई प्राचार्य

नागौर व डीडवाना-कुचामन की कुल 28 कॉलेजों में से मात्र तीन में स्थाई प्राचार्य हैं, जबकि राजसेस के लाडनूं, कुचामन, कुचामन कन्या व डीडवाना कन्या महाविद्यालय में प्रतिनियुक्ति पर प्राचार्य लगाए हुए हैं। शेष जगह वरिष्ठ को अतिरिक्त चार्ज दिया हुआ है।
– डॉ. हरसुख छरंग, प्राचार्य, श्री बीआर मिर्धा कॉलेज, नागौर

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