नागौर

मातासुख लिग्नाइट कोयला खदान बीस माह से बंद

– सैंकड़ों लोग झेल रहे बेरोजगारी का दंश
– सरकार भी उठा रही करोड़ों रुपए का नुकसान
– कोयले की दरों को लेकर न्यायालय में अटका है मामला

नागौरDec 06, 2023 / 04:30 pm

Ravindra Mishra

तरनाऊ. बंद होने के बाद सुनसान पड़ी खदान।

तरनाऊ. नागौर जिले की प्रसिद्ध मातासुख- कसनाऊ लिग्नाइट कोयला परियोजना पिछले बीस महीने से बंद पड़ी है। खदान के बंद होने से सरकार रोजाना करीब एक करोड़ रुपए का नुकसान झेल रही है। वहीं काफी संख्या में लोग बेरोजगारी की मार झेलने रहे हैं। मातासुख लिग्नाइट कोयला परियोजना वर्ष 2003 में शुरू हुई थी तथा कोयला खनन करने वाली आरएसएमएमएल को कई दिक्कतों का सामना करते हुए खनन करना पड़ रहा था। वर्ष 2003 से 2011 तक इस मांइस से आरएसएमएमएल नुकसान ही उठा रही थी। वर्ष 2011 से 2022 तक इस कोयला खदान से आरएसएमएमएल को मुनाफा मिलना शुरू हुआ। इसी बीच जमीन के मुआवजे को लेकर किए गए किसान आंदोलन ने इस मांइस की रफ्तार को तोड़ दिया।
किसान आंदोलन के बाद से संकट
तीन मार्च 2022 को अपनी जमीन के उचित मुआवजे को लेकर मातासुख, कसनाऊ, ईग्यार गांव के सैकड़ों किसान मांइस में धरना देकर बैठ गए। 5 मार्च 2022 को किसानों ने मांइस से कोयले की लोडिंग को बंद करवा दी और 11 मार्च को किसानों ने खदान का पूरा काम बंद करवा दिया। करीब तीन महीने लगातार किसानों का धरना जारी रहा, पांच जून को किसानों की मांगों पर सहमति बनने के बाद धरना समाप्त किया गया। इस बीच महज पांच दिन खदान चली और आरएसएमएमएल से कोयला खरीदने वाली कम्पनियों ने कोर्ट में जाकर खदान को वापस बंद करवा दिया, जिसके बाद से आज तक मातासुख लिग्नाइट कोयला खदान बंद है।
कोयले की दर बढ़ाने से खफा हुई कम्पनियां
मातासुख लिग्नाइट कोयला खदान के कोयले को आरएसएमएमएल ने नीजि कम्पनियों को बेचान नीलामी में 2300 रुपए प्रति टन से किया था, उसके बाद इन कम्पनियों ने काफी मात्रा में कोयला मांइस से उठा भी लिया, लेकिन किसान आंदोलन के दौरान कोयले के भावों में तेजी आने से कोयला की दर 3900 रुपए प्रति टन पहुंच गई। तीन महीने किसान आंदोलन चलने के बाद जब खदान शुरू हुई तो निजी कम्पनियां कोयला लेने पहुंची तो आरएसएमएमएल पुराने भावों में कोयला देने के कान्ट्रेक्ट से मुकर गई। नतीजतन कम्पनियां कोर्ट पहुंच गई और खनन कार्य पर स्टे लगवा दिया। इस संबंध में कोर्ट ने एक बार निजी कम्पनियों के पक्ष में फैसला दिया, लेकिन आरएसएमएमएल उस फैसले को नहीं मानते हुए डबल बेंच में पुर्न याचिका लगा दी। जिसका फैसला अब तक नहीं आया है।
सैकड़ों मजदूर बेरोजगार
कोयला खदान कार्य बंद होने के साथ ही क्षेत्र के सैकड़ों मजदूर बेरोजगारी की मार झेल रहे है। बीस महीने से इस खदान में काम करने वाले मजदूरों के साथ ही अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े मजदूर भी बेरोजगार बैठे हैं। मांइस में लगभग तीन सौ मजदूरों के अलावा खुदाई करने के लिए जेसीबी व ट्रक चलाने वाले, कोयला लोडिंग में जेसीबी चलाने वाले ड्राइवर व अन्य काम करने वाले मजदूर थे।
चार हजार टन कोयले की होती थी रोज आपूर्ति-
मातासुख खदान से करीब चार हजार टन कोयले की आपूर्ति रोजाना ट्रकों में लोड होकर सीमेंट,टक्सटाईल व भट्ठों पर होती थी। करीब अस्सी ट्रक रोजाना लोड होकर यहां से जाते थे, जिनका राजस्व रोजाना करीब नब्बे लाख रुपए के आसपास का आरएसएमएमएल को मिलता था। मातासुख- फरड़ोद सड़क अब सुनसान नजर आ रही है।
अधिकारी मौन,उच्च लेवल का मामला

खदान बंद होने के बाद से मांइस क्षेत्र में करीब पन्द्रह आरएसएमएमएल के अधिकारी डयूटी करने दो शिफ्ट में पहुंचते हैं, लेकिन दिनभर ऑफिस में बैठ कर कागजी काम कर लौट जाते हैं। उधर, मांइस मैनेजर एसके बेरवाल ने बताया कि खदान शुरू होने के बारे में हमें जानकारी नहीं है, उच्च लेवल का मामला है। उच्चाधिकारी ही इस मामले में कुछ बता सकते है।

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