scriptVIDEO…ग्रहों की शुभ युति के त्रिग्रही के साथ शिव योग एवं सवार्थ सिद्धि योग में मनाई जाएगी महाशिवरात्रि | Mahashivratri will be celebrated in Shiva Yoga and Savarth Siddhi Yoga with the Trigrahi of the auspicious conjunction of planets. | Patrika News
नागौर

VIDEO…ग्रहों की शुभ युति के त्रिग्रही के साथ शिव योग एवं सवार्थ सिद्धि योग में मनाई जाएगी महाशिवरात्रि

ज्योतिषविदों के अनुसार 300 साल के बाद शिव योग एवं सवार्थ सिद्धि योग के साथ ग्रहों की शुभ युति के त्रिग्रही योग में मनाई जाएगी। इसमें सिद्धि योग एवं श्रवण नक्षत्र का भी संयोग बना है। कुंभ राशि में सूर्य, शनि व शुक्र साथ मिलकर त्रिग्रही योग का निर्माण कर रहे हैं। ग्रहों की युति के साथ ही शिवयोग, प्रदोष व

नागौरMar 05, 2024 / 09:08 pm

Sharad Shukla

Nagaur news

Mahashivratri will be celebrated in Shiva Yoga and Savarth Siddhi Yoga with the Trigrahi of the auspicious conjunction of planets

ग्रहों की शुभ युति के त्रिग्रही के साथ शिव योग एवं सवार्थ सिद्धि योग में मनाई जाएगी महाशिवरात्रि
-तीन सौ साल के बाद आया ऐसा दुर्लभ संयोग
-रात्रि में इसलिए मनाई जाती है महाशिवरात्रि
-महाशिवरात्रि का पूजन रात्रि में करने का है विशेष प्रावधान
नागौर. इस वर्ष आठ मार्च की महाशिवरात्रि बेहद खास है। ज्योतिषविदों के अनुसार 300 साल के बाद शिव योग एवं सवार्थ सिद्धि योग के साथ ग्रहों की शुभ युति के त्रिग्रही योग में मनाई जाएगी। इसमें सिद्धि योग एवं श्रवण नक्षत्र का भी संयोग बना है। कुंभ राशि में सूर्य, शनि व शुक्र साथ मिलकर त्रिग्रही योग का निर्माण कर रहे हैं। ग्रहों की युति के साथ ही शिवयोग, प्रदोष व्रत एवं सवार्थ सिद्धि योग के दुर्लभ बना यह संयोग लगभग तीन सौ साल के बाद आया है। पंडित सुनील दाधीच ने बताया कि ज्योतिषीय गणनाओं के अनुसार ऐसा योग बेहद दुर्लभ और अकल्पनीय सुखद संयोग लेकर आता है। इस दिन की भगवान शिव के व्रत एवं अर्चन की तुलना सामान्य दिनों में होने वाले पूजन कार्यों से नहीं की जा सकती है। मेष, वृषभ, तुला, मकर एवं कुंभ राशि के लिए बेहद खास रहेगा यह संयोग। शनिदेव अपनी मूल त्रिकोण राशि कुंभ में विराजमान है। इसके साथ ही सूर्यदेव अपने पुत्र एवं आदर्श शत्रु शनि की राशि कुंभ में चन्द्रमा के साथ विराजित रहेंगे। ग्रहों की ये स्थिति त्रिग्रही योग का निर्माण कर रही है। जो कि फलदायी है।
रात्रि में ही क्यों मनाई जाती है महाशिवरात्रि
ज्योतिषी महेश गुरु के अनुसार ईषान संहिता में स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि रात्रि के द्वितीय पहर में शिवलिंग का प्रादुर्भाव हुआ था। शिव यानि की रात्रि के प्रतीक हैं, और यह भूतेश्वर या भूतनाथ कहे जाते हैं। भूत आदि रात्रि में ही सक्रिय होते हैं। इस दिन में रात्रि में ही इनका प्रादुर्भाव होने की वजह से ही महाशिवरात्रि मनाई जाती है। शिवरात्रि पर चार प्रहर में यानि की चार बार पूजन का विधान आता है। पहले प्रहर में दूध से शिव के ईशान स्वरूप का, दूसरे प्रहर में दही से अघोर स्वरूप का, तीसरे प्रहर में घी से वामदेव रूप का और चौथे प्रहर में शहद से सद्योजात स्वरूप का अभिषेक कर पूजन करना चाहिए। यदि कन्याएं चार बार पूजन न कर सकें, तो पहले प्रहर में एक बार तो पूजन अवश्य ही करें। महाशिवरात्रि की रात महासिद्धिदायिनी होती है। इस रात्रि को निशा रात्रि भी कहते हैं। यानि की चारों ओर घोर अंधकार की स्थिति में शिवलिंग का उद्भव अंधकार में प्रकाश का भी प्रतीक माना जाता है। पूजा पद्धति सात्विक व शाक्त अलग-अलग विधियों से संपन्न कराई जाती है। इसी दिन शिव एवं पार्वती का पाणीग्रहण भी हुआ था। इस वजह से भी पूरी रात्रि को उत्सव की तरह मनाया जाता है।
रात्रि पूजन का है विशेष विधान
महाशिवरात्रि पर ऐसे की जा सकती है पूजा
पूरी तरह से शुद्ध होने के बाद घर के मंदिर में या शिव मंदिर में जाकर भगवान शिव की पूजा की जा सकती र्है। पहले शिवलिंग में चंदन का लेप करने के साथ ही पंचामृत से स्नान कराना चाहिए। इसमें गन्ने के रस, कच्चे दूध, या शुद्ध घी से शिवलिंग का अभिषेक करना चाहिए। इसके पश्चात महादेव को बेलपत्र, धतूरा, जायफल, कमल गट्टे, फल, फूल, मिठाई, मीठा पान, इत्र आदि अर्पित करना चाहिए। अर्चन सदैव पूर्वाभिमुखी या फिर उत्तरामुखी करनी चाहिए। इसके पश्चात शिव पंचाक्षर मंत्र आदि के साथ शिव ताण्डव स्तोत्र आदि का पाठ किया जा सकता है। व्रत रहने वाले को पूरा दिन निराहार रहना चाहिए। रोगी या अशक्त फलाहार कर सकते हैं। व्रत रखने वाले को फल, फूल, चंदन, बिल्व पत्र, धतूरा, धूप व दीप से रात के चारों प्रहर में शिवजी की पूजा करनी चाहिए साथ ही भोग भी लगाना चाहिए। दूध, दही, घी, शहद और शक्कर से अलग-अलग तथा सबको एक साथ मिलाकर पंचामृत से शिवलिंग को स्नान कराकर जल से अभिषेक भी किया जाता है। भव, शर्व, रुद्र, पशुपति, उग्र, महान, भीम और ईशान, इन आठ नामों से फूल अर्पित कर भगवान शिव की आरती और परिक्रमा करने का विधान है। इसमें पूजन तो चारों पहर में होता है, लेकिन मध्यरात्रि की पूजा को ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है।

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