इतने में मेरे कोचिंग के सर वहां पहुंचे। मैंने उन्हें गाड़ी लाने को कहा तो उन्होंने वहां कोचिंग की खड़ी गाड़ी को तुरंत लाकर पापा को अस्पताल ले गए। मैं, मेरे चाचा उनको लेकर पहुंचे तो मुझे अस्पताल के बाहर ही चाचा ने रुकने का बोला और पापा को अंदर ले गए। फिर मुझे बताया गया कि पापा को आईसीयू में भर्ती किया गया है। तू होस्टल चल, हम हैं यहां और मुझे कोचिंग सेंटर के होस्टल लाकर छोड़ दिया। उस दिन मैं वहीं रही और रविवार को मेरे रिश्तेदार आए और मुझे गांव ले आए। गांव आने पर मुझे मेरे भाई के फोन से पता चल गया कि पापा नहीं रहे। मुझे, मेरे भाई नवीन व मोनिका को पता था, पर हमने मम्मी और दादा-दादी को कुछ नहीं बताया। पत्रिका को दूरभाष पर बातचीत में कोनिता बार-बार रो रही थी, फिर हिम्मत करके पूरी बात बताती रही।
पापा बनाना चाहते थे सक्षम
कोनिता ने बताया कि हमें पापा बहुत प्यार करते थे, पापा हम तीनों बेटियों को सक्षम बनाना चाहते थे। पापा कहते थे कि तुम डाॅक्टर बनोगी, मोनिका अध्यापक बनेगी और बीना को इंजिनियर बनता देख लूं तो मुझे दुनिया की सारी खुशियां मिल जाएगी।
गौरतलब है कि शनिवार को सीकर में अपनी बेटी कोनिता से मिलने गए ताराचंद कड़वासरा की बदमाशों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। ताराचंद कड़वासरा खेती-किसानी कर अपने परिवार का पालन-पोषण करने के साथ ही अपनी तीनों बेटियों व बेटे को पढा रहे थे। ताराचंद कड़वासरा का सपना था कि तीनों बेटियां सरकारी सेवा में जाए। ताराचंद कड़वासरा गांव में दिन-रात मेहनत करते थे और अपनी जमीन के साथ कास्तगारी पर जमीन लेकर वर्ष की दोनों फसलों की बुवाई करते थे, ताकि अपनी बेटियों को उच्च शिक्षा दिलवा कर सक्षम बना सके।
कोनिता ने बताया कि हमें पापा बहुत प्यार करते थे, पापा हम तीनों बेटियों को सक्षम बनाना चाहते थे। पापा कहते थे कि तुम डाॅक्टर बनोगी, मोनिका अध्यापक बनेगी और बीना को इंजिनियर बनता देख लूं तो मुझे दुनिया की सारी खुशियां मिल जाएगी।
गौरतलब है कि शनिवार को सीकर में अपनी बेटी कोनिता से मिलने गए ताराचंद कड़वासरा की बदमाशों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। ताराचंद कड़वासरा खेती-किसानी कर अपने परिवार का पालन-पोषण करने के साथ ही अपनी तीनों बेटियों व बेटे को पढा रहे थे। ताराचंद कड़वासरा का सपना था कि तीनों बेटियां सरकारी सेवा में जाए। ताराचंद कड़वासरा गांव में दिन-रात मेहनत करते थे और अपनी जमीन के साथ कास्तगारी पर जमीन लेकर वर्ष की दोनों फसलों की बुवाई करते थे, ताकि अपनी बेटियों को उच्च शिक्षा दिलवा कर सक्षम बना सके।