हिरण्याक्ष का वध कर पृथ्वी को समुद्र से बाहर लाए भगवान वराह
नागौर @ पत्रिका. शहर के बंशीवाला मंदिर में गुरुवार को हर्षोल्लास के साथ भगवान विष्णु के वराह अवतार की लीला हुई। भगवान विष्णु के वराह स्वरूप धारण कर समुद्र से पृथ्वी को अपने दांतों के सहारे बाहर लाने के पौराणिक प्रसंग को लीला में दर्शाया गया।
प्रतीकात्मक रूप से वराह भगवान के पृथ्वी को समुद्र से बाहर लाते ही श्रद्धालुओं ने करतल ध्वनि के साथ जयकारे लगाए। इस दौरान मंदिर परिसर में भगवान वराह का जयघोष गूंजता रहा। परिसर में श्रद्धालुओं की भीड़ के आगे पैर रखने तक को जगह नहीं थी।
बंशीवाला मंदिर में हुई वराह अवतार की लीला, मंदिर परिसर में चारों तरफ नजर आए श्रद्धालु
शाम को भगवान वराह निज मंदिर से निकलकर चौक परिसर में पहुंचे। यहां पर पृथ्वी के रूप में बैठी नन्ही बालिका को गोद में उठाया। इस दौरान श्रद्धालुओं ने भगवान का पूजन किया। बाद में भगवान वराह के स्वरूप ने दैत्यराज हिरण्याक्ष को ललकारा।
हिरण्याक्ष से पहले मल्ल युद्ध हुआ, फिर उसने भगवान पर गदा का प्रहार किया, लेकिन भगवान की गदा उसकी छाती पर पड़ते ही वह काल के गाल में समा गया।
नागौर के बंशीवाला मंदिर में वराह अवतार की लीला देखने उमड़े शहरवासी।
पाराशर ने भाव-भंगिमा के माध्यम से दृश्य को जीवंत कर दिया। इसके बाद भगवान वराह परिसर में बनी बारियों में हर्षनाद करते रहे। वराह लीला करीब दो घंटे चली। इससे पूर्व निज मंदिर में भगवान वराह का विधिविधान से पूजन किया गया।
वराह अवतार की लीला देखने के लिए अपराह्न तीन बजे से ही श्रद्धालु बंशीवाला मंदिर में जुटने लगे। शाम तक पूरा मंदिर परिसर श्रद्धालुओं से खचाखच भर गया।
बंशीवाला का वराह अवतार शृंगार
भगवान बंशीवाला का गुरुवार को मुखौटों के साथ वराह रूप में शृंगार किया गया। दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रही। इस दौरान मंदिर में भजन-कीर्तन भी किया गया।
वराह अवतार की लीला में वराह भगवान की भूमिका निभाने वाले को पूरे एक माह ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना पड़ता है, भोजन भी एक समय करना होता है। इस दौरान बाहर से आए भोजन या अन्य खाद्य सामग्री का सेवन करना प्रतिबंधित रहता है। इसका पूरा पालन करने के साथ भगवान वराह का रोजाना पूजन भी करना होता है।