राज्य कर विभाग ने नागौर में एक सीटीओ, मेड़ता में एक सीटीओ, मकराना एवं किशनगढ़ में एक-सीटीओ लगा रखे हैं। इसी तरह से नागौर में चार एसीटीओ, मेड़ता में दो एसीटीओ, मकराना में दो एसीटीओ तैनात किए हुए है। इन सभी कार्यालयों में जेसीटीओ भी कार्यरत हैं। इन अधिकारियों की संख्या करीब तीन दर्जन से ज्यादा है। इनके वेतन पेटे सरकार लाखों रुपए वहन कर रही है, लेकिन राजस्व उपलब्धी का परिणाम औसत से भी कमतर है।
इस पर नहीं दिया जाता ध्यान
इस पर नहीं दिया जाता ध्यान
सूत्रों के अनुसार नागौर, मेड़ता, मकराना, किशनगढ़ एवं अजमेर में करीब एक हजार वाहनों का परिवहन केवल पान मसाला उत्पादों में हो रहा है। यह वाहन डीलरों के पास पान मसाला उत्पादों को पहुंचाने के बाद वापस बैरंग रवाना हो जाती है। इन वाहनों के पास ईवे-बिल तक नहीं रहता । सब कुछ आपसी अंडरस्टैंडिंग से चल रहा है।
पांच साल में 35 करोड़ से ज्यादा का वेतन निगल गए, और राजस्व औसत
वेतन के पेटे करोड़ों का व्यय, राजस्व औसत
अजमेर संभाग के सीटीओ, एसीटीओ एवं जेसीटीओ आदि पर एक माह में लगभग 60 लाख के वेतन का व्यय सरकार करती है। पूरे साल में यह आंकड़ा लगभग सात करोड़ 20 लाख का हो जाता है। इस तरह से केवल पांच साल में 35 से 40 करोड़ से ज्यादा की राशि केवल इन जिम्मेदारों के पेटे सरकार व्यय कर चुकी है, लेकिन इस समयावधि में राजस्व उपलब्धी की स्थिति औसतन इसके 20 प्रतिशत भी नहीं हो पाई है। संभाग क्षेत्र में गत पांच सालों में हुई कार्रवाइयों की स्थिति पर नजर डालें तो ज्यादातर जगहों पर सर्वे ही नहीं कराया गया। सर्वे भी हुई तो केवल खानापूर्ति के चलते सरकार को राजस्व ही नहीं मिल पाया। कारण मिलीभगत के खेल के चलते इन जिम्मेदारों का वेतन ही सर्वे में हुए राजस्व से कई गुना ज्यादा रहा है। इस तरह से सरकार की ओर से तैनात किए गए राज्य कर विभाग के अधिकारी खुद राज्य सरकार को ही चूना लगाने में लगे हुए हैं।
इनका कहना है.
पांच साल में 35 करोड़ से ज्यादा का वेतन निगल गए, और राजस्व औसत
वेतन के पेटे करोड़ों का व्यय, राजस्व औसत
अजमेर संभाग के सीटीओ, एसीटीओ एवं जेसीटीओ आदि पर एक माह में लगभग 60 लाख के वेतन का व्यय सरकार करती है। पूरे साल में यह आंकड़ा लगभग सात करोड़ 20 लाख का हो जाता है। इस तरह से केवल पांच साल में 35 से 40 करोड़ से ज्यादा की राशि केवल इन जिम्मेदारों के पेटे सरकार व्यय कर चुकी है, लेकिन इस समयावधि में राजस्व उपलब्धी की स्थिति औसतन इसके 20 प्रतिशत भी नहीं हो पाई है। संभाग क्षेत्र में गत पांच सालों में हुई कार्रवाइयों की स्थिति पर नजर डालें तो ज्यादातर जगहों पर सर्वे ही नहीं कराया गया। सर्वे भी हुई तो केवल खानापूर्ति के चलते सरकार को राजस्व ही नहीं मिल पाया। कारण मिलीभगत के खेल के चलते इन जिम्मेदारों का वेतन ही सर्वे में हुए राजस्व से कई गुना ज्यादा रहा है। इस तरह से सरकार की ओर से तैनात किए गए राज्य कर विभाग के अधिकारी खुद राज्य सरकार को ही चूना लगाने में लगे हुए हैं।
इनका कहना है.
विभाग की ओर से कई जगहों पर सर्वे किया जाता है। सक्षम अधिकारियों की अनुमति लेकर कार्रवाई की जाती है। हाल ही में इस संबंध में कार्रवाई की है।
महेश कुमार मीणा, सहायक आयुक्त, राज्यकर विभाग, नागौर।
महेश कुमार मीणा, सहायक आयुक्त, राज्यकर विभाग, नागौर।