इस शर्मनाक हार की समीक्षा भी बेहद जरूरी है। वो इसलिए भी कि वर्ष 2018 से 2023 तक राज्य में कांग्रेस की सरकार रही तो खींवसर के हिस्से आया क्या? यहां की जनता की खैर-खबर लेने मंत्री/मुख्यमंत्री तो छोड़ों जो चुनाव के दौरान चहल कदमी करने वाले गिने-चुने कथित नेता भी यहां दिखे क्या? इस बार के परिणाम से कांग्रेस की भद्द पिट गई।
कांग्रेस प्रत्याशी को मिले मात्र 5454 वोट
डॉ रतन चौधरी को 5454 वोट मिले जो मात्र ढाई फीसदी है। बरसों पुरानी कांग्रेस चुनावी रेस में इतना पीछे, जमानत तक जब्त हो गई। आखिर उसके वोटर किधर तितर-बितर हो गए। मतदाता को लुभाने या फिर वोट बैंक बढ़ाने के लिए कांग्रेस के बड़े-बड़े स्टार प्रचारकों ने खींवसर में आकर किया क्या? वर्ष 2018 में यहां हुए चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी सवाई सिंह चौधरी को 66 हजार से अधिक तो वर्ष 2019 के उप चुनाव में हरेंद्र मिर्धा को करीब 74 हजार वोट मिले। पिछले साल के चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी रहे तेजपाल मिर्धा ने 27 हजार से अधिक वोट हासिल किए थे। आखिर वोट इतने कम कैसे हो गए? असल में कांग्रेस ने खींवसर में अपना संगठन मजबूत बनाने के लिए कई बरसों से कुछ किया ही नहीं। ब्लॉक स्तर की मीटिंग को तो छोड़िए यहां के पदाधिकारी कभी नागौर जिले में होने वाली मीटिंग तक में शामिल नहीं होते। जब-जब कांग्रेस सरकार रही तब भी खींवसर को हाशिए पर रखा गया। कई वर्षों से जिला अध्यक्ष पद का निर्वाह कर रहे जाकिर हुसैन गैसावत हों या सरकार के दौरान जिला प्रभारी मंत्री अथवा अन्य ने यहां की जनता की सुध-बुध पूछी ही नहीं। कभी लोकसभा तो कभी विधानसभा में टिकट के दावेदार बने पदाधिकारी भी खींवसर के नाम से छींकते नजर आते हैं।
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