मुदिता : वर्ष 2019 में मैंने जोधपुर के डॉ. एसएन मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस पूरा किया। कॉलेज करते समय ही मुझे लगा कि कुछ ऐसा करना चाहिए, ताकि समाज को ज्यादा दे सकूं। इसी सोच को लेकर मैंने सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी दिल्ली जाकर शुरू की, लेकिन कुछ समय बाद ही कोविड आ गया। मुझे लगा कि अभी समाज को डॉक्टर की ज्यादा जरूरत है, इसलिए आठ महीने तक डॉक्टर के रूप में सेवाएं दी। जब दूसरी लहर कम हो गई तो मैंने वापस आईएएस की तैयारी शुरू की और एक्जाम दिया। यह मेरा फस्र्ट मैन्स और फस्र्ट इंटरव्यू था, जिसमें मुझे 381वीं रैंक मिली है।
मुदिता : मैं तो यही कहूंगी कि संषर्घ, जीवन का पार्ट है। दोनों साथ-साथ चलते हैं। यदि कोई सोचे कि पहले समस्याओं का समाधान कर लें और फिर तैयारी करें तो ऐसा नहीं हो सकता। जीवन भर कोई न कोई संघर्ष करना ही पड़ता है।
मुदिता : कहीं न कहीं एक संकोच है। मैं मेड़ता सिटी से आती हूं, मुझे बाहर भेजना, मेरे पेरेंट्स के लिए बहुत बोल्ड डिसिजन था। लेकिन उन्होंने हिम्मत दिखाई और मुझे भेजा, जिसका परिणाम आज आपके सामने हैं। इसलिए मैं तो कहूंगी कि थोड़ा विश्वास रखें, अपने संस्कारों पर और अपने बच्चों पर और उन्हें बाहर भेजें। आज लड़कियों को आत्मनिर्भर बनाना बहुत जरूरी है। परिवार पर संकट आता है तो एक पढ़ी-लिखी कामयाब महिला अपने पूरे परिवार को संभाल सकती है। इसलिए समाज व परिवार को सोच बदलने की भी आवश्यकता भी है।
मुदिता : एक से आठ तक मेरी शिक्षा मेड़ता के विद्या भारती के मीरा बाल मंदिर से हुई। इसके बाद नवीं व दसवीं मेड़ता के सरकारी बालिका स्कूल से की। 11वीं व 12वीं भी राजकीय माध्यमिक विद्यालय से की। यहां तक कि मेरा कॉलेज भी सरकारी था। मैं जब दसवीं में थी, तब मेरी स्टेट मेरिट थी। हां, लेकिन यह जरूर है कि आपकी फेमिली अवेयर है और स्कूल में पढ़ाई को लेकर कहीं समझौता हो रहा है। ऐसे में आपका परिवार एक्स्ट्रा एकेडमिक सपोर्ट प्रोवाइड करवाने में सक्षम है तो फिर स्कूल मायने नहीं रखती है।
मुदिता : सबसे पहले तो लड़कियों की शिक्षा को लेकर काम करना चाहती हूं। मेरा परिवार सपोर्टिव था, इसलिए मैं आईएएस बन गई, लेकिन कई ऐसी लड़कियां हैं जो कर सकती थी, लेकिन सपोर्ट नहीं मिलने के कारण नहीं कर पाई। दूसरा, हैल्थ सेक्टर है, जो मेरा खुद का फिल्ड भी है। आज हम सुनते हैं कि किस प्रकार की गंभीर बीमारियां हैं, जिनसे लोगों की मौत हो रही है। इस क्षेत्र में यदि मुझे मौका मिला तो जागरुकता के हिसाब से कुछ करना चाहुंगी।
दे दी चुनौती सिंधु को, फिर धार क्या मझधार क्या
मुदिता : पत्रिका के मंच से मैं कहना चाहती हूं कि यह मेरी व्यक्तिगत सफलता नहीं है, यह उन सब की सफलता है, जिनसे मैं आज तक मिली और उनसे कुछ न कुछ सीखा। उन सबको मेरी ओर से बहुत-बहुत शुक्रिया और तहेदिल से धन्यवाद।