नागौर

सरकारी स्कूलों के बच्चों की सेहत भगवान भरोसे, नहीं होता स्वास्थ्य परीक्षण

-कोरोना के बाद से स्कूलों में नहीं हो रहा मेडिकल चेकअप, चार नहीं तो दो शिविर लगाने थे साल में, आलम यह है कि कई स्कूलों में तो तीन साल में एक तक नहीं लगा, करीब साढ़े तीन लाख बच्चों की सेहत का मामला

नागौरApr 14, 2024 / 08:35 pm

Sandeep Pandey

सरकारी स्कूलों मे बच्चों के स्वास्थ्य की देखभाल भगवान भरोसे है। साल में दो बार होने वाला स्वास्थ्य परीक्षण का काम कोरोना के बाद से ठप है।

नागौर. सरकारी स्कूलों मे बच्चों के स्वास्थ्य की देखभाल भगवान भरोसे है। साल में दो बार होने वाला स्वास्थ्य परीक्षण का काम कोरोना के बाद से ठप है। नागौर (डीडवाना-कुचामन) जिलेभर में करीब साढ़े तीन लाख स्कूली बच्चे हैं। आयरन की पिंक-ब्लू गोली देकर ही बच्चों को सेहतमंद बनाने की जिम्मेदारी पूरी की जा रही है।
सूत्रों के अनुसार सरकारी स्कूल में बच्चों के स्वास्थ्य परीक्षण का कार्यक्रम हाल का नहीं है। बरसों से चल रहा है, इसमें मामूली संशोधन जरूर होता रहा पर इसकी अनिवार्यता बनी हुई है। वर्ष 2020-2021 में कोरोना काल रहा। इसके बाद खुले स्कूलों में तब से स्वास्थ्य परीक्षण कार्यक्रम को हाशिए पर रख दिया। यही नहीं इस गतिविधि की भी मॉनिटरिंग नहीं हो रही है। ऐसे में स्कूली बच्चों को सेहमंद बनाए रखने की सरकारी कवायद पूरी नहीं हो पा रही।
नागौर (डीडवाना-कुचामन) जिलेभर के सरकारी स्कूलों में करीब साढ़े तीन लाख बच्चे अध्ययन करते हैं। पिछले दो-तीन साल से मांगने पर स्वास्थ्य परीक्षण कार्यक्रम की फौरी रिपोर्ट दाखिल की जा रही है। स्कूलों में ना स्वास्थ्य संबंधी रजिस्टर दिख रहा है ना ही चिन्हित बच्चों का रेकॉर्ड। ऐसे में बच्चों की बीमारी का कुछ अता-पता नहीं है। वैसे तो साल में यह प्रक्रिया दो बार की जानी चाहिए पर यहां तो दो-तीन साल में एक बार भी नहीं हुई।
नियम तो यह है…

सूत्र बताते हैं कि हर स्कूल में सालभर में दो बार स्वास्थ्य परीक्षण करवाने की अनिवार्यता है। इसमें कोई बड़ी बीमारी से ग्रसित पाया जाता है तो उसका रेफर कॉर्ड बनने और अस्पताल से दवा दिलाने के साथ दिखवाने की भी अनिवार्यता है। हर स्कूल में एक रजिस्टर रखने को कहा गया था, जिसमें हर बच्चे का वजन, लम्बाई समेत स्वास्थ्य संबंधी जानकारी दर्ज करना जरूरी था। ये दोनों शिविर सत्र की शुरुआत जुलाई-अगस्त और फिर दिसम्बर-जनवरी में लगाने होते हैं। इसके लिए जिला शिक्षा अधिकारी ब्लॉक वार टाइम-टेबल तय कर निर्देश देकर यह कार्य सम्पन्न करवाता है।
यह आया सामने

इस संबंध में बच्चों व पेरेंट्स से हुई बातचीत में यही सच सामने आया। नाम छिपाते हुए अधिकांश बच्चों ने कहा कि उनके स्कूल में पिछले दो-तीन साल में तो एक बार भी स्वास्थ्य परीक्षण नहीं हुआ। पहले तो डॉक्टर-कम्पाउण्ड के जरिए औपचारिक तौर पर तो परीक्षण होता था। एक पेरेंट्स का कहना था कि स्वास्थ्य परीक्षण के बारे में एक-दो बार संस्था प्रधान से भी मिले पर उन्होंने टाल दिया।
इनका कहना

अब तो सत्र समाप्त होने को है। वैसे हर तीन माह में स्वास्थ्य परीक्षण स्कूलों में होना चाहिए। उन कारणों को दिखवाएंगे जिनके चलते कुछ स्कूल ऐसा नहीं कर रहे। लापरवाही बरतने वाले संस्था प्रधान पर कार्रवाई होगी।
-रामनिवास जांगिड़, कार्यवाहक मुख्य जिला शिक्षा अधिकारी, नागौर।

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