नागौर

अनाड़ी कार्मिकों के हवाले ठेके के जीएसएस, आए दिन हो रहे हादसे

कागजों में आईआईटी होल्डर, जीएसएस पर अनाड़ी, कैसे रुकेंगे हादसे, पिछले पांच साल में करंट लगने से 150 से अधिक लोगों की अकाल मौत

नागौरAug 18, 2021 / 10:52 am

shyam choudhary

one worker is handelling GSS in 24 hours a day

नागौर. अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड की ओर से पिछले कुछ वर्षों से ठेके पर दिए जा रहे ग्रिड सब स्टेशन (जीएसएस) भगवान भरोसे संचालित हो रहे हैं, जहां आईटीआई होल्डर तीन कार्मिकों की नियुक्ति ठेकेदारों को करनी चाहिए, वहां पर नियम विरुद्ध अनपढ़ या छठी व आठवीं पास लोगों को लगा रखा है। इनमें से कुछ लोग तो ऐसे हैं, जिन्होंने विद्युतकर्मियों के साथ कुछ समय काम किया था और आज पूरा जीएसएस संभाल रहे हैं। जीएसएस पर लगे कार्मिकों को बिजली के संबंध में पूरी जानकारी नहीं होने के कारण आए दिन कार्मिकों की जानें ज रही हैं। सोमवार को आंवलियासर में हुए हादसे का भी एक कारण यही था।
जिले में करंट से होने वाले हादसों पर नजर डालने पर सामने आया कि हर वर्ष तीन दर्जन लोग जान गंवा रहे हैं, जबकि पशुओं की संख्या इससे तीन गुनी है। इसके बावजूद डिस्कॉम के अधिकारी गंभीर होने की बजाय लापरवाह बने हुए हैं। ठेका पद्धति पर संचालित जिले के 78 प्रतिशत जीएसएस में सरकारी नियम-कायदे खूंटी पर टांके हुए हैं। ठेकेदार इन जीएसएस का संचालन ‘अनाड़ी’ युवकों से करवा रहे हैं, जिन्होंने आईटीआई का ‘क’, ‘ख’, ‘ग’ भी नहीं पढ़ा है, जबकि सरकारी आदेशों के अनुसार ठेकेदार पर संचालित प्रत्येक जीएसएस पर आईटीआई होल्डर कर्मचारी होने चाहिए।
डिस्कॉम अधिकारियों के अनुसार जिले में कुल 314 जीएसएस हैं, जिनमें से 246 जीएसएस ठेका पद्धति से संचालित किए जा रहे हैं, यानी जिले के 78 प्रतिशत जीएसएस ठेके पर हैं। जीएसएस को ठेके पर देने के पीछे सरकार का उद्देश्य बिजली आपूर्ति सुचारू रखना एवं हादसों को रोकना है, लेकिन ठेकेदार सरकारी प्रयासों पर पानी फेर रहा है।
ठेकेदार के जिम्मे हैं ये काम
ठेकेदार को प्रत्येक जीएसएस पर चार कार्मिक नियुक्त करने हैं। प्रति दिन तीन शिफ्ट में एक-एक कार्मिक और एक रिलीवर होना चाहिए। कार्मिकों का वेतन, जीएसएस का रखरखाव, कार्मिकों को सुरक्षा उपकरण उपलब्ध करवाना, कार्मिकों का बीमा, पीएफ, ईएसआई में नाम दर्ज करना उसका दायित्व है, लेकिन ठेकेदार इन नियमों को ताक पर रखकर जीएसएस संचालित कर रहे हैं।
अधिकारियों की मौन स्वीकृति
ऐसा नहीं है कि ठेकेदारों की इस कारस्तानी के बारे में निगम के अधिकारियों को जानकारी नहीं है। उच्चाधिकारियों द्वारा समय-समय पर निर्देश देकर जीएसएस का निरीक्षण करने को कहा जाता है, लेकिन स्थानीय अधिकारी ठेकेदारों की अनियमितता को अनदेखा कर रहे हैं, जिसके चलते आए दिन हादसे हो रहे हैं।
प्रतिस्पर्धा पड़ रही भारी
ठेका उठाने की होड़ में ठेकेदार कम राशि भर देते हैं। ऐसे में इस राशि में डिग्रीधारी कर्मचारियों की भर्ती एवं अन्य व्यवस्थाएं करना मुश्किल होता है। निगम के लाभ को देखते हुए बड़े अधिकारी भी इस व्यवस्था को लेकर चुप्पी साधे हुए हैं। लेकिन जब हादसा होता है तो मृतक के आश्रितों को दी जाने वाली पूरी राशि ठेकेदार के जिम्मे डाल दी जाती है। गत 4 अगस्त को खींवसर क्षेत्र के गुडिय़ा गांव में हुए हादसे में मृतक जगदीश के परिजनों को 17 लाख रुपए की सहायता देने पर सहमति बनी, जबकि सोमवार को आंवलियासर में हुए हादसे में जोधाराम के परिजनों को 16 लाख रुपए देने पर सहमति बनी। अधिकारियों का कहना है कि पूरी राशि ठेकेदार ही चुकाएगा। हादसे को लेकर जांच होगी, यदि कहीं डिस्कॉम की कमी पाई गई तो पांच लाख रुपए डिस्कॉम की ओर से दिए जाएंगे। इसी प्रकार पूर्व में हुए हादसों में भी ठेकेदार को लाखों रुपए देने पड़े हैं, इसके बावजूद ठेकेदार प्रशिक्षित कर्मचारी रखने की बजाए अनपढ़ व अप्रशिक्षित कार्मिकों के भरोसे जीएसएस चला रहे हैं।
पत्रिका पहले भी चेताया
ठेके पर संचालित जीएसएस पर नियुक्ति अप्रशिक्षित कार्मिकों को लेकर राजस्थान पत्रिका पिछले पांच साल से समय-समय पर समाचार प्रकाशित कर निगम अधिकारियों का ध्यान आकृष्ट कर रही है, इसके बावजूद अधिकारी गहरी नींद में हैं। जब भी कोई हादसा होता है तो ठेकेदार पर जिम्मेदारी डालकर पल्ला झाड़ लेते हैं।
ठेकेदारों व अधिकारियों को करेंगे पाबंद
हां, यह सही है कि ठेके पर संचालित जीएसएस पर प्रशिक्षित कर्मचारी नहीं होने से ही हादसे हो रहे हैं। इसमें कुछ हमारे अधिकारियों की लापरवाही भी है, वे समय-समय पर जीएसएस का निरीक्षण नहीं करते। इस व्यवस्था में सुधार के लिए मैंने कल ठेकेदारों व एक्सईएन को अजमेर बुलाया है, उनकी बैठक लेकर सख्त निर्देश दिए जाएंगे। फिर भी सुधार नहीं हुआ और निरीक्षण में कमियां पाई गई तो ठेकेदारों का भुगतान रोका जाएगा।
– मुरारीलाल मीणा, मुख्य अभियंता, अजमेर डिस्कॉम

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