नागौर. सरकारी स्कूलों के सुधार का एक्शन प्लान धरा रह गया है। जबकि इसके लिए केन्द्र सरकार ने करीब तीन साल पहले प्रत्येक स्कूल की मुश्किलें व अपेक्षाएं जानी थी। आलम यह है कि नागौर (डीडवाना-कुचामन) जिले के करीब तीन हजार से अधिक सरकारी स्कूलों में सुधार के लिए चुटकी भर तक ना बजट बढ़ा और ना ही कोई व्यवस्था हो पाई।
सूत्र बताते हैं कि समग्र शिक्षा के तहत मांगे गए इस प्लान में सरकारी स्कूल तो थे ही कस्तूरबा गांधी बालिका व संस्कृत विद्यालय भी शामिल किए गए । यह मात्र एक साल के लिए नहीं करीब चार साल, वर्ष 2022-23, 23-24, 24-25 और 25-26 तक के लिए प्रस्तावित प्लान मांगा गया था। इसके तहत इन स्कूलों की छोटी-छोटी जरुरतों को पूरा करना था। इसमें पीने के साथ कक्षा कक्ष से लेकर सोलर सिस्टम, बिजली, फर्नीचर, खेल मैदान, आईसीटी लैब आदि से हर स्कूल को लैस करना था। विद्यार्थियों के साथ शिक्षकों की संख्या की जानकारी भी मांगी गई थी। करीब 46 प्वॉइंट की यह जानकारी भेजे हुए ढाई साल से अधिक का समय बीत गया। इसके बाद भी कोई प्लान धरातल पर पूरा होता नजर नहीं आया।
सूत्रों का कहना है कि केन्द्र समग्र शिक्षा के तहत राज्य को बजट जारी करता है। फिर यह जिलों में जाता है। अभी के हालत यह है कि नागौर जिले के बीस फीसदी से अधिक स्कूल तो चार-पांच कमरों में ही चल रहे हैं। शौचालय तक सभी स्कूलों में नहीं बन पाए हैं। बस बिजली हर स्कूल तक पहुंच पाई है असलियत तो यह है कि कई सरकारी स्कूलों के भवन जर्जर हो चुके हैं और वे इधर-उधर से गए मांगे भवन में संचालित हो रहे हैं। उस पर भी हालत यह कि कहीं फर्नीचर छोड़ो दरी-पट्टी तक नहीं है।
…क्या ठंडे बस्ते में चली गई मुश्किलें सूत्रों के अनुसार सरकारी स्कूलों की खामियों वाली रिपोर्ट जिला स्तर से राज्य के जरिए केन्द्र के समग्र शिक्षा विभाग तक पहुंचा दी गई। तमाम स्कूलों ने अपनी छोटी-बड़ी मुश्किलों का हवाला देते हुए उसके निस्तारण के साथ बजट की मांग की। यही नहीं कई संस्था प्रधानों ने इसके साथ सुझाव भी दिए पर इनका क्या हुआ, यह अभी तक किसी के समझ में नहीं आया। बजट भी पहले जैसा रहा तो सुधार पर भी कोई विशेष पैकेज अथवा दिशा-निर्देश नहीं मिले। इससे जाहिर होता है कि सरकारी स्कूलों को सुधारने की लम्बी कवायद सिरे से ही खारिज कर दी गई। चार सत्र के लिए प्लानिंग मांगी थी, जिसमें दो सत्र तो गुजर गए।
…नहीं मिल पाए पचास फीसदी के पट्टे असलियत यह है कि करीब चार साल पहले तत्कालीन जिला कलक्टर डॉ जितेंद्र सोनी ने सभी स्कूलों को बिजली कनेक्शन के साथ स्कूल भवन/जमीन के मालिकाना हक व पट्टे की जानकारी चाही थी। वो इसलिए कि काफी स्कूल भवन दानदाताओं के सहयोग से चल रहे थे। इनके पास कोई ऐसा दस्तावेज नहीं है जो इनका हक दर्शाए। ऐसे में डॉ सोनी ने इसकी पहल की, सभी स्कूलों को भवन के दस्तावेज तैयार कराने को कहा। आलम यह है कि अब भी पचास फीसदी स्कूल भवन के पट्टे/दस्तावेज तैयार नहीं है।
चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी नदारद, शिक्षक/ व्याख्याता भी पूरे नहीं सरकारी स्कूलों का स्तर सुधारने की बातें तो खूब होती हैं पर ये सुधरे कैसे। हकीकत यह है कि पिछले पंद्रह साल में रिटायर होकर गए चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी/लिपिक के पद अब भी खाली हैं। अधिकांश स्कूलों से चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी तो अब नदारद हो चुके हैं। सैकण्डरी/सीनियर सैकण्डरी स्कूलों के शिक्षकों का भी यही हाल है, तकरीबन तीस फीसदी पद अब भी खाली हैं। प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक पूरे हैं तो अन्य समस्याएं इतनी हैं जो ठीक ढंग से स्कूल चलने ही नहीं देती।
इनका कहना… हाल ही पदभार संभाला है, सरकारी स्कूलों का स्तर सुधारने का प्रयास जारी है। प्रस्ताव लागू होने में थोड़ा समय लगता है। -रामलाल खराड़ी, मुख्य जिला शिक्षा अधिकारी, नागौर।