शिक्षा के क्षेत्र में स्थापित हो रहे नए आयाम राजस्थान सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) इंडेक्स 2022 में जिला वार रैंकिंग में नागौर का दूसरा स्थान है।जनगणना-2011 के अनुसार साक्षरता में नागौर जिले की साक्षरता दर 62.80 प्रतिशत है। वर्ष 2011 के बाद जिले में शिक्षा के क्षेत्र में एक क्रांति-सी आई है। सरकार ने 2021 की जनगणना अब तक नहीं करवाई है, लेकिन पिछले 14 वर्षों में साक्षरता दर के साथ शिक्षा के क्षेत्र में जिले के विद्यार्थियों ने ऐसे परिणाम दिए हैं, जो बड़े और शिक्षित जिलों में भी नहीं रहे। बोर्ड परीक्षाओं से लेकर कॉलेज व प्रतियोगी परीक्षाओं में भी नागौर व डीडवाना-कुचामन जिले के विद्यार्थियों ने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। इसको देखते हुए पूर्ववर्ती सरकार ने सरकारी कॉलेज भी हर ब्लॉक में खोल दिए, लेकिन विश्वविद्यालय की कमी आज भी महसूस हो रही है।
हर साल कॉलेजों में प्रवेश लेते हैं 40 हजार से अधिक बच्चे दोनों जिलों के आंकड़ों पर नजर डालें तो 12वीं बोर्ड परीक्षाओं में उत्तीर्ण होने वाले विद्यार्थियों की संख्या इस बार 45 हजार से अधिक है, इनमें लगभग आधी बालिकाएं हैं, जिनको अभिभावक दूर भेजने से कतराते हैं। यानी यदि स्थानीय स्तर पर उच्च शिक्षा की सुविधा मिल जाए तो वे पढ़ाने के लिए तैयार हैं। इसके लिए सरकार ने गांवों में भी कॉलेज खोले हैं, लेकिन विश्वविद्यालय का काम पड़ जाए तो उनके अभिभावकों को ही अजमेर जाना पड़ता है। ऐसे में यदि जिले में ही विवि की सुविधा मिल जाए तो छात्राओं के साथ छात्रों को भी सुविधा मिलेगी और आर्थिक बोझ भी कम होगा।
45 हजार से अधिक ने इस बार उत्तीर्ण की 12वीं विज्ञान संकाय – 15075 कलां संकाय – 28964 वाणिज्य संकाय – 908 वरिष्ठ उपाध्याय – 87 कुल उत्तीर्ण हुए – 45036
इस प्रकार स्नातक एवं स्नातकोत्तर की अलग-अलग कक्षाओं में नियमित व स्वयंपाठी कॉलेज विद्यार्थियों की संख्या 2 लाख से पार है। छात्रों को होना पड़ता है परेशान जिले में कॉलेजों की संख्या बढऩे से विद्यार्थियों की संख्या भी बढ़ी है, जिन्हें विश्वविद्यालय से जुड़े हर कार्य के लिए अजमेर जाना पड़ता है। इसके कारण विद्यार्थियों का समय, श्रम और धन नष्ट होता है। वहीं दूसरी तरफ जिले से दूर होने के कारण कई बार कॉलेज से भेजे जाने वाले दस्तावेज व पत्र समय पर नहीं पहुंच पाते हैं, यदि पहुंच जाए तो उनका रिप्लाई नहीं आता और सीधा जुर्माना लगा दिया जाता है। एक प्रकार से विश्वविद्यालय, कॉलेजों से वसूली करने वाले संस्थान बन गए, जो कॉलेज प्रबंधन के लिए सबसे बड़ा सिर दर्द है। ऐसे में यदि जिले में विश्वविद्यालय खोला जाना चाहिए, ताकि कॉलेज प्रबंधन व विद्यार्थी, दोनों को फायदा मिले।
– डॉ. शंकरलाल जाखड़, पूर्व प्राचार्य, श्री बीआर मिर्धा महाविद्यालय, नागौर