समरोह में लोकगायक सत्यपाल सांदू ने कानदान कल्पित रचित अमर गीत ‘आजादी रा रखवाळा, सूता मत रीज्यो रे’ की प्रस्तुति देकर रंग जमाया। युवा गीतकार प्रहलादसिंह झोरड़ा ने ‘झीणा-झीणा धोरियां रै बीच म्हारो गांव है’ गीत प्रस्तुत कर खूब तालियां बटोरी। सम्मानित साहित्यकार दीपसिंह भाटी ने डिंगल के ‘बरसाळा-छंदो’ की उम्दा प्रस्तुति कर डिंगल के नाद सौंदर्य का रसास्वदन करवाया। वीरेन्द्र लखावत ने अपने चिर परिचित अंदाज में राजस्थानी हास्य-व्यंग्य गीत ‘आप अठै आया सगळां नैं रामा-स्यामा’ प्रस्तुत कर मंच सहित सबको लोट-पोट किया। पीएचईडी के एक्सईएन जे.के. चारण ने ‘नित नरां बळबुध देण देवी, सुरां आगल सुरसती’ नाम से वंदना प्रस्तुत कर राजस्थानी के डिंगल स्वरूप से रूबरू करवाया। कार्यक्रम-संयोजक एवं राजस्थानी के साहित्यकार लक्ष्मणदान कविया ने स्वागत-उद्बोधन देते हुए राजस्थान के विभिन्न अंचलों से आए साहित्यकारों एवं साहित्य-हेताळुओं का अभिनन्दन किया।
कार्यक्रम का मंतव्य बताते हुए मंच-संयोजक एवं राजस्थानी साहित्यकार डॉ. गजादान चारण ‘शक्तिसुत’ ने बताया कि संपूर्ण राजस्थान में यह ‘भाषा-उच्छब’ अपनी प्रकृति का एक अकेला कार्यक्रम है, जिसमें एक साथ 16 साहित्यकारों को उनके श्रेष्ठ सृजन के लिए सम्मानित किया जाता है। संपर्णू राजस्थान से ही नहीं वरन प्रवासी राजस्थानी रचनाकारों को भी इस समारोह में पुरस्कृत किया जाता है। इस बार के आयोजन में सम्मानित होने वाले साहित्यकार बीकानेर, जोधपुर, झालावाड़, बाड़मेर, जैसलमेर, कोटा, पाली, चूरू, नागौर जिलों के रहने वाले हैं, वहीं मुंबई से भी एक रचनाकार को इस समारोह में पुरस्कृत किया गया है। राजस्थानी की विविध विधाओं, यथा कविता, कहानी, उपन्यास, बालकाव्य, बालगद्य के साथ ही युवा साहित्यकार सम्मान, नारी सृजन सम्मान आदि क्षेत्रों में उम्दा सृजन करने वाले कलमकारों को 11 हजार रुपए, बखाणपाना, स्मृति चिह्न, राजस्थानी साहित्य, शॉल एवं श्रीफळ प्रदान कर सम्मान किया गया।
पुरस्कार समारोह के आयोजन सचिव एवं नेम प्रकाशन के अध्यक्ष पवन पहाडिय़ा ने बताया कि समारोह में बीकानेर के रवि पुरोहित को नेमीचंद पहाडिय़ा पद्य पुरस्कार, मुम्बई के महेन्द्र मोदी को अमराव देवी पहाडिय़ा गद्य पुरस्कार, जोधपुर की संतोष चौधरी को कमला देवी पहाडिय़ा उपन्यास पुरस्कार, बीकानेर के बाबूलाल छंगाणी को सोहनी देवी सूरजमल पांड््या व्यंग्य पुरस्कार, कोटा के किशनलाल वर्मा को मोहनदान गाडण भक्ति काव्य पुरस्कार, जैसलमेर के दीपसिंह भाटी ‘दीप’ को सोहनदान सिंहढायच डिंगल पुरस्कार, बीकानेर के मदनगोपाल लढा महाजन को सिरदाराराम मौर्य बाल साहित्य गद्य पुरस्कार, डूंगरगढ के श्याम महर्षि को समग्र योगदान के लिए जुगलकिशोर जैथलिया राजस्थानी भाषा सेवा सम्मान, बाड़मेर के महेन्द्रसिंह छायण को छगनमल बेताला युवा पुरस्कार, चूरू के ओमप्रकाश तंवर को पारसमल पांड्या राजस्थानी साहित्य पुरस्कार, बीकानेर की डॉ. कृष्णा आचार्य को मैना देवी पांड्या राजस्थानी लेखिका पुरस्कार, सोजत सिटी के वीरेन्द्र लखावत को चण्डीदान देवकरणोत अनुवाद पुरस्कार, झालावाड़ के शिवचरण सैन शिवा को अमितसिंह चौहान राजस्थानी बाल पद्य पुरस्कार, जोधपुर के श्रीनिवास तिवाड़ी को गोपालसिंह उदावत वय वंदन पुरस्कार व डॉ. जेबा रसीद को पारस देवी बेताला राजस्थानी कहाणी पुरस्कार तथा चूई (डेगाना) के राजस्थानी लोक कलाकार हजारीलाल को सेठ भंवरलाल बेताला राजस्थानी लोककला पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
भाषा-उच्छब में लक्ष्मणदान कविया की ‘समय सार सतसई’ एवं ‘गजलां हंदा गोख’, पवन पहाडिय़ा की ‘छींक, छेती अर छींकी’, डॉ. गजादान चारण की ‘जीवटता री जस जोत’ एवं ‘राजस्थानी साहित्य : साख अर संवेदना’, दीपसिंह भाटी ‘दीप’ की ‘सूरां-पूरां री शौर्यगाथावां’, भंवरलाल कासणिया की ‘दो दुणी पांच’ तथा श्रीनिवास तिवाड़ी की ‘मरुधर री माटी’, ‘तिणकला’ एवं ‘मन में ही रैगी’ आदि कुल 10 राजस्थानी पुस्तकों का लोकार्पण किया गया। कार्यक्रम में कुंजलमाता सेवासंघ के पूर्व प्रबंधक गोपाल पारीक, आयोजन समिति के कार्यकर्ता फतूराम छाबा, साहित्यकार गिरिराज व्यास, रामरतन लटियाल, रामरतन विश्नोई, भा.जी.बी.नि. जायल के दिनेश मीणा, पदमचंद प्रजापत सहित अन्य गणमान्य विद्वानों एवं महानुभावों को सम्मानित किया गया। आयोजन सचिव पवन पहाडिय़ा ने आभार ज्ञापित करते हुए कहा कि उनके अंतरमन में मायड़भाषा के प्रति जो अगाध सम्मान का भाव है, उसे संपूर्ण राजस्थान के साहित्य सेवक और अधिक प्रगाढ़ता प्रदान करते हैं।