मुजफ्फरनगर

निकाय चुनाव: मुजफ्फरनगर सीट, 35 साल से चेयरमैन किसी भी पार्टी का बना, बीच में चार्ज जरूर छीना गया

UP Nikay Chunav: उत्तर प्रदेश निकाय चुनाव में मुजफ्फरनगर ऐसी सीट है, जिसका इतिहास काफी दिलचस्प है।

मुजफ्फरनगरApr 24, 2023 / 09:24 am

Rizwan Pundeer

मुजफ्फरनगर से सपा प्रत्याशी लवली शर्मा(बायें), भाजपा कैंडिडेट मीनाक्षी

मुजफ्फरनगर नगर पालिका सीट से इस चुनाव में बीजेपी की मीनाक्षी स्वरूप, सपा-रालोद से लवली शर्मा, बसपा से रोशन जहां और कांग्रेस की बिलकिस चौधरी के बीच मुख्य मुकाबला माना जा रहा है। चुनाव जीतने के लिए सभी प्रत्याशी जान झोंक रहे हैं लेकिन इस सीट पर चुनाव जीतना ही नहीं कार्यकाल पूरा करना भी बड़ी चुनौती है।
1989 से कोई पूरे कार्यकाल नहीं रहा चेयरमैन
फरवरी, 1989 में मुजफ्फरनगर नगर पालिका चेयरमैन का पद लक्ष्मीचंद सिंघल को मिला था। जून, 1990 में ही उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आया और उनके अधिकार छिन गए। हालांकि हाईकोर्ट से 2 साल बाद 1992 में उनको फिर से चैयरमैन की कुर्सी पर बैठने का मौका मिल गया।

1995 में सीधे चेयरमैन पद के लिए पड़े वोट

मुजफ्फरनगर में 1995 में जनता ने सीधे वोट देकर चेयरमैन चुना। भाजपा के डॉ. सुभाष चंद शर्मा ने चुनाव जीता। डॉ सुभाष शर्मा दिसंबर 1995 से दिसंबर 1999 तक पद पर रहे। इसके बाद उनको अविश्वास प्रस्ताव के चलते कुर्सी छोड़नी पड़ी। इसके बाद एक साल तक प्रशासक नियुक्त रहा।
साल 2000 में चुनाव हुए। भाजपा नेता जगदीश भाटिया चेयरमैन बने। भाटिया करप्शन के आरोपों से घिरे और 2004 को उन्हें पद से हटना पड़ा। हालांकि कोर्ट से उनको राहत मिली और उन्हें चार्ज वापस मिल गया।

मौजूदा मंत्री कपिल भी भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे
मौजूदा योगी सरकार में मंत्री कपिल देव अग्रवाल साल 2006 में भाजपा से मुजफ्फरनगर नगर पालिका के अध्यक्ष बने। भ्रष्टाचार के आरोप उन पर लगे। नवंबर 2006 में पद संभालने वाले कपिल देव को भ्रष्टाचार के आरोपों में जून 2009 में हटा दिया गया। कपिल हाईकोर्ट पहुंचे तो करीब डेढ़ महीने बाग उनको फिर से चार्ज मिला। कपिल, 2011 तक चेयरमैन रहे।

कपिल देव अग्रवाल मुजफ्फरनगर का विधायक बनने से पहले चेयरमैन रह चुके हैं। IMAGE CREDIT:

2012 और 2017 में कांग्रेस ने जीता चुनाव
जुलाई, 2012 में मुजफ्फरगर के बड़े कारोबारी परिवार से आने वाले पंकज अग्रवाल ने चुनाव जीता पंकज अग्रवाल को अप्रैल 2017 को भ्रष्टाचार के आरोप में हटा दिया गया। पंकज अग्रवाल के ही परिवार की हीं अंजू अग्रवाल ने 2017 में कांग्रेस के सिंबल पर चुनाव जीता। बाद में वो भाजपा में शामिल हो गईं। अंजू ने सत्तारूढ़ पार्टी का दामन थामा लेकिन कार्यकाल पूरा नहीं कर सकीं। जुलाई 2022 को उनके वित्तीय अधिकार सीज कर दिए गए। उन्होंने हाईकोर्ट में इसको चुनौती दी और उनको कोर्ट से राहत भी मिली। हालांकि उनको चार्ज मिलने के कुछ समय बाद ही चुनाव घोषित हो गया।

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