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कई पीढ़ियों से लोग खा रहे हैं इस चक्की का पिसा आटा जानकारी के अनुसार पानी से चलने वाली आटा चक्की का पिसा हुआ आटा एकदम ठंडा होता है। यह भारत की सबसे पुरानी चक्की बताई जाती है। इस चक्की का निर्माण अंग्रेजों के जमाने में 1850 में किया गया था और तब से लेकर अब तक कई पीढ़ियां लगातार इस चक्की का पिसा आटा खा रही है। ठंडा होता है यहां का पिसा आटा इस पनचक्की की विशेषता यह है कि नहर में पानी आने पर यह पानी से चलती है और इसका पिसा हुआ आटा ठंडा होता है। साथ ही बताया जा रहा है कि इस चक्की में पिसा आटा चार से छह महीने तक खराब नहीं होता। दूसरी विशेषता यह है कि इस पनचक्की में जिस पत्थरों से आटा पिसा जाता है, वह कुदरती हैं। जबकि आजकल की चक्कियों में मसाले द्वारा तैयार किए गए पत्थरों का इस्तेमाल होता है। इसलिए इस चक्की के पिसे आटे को खाने से पथरी जैसे अन्य रोग नहीं होते और गेहूं के सभी गुण यहां से पिसे आटे में विद्यमान रहते हैं।
पनचक्की को विरासत मानते हैं लोग निरगाजनी के आस-पास के लगभग 20 गांवों के लोग इस पनचक्की को अपने बुजुर्गों की विरासत मानते हैं। सरकार ने भी इस ओर काफी ध्यान दिया है और इस पनचक्की का जीर्णोद्धार किया है। इस पनचक्की को देखने के लिए बहुत दूर-दूर से लोग भी आते हैं, जबकि मुज़फ्फरनगर के आस-पास के लोग तो यहां पर आटा पिसवाने के लिए आते हैं। लोगों के बीच इस पनचक्की को लेकर ऐसी भावना है कि इसका पिसा हुआ आटा खराब नहीं होता। इस चक्की की एक और खास विशेषता है कि यहां पर तौलने के लिए कोई तराजू नहीं लगा हुआ है। यहां पिसाई साठ रुपए प्रति कुन्तल के हिसाब से होती है। इस चक्की में ग्राहक को खुद ही अपना आटा पीसना पड़ता है।
एक घंटे में पिसता है करीब ढ़ाई क्विंटल गेहूं मुजफ्फरनगर के भोपा थाना इलाके के निरगाजनी नहर (निरगाजनी झाल) पर बनी यह चक्की पानी से चलती है। नहर का पानी लोहे के बड़े-बड़े पंखों के ऊपर गिरता है, जिससे कि वो घूमते हैं और चक्की चलती है। यहां पर छह चक्कियां लगी हुई है, जो कि एक घंटे में लगभग दो सौ चालीस किलोग्राम गेहूं की पिसाई कर देती है। यह चक्की सिंचाई विभाग के अधीन आती है, जो उसे सालाना ठेके पर देता है। इस पनचक्की पर आटा पिसवाने के लिए मुजफ्फरनगर के निरगाजनी से लगे हुए करीब तीन दर्जन से अधिक गांव आटा पीसने आते हैं।