खतौली आरएलडी का लंबे समय तक मजबूत गढ़ रही है तो बीते दो चुनान में भाजपा ने यहां से जीत हासिल की है। बसपा भी खतौली में अपनी अच्छी उपस्थिति दर्ज कराती रही है।
खतौली के आंकड़ें देखें तो पता चलता है कि बसपा का कोर वोटर या कहिए कि दलित वोटर इस चुनाव में हार जीत का फैसला करने जा रहे हैं। हमारे इस बात को कहने के पीछे कुछ मजबूत तर्क और आंकड़े हैं, जिनको हम आपके साथ साझा कर रहे हैं।
सबसे पहले खतौली में वोटों का जातिगत गणित
खतौली विधानसभा सीट पर राजनीतिक दल गुर्जर-जाट और सैनी कैंडिडेट ज्यादा उतारते रहे हैं, लेकिन यहां सबसे ज्यादा वोटर दलित है। इस सीट पर करीब तीन लाख मतदाता है, जिनमें 27 फीसदी मुस्लिम 73 फीसदी हिंदू मतदाता हैं।
खतौली विधानसभा सीट पर राजनीतिक दल गुर्जर-जाट और सैनी कैंडिडेट ज्यादा उतारते रहे हैं, लेकिन यहां सबसे ज्यादा वोटर दलित है। इस सीट पर करीब तीन लाख मतदाता है, जिनमें 27 फीसदी मुस्लिम 73 फीसदी हिंदू मतदाता हैं।
हिन्दू वोटों में करीब 60 हजार दलित हैं। इसके बाद 30 हजार सैनी और करीब 27 हजार गुर्जर हैं। इनके अलावा जाटों के भी इस सीट पर 24 हजार वोट हैं। खतौली में बीते 4 चुनावों का एक विश्लेषण हम आपके सामने कर रहे हैं। साथ ही इस साल हुए चुनाव के वोटों के हिसाब से भी हम समझेंगे कि क्या उपचुनाव में नतीजा पलट सकता है? यानी आरएलडी यहां जीत सकती है?
4 चुनावों से बीएसपी के वोट घट रहे, भाजपा के बढ़ रहे
खतौली में 2007 से 2022 तक के विधानसभा चुनाव को देखें तो हर चुनाव में भाजपा के वोट बढ़े हैं। दूसरी तरफ बसपा के वोट घटते रहे हैं।
2007 में बसपा के योगराज सिंह खतौली से जीते थे। उनको करीब 32 फीसदी वोट मिले थे। योगराज सिंह की जीत में दलित वोटों की एकजुटता सबसे बड़ी वजह रही थी। चुनाव में दूसरे नंबर पर आरएलडी और तीसरे पर समाजवादी पार्टी रही थी। वहीं बीजेपी के सुधीर कुमार सिर्फ 8.6% वोट पाए थे।
2007 के बाद बसपा का ग्राफ गिरने लगा तो भाजपा का चढ़ने लगा। 2012 में आरएलडी के करतार भड़ाना 27.45 फीसदी वोट लेकर खतौली से जीते। बसपा इस चुनाव में 24 फीसदी वोटों के साथ दूसरे नंबर पर रही। भाजपा को इस दफा 11.29 फीसदी वोट मिले।
इसके बाद 2017 में हुए चुनाव में भाजपा के विक्रम सैनी 44.54 फीसदी वोट लेकर ये सीट जीत गए। दूसरे तो बसपा इस बार 17.56% वोटों के साथ तीसरे नंबर पर खिसक गई। 2022 के विधानसभा इलेक्शन में विक्रम सैनी 45.34% वोट हासिल करते हुए विधायक बने। बसपा इस चुनाव में और नीचे खिसकते हुए 14 पीसदी वोटों पर आ गई।
भाजपा की तरफ खिसका दलित वोट?
खतौली के बीते चारों चुनावों को देखें तो बसपा का वोट भाजपा की ओर जाता हुआ दिखता है। आरएलडी और सपा के वोट भी इन चुनावों में कम ज्यादा होते रहे। खासतौर से 2017 में भाजपा के वोट बढ़ने में आरएलडी का भी हाथ था, जब आरएलडी को महज 2 फीसदी वोट मिले। लेकिन आरएलडी ने 2002 में वापसी भी की जबकि बसपा घटती ही रही है।
खतौली के बीते चारों चुनावों को देखें तो बसपा का वोट भाजपा की ओर जाता हुआ दिखता है। आरएलडी और सपा के वोट भी इन चुनावों में कम ज्यादा होते रहे। खासतौर से 2017 में भाजपा के वोट बढ़ने में आरएलडी का भी हाथ था, जब आरएलडी को महज 2 फीसदी वोट मिले। लेकिन आरएलडी ने 2002 में वापसी भी की जबकि बसपा घटती ही रही है।
इन आंकड़ों को देखने के बाद कहा जा सकता है कि उपचुनाव में भी भाजपा की राह आसान है। बसपा के ना होने का फायदा भी भाजपा को होने की बात कही जा सकती है लेकिन ये जल्दबाजी होगी। इसकी एक मजबूत वजह है।
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खतौली विधानसभा: कभी जाटों का रहा कब्जा, राकेश टिकैत भी यहीं से लड़े थे जिंदगी का पहला चुनाव रालोद पाट लेगा 2022 के हार-जीत के अंतर को?2022 के चुनाव में आरएलडी कैंडिडेट को 16 हजार वोटों से हार मिली थी। तब आरएलडी से राजपाल सैनी लड़े थे। रालोद के राजपाल सैनी की हार की एक बड़ी वजह उनको अपनी जाति के वोट ना मिलना माना गया था। वहीं दलित वोट बड़ी तादाद में भाजपा को चला गया था।
इस बार आरएलडी ने सैनी के बजाय गुर्जर कैंडिडेट उतारा है और वो इस अंतर को पाट सकती है। आंकड़ों से समझते हैं। इस साल हुए चुनाव में भाजपा के विक्रम सैनी को 1 लाख, रालोद के राजपाल सैनी को 84 हजार और बसपा के करतार भड़ाना को 31 हजार वोट मिले थे।
अब रालोद को किस आधार पर जीतने की उम्मीद
राष्ट्रीय लोकदल ने इस बार गुर्जर उम्मीदवार उतारा है। खतौली में गुर्जरों का सजातीय कैंडिडेट को वोट देना का लंबा इतिहास रहा है। ऐसे में रालोद को गुर्जरों का वो वोट मिल सकता है जो पिछले चुनाव में करतार भड़ाना को गुर्जर होने के चलते मिला था।
राष्ट्रीय लोकदल ने इस बार गुर्जर उम्मीदवार उतारा है। खतौली में गुर्जरों का सजातीय कैंडिडेट को वोट देना का लंबा इतिहास रहा है। ऐसे में रालोद को गुर्जरों का वो वोट मिल सकता है जो पिछले चुनाव में करतार भड़ाना को गुर्जर होने के चलते मिला था।
बीते चुनाव में बसपा की हालत काफी ज्यादा खराब रही थी। इसके बावजूद उनको जो वोट मिले, उनको लेकर विश्लेषक मानते हैं कि वो भाजपा के पक्ष में जाने वाला वोट नहीं है। ऐसे में अगर राष्ट्रीय लोकदल को बीएसपी को 2022 में मिले वोट का बड़ा हिस्सा और गुर्जरों का साथ मिला तो उसका गुर्जर-जाट-मुस्लिम समीकरण काम कर जाएगा। इस स्थिति में राष्ट्रीय लोकदल 16 हजार के अंतर को पाटकर जीत दर्ज सकता है।