जयंत के कारवां ना रुकने देने की बात कहने के पीछे 2018 के उपचुनाव से लिया एक सबक लगता है। 2018 में फूलपुर, कैराना और गोरखपुर लोकसभा पर उपचुनाव हुए थे। सपा-रालोद साथ लड़े थे और भाजपा को तगड़ा झटका दिया था।
फूलपुर, गोरखपुर में सपा तो कैराना में राष्ट्रीय लोकदल ने जीत हासिल की थी। उस वक्त राजनीति के जानने वालों को लगा था कि ये गठबंधन 2019 में भाजपा पर भारी पड़ेगा लेकिन लोकसभा के आम चुनाव में कारवां रुक गया। यहां तक कि 2019 लोकसभा में अजित सिंह और जयंत चौधरी दोनों अपना-अपना चुनाव हार गए।
आज जब जयंत कह रहे हैं कि ये कारवां रुकना नहीं चाहिए तो उनका इरादा साफ दिखता है कि मैदान एक मिनट के लिए भी खाली नहीं छोड़ना है। खतौली की जीत से जो उत्साह कार्यकर्ताओं में बना है, जो उम्मीद भाजपा को पसंद ना करने वाले वोटर में बनी है। उसको बनाए रखना है और इसके लिए लोगों के बीच रहना है।
साइलेंट स्ट्रेटजी 3: चौधरी ने खतौली से एक फॉर्मूला निकाला है, क्या उसे ही प्रदेश में ले जाएंगे? जयंत ने अपने समरसता अभियान के बारे में बताया है कि हर दिन गांव 10 से 15 गांव में बैठके होंगी। इसमें सिर्फ जयंत नहीं बोलेंगे, बल्कि लोगों को भी जयंत से अपनी बात कहने का मौका मिलेगा।
हम इसे जयंत का ‘खतौली फॉर्मूला’ कह सकते हैं…
रविवार को मुजफ्फरनगर में जयंत ने जो सभा की है, उतनी बड़ी एक भी सभा उन्होंने खतौली उपचुनाव के दौरान नहीं की।
खतौली फॉर्मूलाः खतौली में उन्होंने नुक्कड़ सभाएं कीं। इतना ही नहीं 3 गावों में तो उन्होंने घर-घर वोटर पर्ची बांटीं। जयंत के भाषणों में भी गन्ना भाव और नौकरी की बातें रहीं। लोगों से जुड़ने के इसी तरीके को हम जयंत का खतौली फॉर्मूला कह रहे हैं।
जयंत जब खतौली में लोगों के बीच वोटर पर्ची लेकर गए तो लोगों ने भी उन्हें कई बातें बताईं। उनको सलाह-मशविरा भी दिया। अब वो एक साल तक गांव-गांव जाकर यही सब करने जा रहे हैं।
वो लोगों के बीच बैठकर समझना चाहते हैं कि जमीन पर चल क्या रहा है। ताकि एक सीधा कनेक्शन लोगों से बने। जिससे वो पार्टी को मजबूत करें और फिर चुनाव में भी इस्तेमाल कर सकें।
जयंत चौधरी यूपी और खासतौर से पश्चिमी यूपी के लोगों के चौधरी चरण सिंह से जुड़ाव की बातें करते हैं। चरण सिंह के सपनों को पूरा करने की बात करते हैं। चरण सिंह और राष्ट्रीय लोकदल से किस तरह पश्चिम यूपी के नेता और लोग जुड़े हैं, इसके दो इंट्रेस्टिंग किस्से मैं आपको सुनाते हैं।
पहला किस्सा, 2018 के कैराना उपचुनाव का… राष्ट्रीय लोकदल ने सपा से आईं तबस्सुम हसन को टिकट दे दिया। एक पत्रकार ने जयंत से दूसरे दल का उम्मीदवार चुनने पर सवाल किया। जयंत ने जवाब दिया, “तबस्सुम हमारे लिए कैसे बाहरी हो गईं? 2007 में उनको सरधना से विधानसभा का पहला चुनाव हमने ही लड़ाया था, वो हार गईं ये अलग बात है। अब वो फिर हमारी पार्टी से लड़ रही हैं।”
दूसरा किस्सा, इसी साल हुए विधानसभा चुनाव का… राष्ट्रीय लोकदल ने मीरापुर विधानसभा से उम्मीदवार बनाया चंदन चौहान को। चंदन सपा में थे और कई लोगों के लिए चौंकाने वाली बात थी कि वो RLD के सिंबल से लड़ेंगे।
जयंत से सवाल हुआ तो उन्होंने कहा, “चंदन के पिता संजय चौहान और मैं दोनों 2009 के चुनाव में लोकदल से जीतकर लोकसभा गए थे। हम संसद के साथी थे। चंदन खुद हमारी युवा शाखा में रह चुके हैं। वो कैसे हमारे लिए नए हो गए।”
ये दो उदाहरण ये बताने के लिए हैं कि यूपी में चरण सिंह और अजित सिंह का तकरीबन हर क्षेत्र से जुड़ाव रहा है। चरण सिंह का बहुत सम्मान इस पूरे क्षेत्र में हैं। जयंत चौधरी चाहते हैं कि उनसे, उनके दल से दूर हुए लोग फिर से जुड़ें। वो जानते हैं कि इसके लिए लोगों के बीच जाकर चौधरी चरण सिंह को और उनके कामों को याद दिलाना बहुत मददगार हो सकता है।
शामली और मुजफ्फरनगर की तो 9 में से 6 सीट रालोद के पास हैं और 2 पर सपा काबिज है। खासतौर से खतौली उपचुनाव की जीत ने उनका हौसला बढ़ाया है।
ऐसा लगता है कि बीते एक दशक के अनुभव के बाद भाजपा से लड़ने की एक रणनीति जयंत ने बना ली है। वो ये जान गए हैं कि बीजेपी से लड़ना है तो 24 घंटे एक्शन में रहना होगा। ऐसे में अब वो उपचुनाव में जीत के साथ कुछ आराम के बजाय दोगुने उत्साह से जुटना चाहते हैं।
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वैसे भी कई दशक पहले चरण सिंह ने कहा था कि देश की खुशहाली का रास्ता खेत-खलिहान से होकर जाता है। लगता है जयंत ने दादा की बात याद करते हुए खेत खलिहान की पगडंडी पकड़ने का फैसला लिया है। उनके और उनके दल के लिए ये रास्ता कितनी खुशहाली लाएगा, ये 15 महीने बाद हमारे-आपके सामने होगा।