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हालांकि चुनाव की घोषणा के समय अखिलेश यादव के बारे में कहा जा रहा था कि वे कम से कम एक जनसभा को संबोधित करेंगे। लेकिन अंतिम समय तक वह नहीं पहुंचे। जबिक बसपा सुप्रीमो मायावती ने तो पहले ही घोषणा कर दी थी कि उनका कोई प्रत्याशी मैदान में नहीं उतरेगा। सपा सूत्रों का कहना है कि अखिलेश यादव एक रणनीति के तहत कैराना में चुनाव प्रचार करने नहीं आए। दरअसल पार्टी को आशंका थी कि उनकी जनसभा के कारण कहीं वोटों का ध्रुवीकरण न हो जाए, जिसका लाभ भाजपा को मिल सकता है। आशंका इसलिए थी कि यहां जाट, गुर्जर और मुस्लिम आबादी बड़ी संख्या में है और विपक्ष भाजाप की निगाह मुख्य रूप से इसी वोट बैंक पर है।
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भाजपा ने कैराना उपचुनाव में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ व उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य सहित यूपी के कई मंत्रियों व केंद्रीय मंत्री सत्यपाल सिंह, मुजफ्फरनगर सांसद संजीव बालियान, राज्यसभा सांसद कांता कर्दम के अलावा कई अन्य नेताओं ने कमान संभली। वहीं रालोद की तरफ से खुद चौधरी अजीत सिंह व उऩके बेटे जयंत चौधरी अपने अन्य नेताओं के साथ जी-जान से प्रचार अभियान में लगे रहे।
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अखिलेश के प्रचार न करने पर सीएम योगी ने साधा निशाना
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सहारनपुर में चुनावी जनसभा के दौरान सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव पर निशाना साधते हुए कहा कि था कि उन पर ‘मुजफ्फरनगर दंगों का कलंक है।’ इसलिए वे कैराना उपचुनाव में प्रचार करने नहीं आए। सीएम योगी ने कहा कि इस उपचुनाव में सपा ने दूसरों के कंधे पर रखकर बंदूक चलाने की कोशिश की है। दरअसल उनका इशारा सपा के समर्थन से कैराना में तबस्सुम हसन को रालोद प्रत्याशी बनाने की ओर था।
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सीएम योगी ने कहा कि सपा अध्यक्ष में इतनी हिम्मत नहीं कि वह पश्चिमी यूपी में आकर यहां की जनता के बीच अपनी बात कह सकें क्योंकि उन पर ‘मुजफ्फरनगर दंगे का कलंक है। सीएम योगी ने यह भी आरोप लगाया कि हमसे पहले की सरकारों ने जाति, धर्म और संप्रदाय के आधार पर नीतियां बनाईं, लेकिन भाजपा ने इस आधार पर कोई नीति नहीं बनाई, बल्कि सबका साथ-सबका विकास के आधार पर नीतियां बनाईं।