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मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, अपनी याचिका में दंगा पीड़ित इमरान ने उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार को निर्देशित करने के लिए शीर्ष अदालत के हस्तक्षेप की मांग की है। उन्होंने अपनी याचिका में लिखा है कि उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ को निर्देश दिए जाएं कि वे अपने उन प्रयासों को बंद कर दें, जिनका उद्देश्य अपने अधिकारियों को अभियोजन पक्ष द्वारा केस वापस लेने के लिए मजबूर किया जा रहा है। इमरान ने दावा किया कि केसों को वापस लेने से कई शक्तिशाली स्थानीय नेताओं को कथित रूप से लाभ होगा, जिन पर दंगों के समय से सांप्रदायिक हवा बनाने के उद्देश्य से घृणास्पद भाषणों का उपयोग करने के आरोप हैं।
दंगे में 60 लोगों की हुई थी मौत
गौरतलब है कि अगस्त-सितंबर 2013 में पूरे देश को हिला देने वाले इस सांप्रदायिक दंगों में करीब 60 लोगों की मौत हो गई थी। इस दौरान सैकड़ों लोग घायल हो गए थे। इस दंगे के कारण 50,000 से अधिक लोगों को विस्थापन का दर्द झेलना पड़ा था।
ये हैं मुजफ्फरनगर दंगे के मुख्य आरोपी
दरअसल, मुजफ्फरनगर दंगे पूर्व केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान, विश्व हिंदू परिषद (विहिप) की नेत्री साध्वी प्राची, खतौली से भाजपा विधायक उमेश मलिक और योगी सरकार में मंत्री सुरेश राणा के साथ ही भाजपा सांसद भारतेंदु सिंह पर दंगों के दौरान भीड़ को उकसाने और सांप्रदायिक सौहार्द्र बिगाड़ने के आरोप हैं।
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केस वापस लेने के लिए अब तक के प्रयास
गौरतलब है कि शामली और मुज़फ़्फ़रनगर के अलग-अलग थानों में 1,450 लोगों के खिलाफ 500 से अधिक मामले दर्ज किए गए थे। हालांकि, साल के शुरुआत में राज्य के क़ानून विभाग ने मुज़फ़्फ़रनगर और शामली के जिला अधिकारियों को दो पत्र भेजे और उनसे इन मामलों को वापस लेने की संभावनाओं पर राय मांगी थी। इसके कुछ दिनों बाद मुख्यमंत्री योगी अदित्यनाथ ने भाजपा नेताओं और हिंदुओं के खिलाफ दर्ज 131 मामलों को वापस लेने की प्रक्रिया को शुरू करने के निर्देश जारी किए थे। गौरतलब है कि सीएम आदित्यनाथ का यह फैसला उच्च स्तर के खाप पंचायत प्रतिनिधिमंडल की बैठक के बाद आया था, जिसका नेतृत्व बालियान ने किया था। इसके बाद राज्य सरकार को मामले वापस लेने का मसौदा पेश किया गया था।