एथनॉल फ्यूल के बारे कितना जानते हैं आप, जानें पेट्रोल-डीजल के इस विकल्प LGBTQ से कतराती हैं कंपनियां – देखा जाता है कि अक्सर कॉर्पोरेट कंपनियां अनमैरिड पार्टनर्स और LGBTQ को इंश्योरेंस स्कीम में शामिल करने से डरती रहती हैं। दरअसल इन कंपनियों का कहना है कि भारत के परप्रेक्ष्य में अनमैरिड कपल के लीगल स्टेटस और राइट्स को लेकर तस्वीर साफ नहीं होती है, इसलिए कंपनियां उन्हें इंश्योरेंस कवर देने से झिझकती हैं। हलांकि गोदरेज ग्रुप, अक्सेंचर और आईबीएम जैसी कई कंपनियां एलजीबीटीक्यू एंप्लॉयीज के जोड़ीदारों के लिए मेडिकल इंश्योरेंस ऑफर करती हैं। लेकिन ज्यादातर कंपनियां लिव इन पार्टनर्स और समलैंगिक पार्टनर्स को ये फैसिलिटी नहीं देती हैं।
वीडियो में देखें tata hexa के बंद होने की पूरी सच्चाई इन शर्तों पर मिलेगी पॉलिसी- खेतान ऐंड कंपनी में पार्टनर अंशुल प्रकाश का कहना है कि हमारे देश में इस का दुरूपयोग हो सकता है इसीलिए हम अपने क्लाइंट्स को पॉलिसी देने से पहले कुछ शर्त रखने की सलाह देते हैं क्योंकि लिव-इन रिलेशनशिप कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं है। और भविष्य में किसी भी तरह का मनमुटाव होने पर कंपनी को एक एम्प्लॉयर के रूप में एक स्टैंड लेना पड़ेगा। इसीलिए हम अपने क्लाइंट को सलाह देते हैं कि पहले यह देखे कि जो कर्मचारी इंश्योरेंस का फायदा लेना चाहता है, वह दो-तीन साल से लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहा हो।’
दुरूपयोग होने की है संभावना- लिव इन पार्टनर्स का कॉंसेप्ट भारत के लोगों के लिए नया है और यह पश्चिमी देशों की तरह मैच्योर नहीं हुआ है ऐसे में इसके दुरूपयोग के चांसेज बढ़ जाते हैं, खास-तौर पर जब लिव-इन पार्टनर की परिभाषा ही साफ न हो।