अक्सर भगवा शॉल ओढ़कर भाषण देने वाले राज ठाकरे अपने बेबाक अंदाज के लिए जाने जाते हैं। हाल के वर्षों में उन्होंने एक हिंदू जननेता के रूप में अपनी छवि बनाने की कोशिश की। राज ठाकरे की ये छवि बीजेपी के हिंदुत्ववादी रुख से मेल खाती है। जब चचेरे भाई उद्धव ठाकरे सत्ता में थे, तब राज ने मस्जिदों में लगे लाउडस्पीकर का मुद्दा उठाया था, फिर टोल को लेकर एकनाथ शिंदे सरकार को घेरने की कोशिश की थी।
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शिवसेना और एनसीपी के बावजूद बीजेपी को मनसे की जरूरत क्यों है? बीजेपी सिर्फ एक विधायक वाली पार्टी से गठबंधन क्यों करना चाहती है? दिलचस्प बात यह है कि भले ही सत्ताधारी महायुति गठबंधन में तीन बड़े दल हैं, लेकिन बीजेपी मनसे को अपने साथ लेने के लिए उत्सुक है, वो भी तब जब तीन दलों में सीटों के बंटवारे की गुत्थी नहीं सुलझ रही है। इसके पीछे एक अहम वजह है ‘ठाकरे ब्रांड’। राज ठाकरे शिवसेना के संस्थापक स्वर्गीय बालासाहेब ठाकरे के भतीजे है और उन्हीं की स्टाइल में फायर ब्रांड राजनीति करने के लिए जाने जाते हैं।
मुंबई में ‘ठाकरे ब्रांड’
पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन ने मुंबई की सभी छह सीटों पर जीत हासिल की थी. दोनों पार्टियों को 3-3 सीटें मिलीं। लेकिन इसके बाद बीजेपी और शिवसेना अलग हो गई। फिर शिवसेना में फूट पड़ गई. तीन में से दो सांसद शिवसेना (एकनाथ शिंदे) के साथ चले गए। लेकिन पार्टी का नाम और उसका सिंबल गंवाने वाले उद्धव ठाकरे आज भी मुंबई की सियासत में हावी हैं। उद्धव को शिकस्त देने के लिए बीजेपी को ‘ठाकरे ब्रांड’ की जरुरत है। इसके अलावा मुंबई के साथ-साथ राज ठाकरे की मनसे का ठाणे, नासिक में भी अच्छा जनाधार है।
‘ठाकरे’ बनाम ‘ठाकरे’
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि एकनाथ शिंदे के विद्रोह से शिवसेना में फूट पड़ी, इस वजह से शिवसेना के कोर वोटरों की सहानुभूति उद्धव ठाकरे से है। मुंबई, ठाणे समेत राज्य के कोंकण बेल्ट में उद्धव ठाकरे बाजी पलट सकते है। सहानुभूति के दम पर ठाकरे की मुंबई में वापसी हो सकती हैं। इस वापसी का फायदा बाद में उन्हें बीएमसी चुनाव और राज्य विधानसभा चुनाव में भी मिलेगा। इसलिए बीजेपी उद्धव ठाकरे को रोकने के लिए राज ठाकरे को ढाल की तरह इस्तेमाल करना चाहती है।
मुंबई में ‘ठाकरे ब्रांड’
पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन ने मुंबई की सभी छह सीटों पर जीत हासिल की थी. दोनों पार्टियों को 3-3 सीटें मिलीं। लेकिन इसके बाद बीजेपी और शिवसेना अलग हो गई। फिर शिवसेना में फूट पड़ गई. तीन में से दो सांसद शिवसेना (एकनाथ शिंदे) के साथ चले गए। लेकिन पार्टी का नाम और उसका सिंबल गंवाने वाले उद्धव ठाकरे आज भी मुंबई की सियासत में हावी हैं। उद्धव को शिकस्त देने के लिए बीजेपी को ‘ठाकरे ब्रांड’ की जरुरत है। इसके अलावा मुंबई के साथ-साथ राज ठाकरे की मनसे का ठाणे, नासिक में भी अच्छा जनाधार है।
‘ठाकरे’ बनाम ‘ठाकरे’
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि एकनाथ शिंदे के विद्रोह से शिवसेना में फूट पड़ी, इस वजह से शिवसेना के कोर वोटरों की सहानुभूति उद्धव ठाकरे से है। मुंबई, ठाणे समेत राज्य के कोंकण बेल्ट में उद्धव ठाकरे बाजी पलट सकते है। सहानुभूति के दम पर ठाकरे की मुंबई में वापसी हो सकती हैं। इस वापसी का फायदा बाद में उन्हें बीएमसी चुनाव और राज्य विधानसभा चुनाव में भी मिलेगा। इसलिए बीजेपी उद्धव ठाकरे को रोकने के लिए राज ठाकरे को ढाल की तरह इस्तेमाल करना चाहती है।
मराठी अस्मिता और मराठी मानुस
हिंदुत्व को मुद्दा बनाकर शिंदे सेना और बीजेपी उद्धव ठाकरे पर निशाना साध रही है, जबकि उद्धव पलटवार में भ्रष्टाचार, कुशासन, मराठी अस्मिता, उद्योगों को गुजरात ले जाने जैसे मुद्दों को उठा रहे हैं। अगर राज ठाकरे इन मुद्दों का जवाब दे तो बीजेपी के लिए ज्यादा फायदेमंद होगा। क्योंकि बाला साहेब के मार्गदर्शन में ‘नेता’ बने राज ठाकरे महाराष्ट्र धर्म, मराठी अस्मिता जैसे मुद्दों पर प्रभावी ढंग से पलटवार करना बखूबी जानते है। मनसे ने शुरुआत में मराठी मानुस का मुद्दा उठाया था, जिससे राज्य में उसकी नींव मजबूत हुई।
विचारधारा की लड़ाई
शिंदे की शिवसेना और बीजेपी लगातार उद्धव ठाकरे की आलोचना यह कहते हुए करती है कि उन्होंने कांग्रेस के साथ महाविकास आघाडी गठबंधन में शामिल होकर बालासाहेब ठाकरे की विचारधारा को त्याग दिया है। उधर, पिछले कुछ सालों से मनसे खुद को एक आक्रामक हिंदुत्व दल के तौर पर पेश कर रही है। इसलिए बीजेपी के साथ जाने पर उन्हें विचारधारा की कोई दिक्कत नहीं होगी। इसके विपरीत, बीजेपी वोटरों के बीच यह संदेश देने की कोशिश करेगी कि वह राज को लेकर बाला साहेब के हिंदुत्ववाद के रास्ते पर चल रहे हैं।