scriptThackeray Vs Shinde: कैसे होगा ‘असली शिवसेना’ का फैसला? इन बिंदुओं से समझें चुनाव आयोग की प्रक्रिया | Thackeray Vs Shinde: How will the 'real Shiv Sena' decide? Understand the process of Election Commission from these points | Patrika News
मुंबई

Thackeray Vs Shinde: कैसे होगा ‘असली शिवसेना’ का फैसला? इन बिंदुओं से समझें चुनाव आयोग की प्रक्रिया

महाराष्ट्र में सत्ता संघर्ष को लेकर दायर याचिकाओं पर 27 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सुनवाई की। सभी पक्षों की दिनभर दलीलें सुनने के बाद पीठ ने उद्धव खेमे की याचिका खारिज कर दी। जब पार्टी में दो खेमे बने हुए हों या यह पता लगाना मुश्किल हो कि किसी खेमे के पास बहुमत हैं, तो आयोग पार्टी के चिह्न को फ्रीज कर सकता है। इसके साथ ही वह खेमों को नए नाम के साथ रजिस्टर करने की इजाजत देता है।

मुंबईSep 28, 2022 / 06:26 pm

Siddharth

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Eknath Shinde and Uddhav Thackeray

मंगलवार को महाराष्ट्र की सियासी जंग में बड़ा दिन साबित हुआ। एक तरफजहां सुप्रीम कोर्ट ने सीएम एकनाथ शिंदे खेमे की याचिका को लेकर सुनवाई पर रोक की मांग कर रही उद्धव ठाकरे की याचिका को खारिज कर दिया। इस मामले पर न सिर्फ महाराष्ट्र बल्कि पूरे देश का ध्यान था। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्शन कमिशन को ‘असली शिवसेना’ का फैसला करने का आदेश दिया है। अब चुनाव आयोग पार्टी के ‘धनुष-बाण’ चुनाव चिह्न पर भी फैसला लेगा।
दूसरी तरफ मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने कहा कि इस मामले में चुनाव आयोग निष्पक्ष रहेगा। शिवसेना और चुनाव चिह्न के दावे पर निर्णय ‘बहुमत’ के आधार पर ही लिया जाएगा। दरअसल, चुनाव चिह्न से जुड़े मामलों को सुलझाने के लिए चुनाव आयोग इलेक्शन सिम्बल्स (रिजर्वेशन एंड अलॉटमेंट) ऑर्डर 1968 की मदद लेता है। इसके पैराग्राफ 15 के माध्यम से चुनाव आयोग दो खेमों के बीच में पार्टी के नाम और चिह्न के दावे पर निर्णय लेता है।
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समझें पूरी प्रक्रिया

* पैराग्राफ 15 के तहत चुनाव आयोग ही एकमात्र प्राधिकरण है, जो विवाद या विलय पर निर्णय ले सकता है। प्राथमिक रूप से चुनाव आयोग राजनीतिक दल के भीतर संगठन स्तर और विधायी स्तर पर दावेदार को मिलने वाले समर्थन की पूरी जांच करता है।
* बता दें कि जब पार्टी में दो खेमों में बट जाती है या यह पता लगाना मुश्किल हो कि किसी खेमे के पास बहुमत हैं, तो चुनाव आयोग पार्टी के चिह्न को फ्रीज कर सकता है। चुनाव आयोग के पास ये अधिकार है। इसके साथ ही चुनाव आयोग दोनों खेमों को नए नाम के साथ रजिस्टर करने की इजाजत देता है। इसके अलावा गुट पार्टी के नाम में आगे या पीछे कुछ शब्द भी जोड़ सकता है।
https://youtu.be/aUHwzDTUFQA
* चुनाव आयोग पार्टी के संविधान और उसके द्वारा सौंपी गई पदाधिकारियों की लिस्ट की जांच पहले करता है। चुनाव आयोग संगठन में शीर्ष समिति के बारे में डिटेल में पता लगाता है और चेक करता है कि कितने पदाधिकारी, सदस्य बागी दावेदार को अपना समर्थन दे रहे हैं। वहीं, विधायी मामले में सांसदों और विधायकों की संख्या बड़ी महत्वपूर्ण होती है। चुनाव आयोग इन सदस्यों की ओर से दिए गए हलफनामों पर भी विचार कर सकता है।
* बता दें कि जांच के दौरान चुनाव आयोग ये कहते हुए किसी एक खेमे को मान्यता दे सकता है कि उन्हें संगठन और विधायक-सांसदों का पर्याप्त समर्थन हासिल है, जिसकी वजह से उस खेमे को नाम और चिह्न मिलना चाहिए। इसके साथ ही चुनाव आयोग दूसरे खेमे को अलग राजनीतिक दल के रूप में रजिस्टर करने की अनुमति दे सकता है।
* अगर कोई पार्टी दो गुटों में बट गई है और भविष्य में वह एकसाथ आ जाते हैं, तो भी उन्हें चुनाव आयोग को इसके बारे में बताना होगा। वह चुनाव आयोग के सामने एकजुट पार्टी के तौर पर मान्यता पाने के लिए आवेदन कर सकते हैं। चुनाव आयोग के पास दो गुटों का विलय कर एक पार्टी बनाने का भी अधिकारी है। इसके साथ ही चुनाव आयोग पार्टी के चिह्न और नाम को दोबारा से बहाल कर सकता है।
मिली जानकारी के मुताबिक, मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने कहा कि पहले ही एक स्थापित प्रोसेस है। वह प्रोसेस हमें अधिकार देती है और हम ‘बहुमत का नियम’ लागू करके इसे बेहद पारदर्शी प्रोसेस के तौर पर परिभाषित करते हैं। इस मामले पर जब भी हम गौर करेंगे तो ‘बहुमत का नियम’ ही लागू करेंगे। सुप्रीम कोर्ट का फैसला पढ़ने के बाद यह किया जाएगा।

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