जस्टिस विनय जोशी और जस्टिस एसए मेनेजेस की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता पिता के खिलाफ आईपीसी की धारा 363 (अपहरण) के तहत दर्ज मामले को रद्द कर दिया। 35-वर्षीय याचिकाकर्ता और उसकी पत्नी अलग रहते है। जबकि तीन साल का बेटा मां के साथ रहता था। कथित तौर शख्स अपने तीन साल के बेटे को उसकी मां के पास से ले आया। जिसके बाद महिला की शिकायत पर अमरावती पुलिस ने 29 मार्च 2023 को अपहरण का मामला दर्ज कर लिया। इसके मामले के खिलाफ पिता ने कोर्ट का रुख किया।
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कोर्ट ने 6 अक्टूबर को फैसले में कहा कि किसी भी जैविक पिता पर अपने ही बच्चे के अपहरण का मामला सिर्फ इसलिए दर्ज नहीं किया जा सकता, क्योंकि वह बच्चे को उसकी पत्नी से जबरन लाया है। आदेश में कहा गया है कि मौजूदा मामले में याचिकाकर्ता बच्चे का प्राकृतिक (स्वाभाविक) अभिभावक है। इसके अलावा वह मां के साथ-साथ बच्चे का वैध अभिभावक भी है। कोर्ट ने दलीलों को सुनने के बाद अपने फैसले में कहा, यह पूरी तरह से स्पष्ट है कि पिता नाबालिग का स्वाभाविक अभिभावक है। जबकि यह ऐसा मामला भी नहीं है कि मां (बच्चे की) को किसी कोर्ट के आदेश पर कानूनी रूप से नाबालिग बच्चे की देखभाल करने को कहा था या उसकी अभिरक्षा सौंपी थी।
इन तथ्यों के आधार पर हाईकोर्ट ने माना कि याचिकाकर्ता के खिलाफ प्रथम दृष्टया कोई मामला नहीं बनता है। इस तरह के अभियोजन को जारी रखना कोर्ट की प्रक्रिया का दुरुपयोग है। इसलिए पिता (याचिकाकर्ता) के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द किया जाता है।