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स्मृति शेष : ‘मैं इसी तरह जीना पसंद करती हूं, देखना एक दिन चुपचाप चली जाऊंगी’

Sushma Swaraj: सादगी के जीना और दूसरों को प्रेरित करना, ऐसी ही थी सुषमा स्वराज. पत्रिका समूह से हमेशा रहा विशेष लगाव

मुंबईAug 07, 2019 / 10:14 am

arun Kumar

स्मृति शेष : ‘मैं इसी तरह जीना पसंद करती हूं, देखना एक दिन चुपचाप चली भी जाऊंगी’

 
राजेश कसेरा.मुम्बई :

पत्रिका समूह में काजकाज करने के दौरान चार बार ऐसे अवसर आए, जब सुषमा स्वराज जी से मिलने का अवसर मिला। उनसे सबसे बड़ी याद उदयपुर संस्करण से जुड़ी हैं। यहां पत्रिका ने पासपोर्ट सेवा केन्द्र की स्थापना के लिए बड़ी मुहिम छेड़ी थी। सिलसिलेवार कई खबरें प्रकाशित कर जनभावनाओं को विदेश मंत्रालय और विदेश मंत्री तक पहुंचाने और उनका ध्यान आकृष्ट करने का काम किया था। उस समय लगातार समाचारों को सुषमाजी के हैंडल पर ट्वीट करते थे। पूरी फ़ाइल भी उन तक गई। उन्होंने बकायदा दिल्ली से मुझे फ़ोन किया और कहा कि उदयपुर में पीएसके (पासपोर्ट सेवा केंद्र) जरूर स्थापित होगा और वे स्वयं इसके उदघाटन के लिए आएंगी। विदेश मंत्री का इस तरह से फ़ोन करना और सरलता और सहजता से न सिर्फ बात करना, बल्कि आमजन के प्रति इतनी प्रतिबद्धता दर्शाना, मेरे लिए भी रोचक और अविस्मरणीय अनुभव था। क्योंकि डेढ़ दशक के पत्रकारिता के काल में कभी ऐसा राजनेता नहीं देखा, जो दिल से संवाद करने का साहस दिखाता हो।
याद है वो सहज भाव

यही भाव उन्होंने पीएसके के उदघाटन अवसर पर दिखाया। करीब आधा घंटा उनके साथ रहा। खूब चर्चा हुई। हंसते-मुस्कुराते हुए बार-बार मेरे कंधे पर हाथ रखकर सहजता का भाव दिखाया। मैंने पल भर भी महसूस नहीं किया कि देश की विदेश मंत्री के साथ हूं। उनकी शख्सियत ने काफी प्रभावित किया। चर्चा के दौरान ही मैंने झट से सवाल रख दिया, आपका इस तरह का स्वभाव आपको कई बार परेशानी में डाल देता होगा? हल्की मुस्कुराहट के साथ धीमे से कहा, मैं इसी तरह जीना पसंद करती हूं, देखना एक दिन इसी तरह से चुपचाप चली भी जाऊंगी। पत्रिका समूह को लेकर बहुत बातें कीं। बोला, यह तो अपना अखबार है। पत्रिका लोगों की आवाज़ बनकर काम करता है और इसी तरह से आगे भी करता रहे, ऐसी अपेक्षा है। उन्होंने यह भी कहा कि आपके चेयरमैन गुलाब कोठारी जी को भी बोलना, पत्रिका के अभियान को मैंने परिणाम तक ला दिया।
खामोशी के साथ अलविदा

उस समय तो सबने हंसते हुए उनकी स्वाभाविक प्रतिक्रिया को अनदेखा कर दिया, पर उनके आकस्मिक निधन की सूचना के बाद उनके कहे वे शब्द अचानक दस्तक देने लगे। वे खामोशी के साथ सबको अलविदा बोलकर चली गईं। किसी को पता भी नहीं चलने दिया और जीवन की अनंत यात्रा निकल गईं। आपके साथ हुई मुलाकातें सदैव सहज बनने और दूसरों के लिए कुछ करने के लिए रास्ता दिखाती रहेंगी। आपका आखिरी ट्वीट पढ़ा जिसमें आपने लिखा कि आपने इतिहास बनते देखा, पर आप जो राजनीति का इतिहास छोड़कर गई हैं, उम्मीद है वह आने वाली पीढ़ी को जरूर प्रेरणा देगा। इसी शब्दांजलि के साथ ईश्वर से यही प्रार्थना है कि वह आपकी पुण्यात्मा को हृदय में स्थान दे।

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