सीजेआई (भारत के मुख्य न्यायाधीश) डीवाई चंद्रचूड़ ने सुनवाई के दौरान कहा कि विधानसभा अध्यक्ष पर भरोसा किया जाना चाहिए। संविधान पीठ में जस्टिस एम आर शाह, जस्टिस कृष्ण मुरारी, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पी एस नरसिम्हा भी हैं। सुप्रीम कोर्ट से उद्धव ठाकरे शिवसेना की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने महाराष्ट्र में राजनीतिक संकट संबंधी मामलों को सात सदस्यीय पीठ के पास भेजे जाने का अनुरोध किया, ताकि अयोग्यता संबंधी याचिकाओं के निपटारे के लिए विधानसभा अध्यक्षों की शक्तियों से जुड़े 2016 के फैसले पर फिर से विचार किया जा सके।
क्या है नबाम रेबिया मामला?
सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 2016 में नबाम रेबिया मामले पर फैसला सुनाते हुए कहा था कि यदि विधानसभा अध्यक्ष को हटाने के लिये पहले दिये गए नोटिस पर सदन में निर्णय लंबित है, तो विधानसभा अध्यक्ष विधायकों की अयोग्यता संबंधी याचिका पर आगे की कार्यवाही नहीं कर सकते।
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कपिल सिब्बल ने प्रधान न्यायाधीश (CJI) के नेतृत्व वाली 5 जजों की पीठ से यह मामला सात जजों की संविधान पीठ के पास भेजने की मांग की। सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा पूर्व में दिए गए एक फैसले (नबाम रेबिया केस) पर पुनर्विचार का अनुरोध किया, जो कि 5 जजों की संविधान पीठ थी। हालांकि सिब्बल ने आज कोर्ट के सामने तर्क दिया कि अरुणाचल प्रदेश से जुड़ा नबाम रेबिया केस महाराष्ट्र के मामले में लागू नहीं होगा। लेकिन शिंदे समूह के वकील हरीश साल्वे ने उनके दावों का खंडन किया।क्या है नबाम रेबिया मामला?
सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 2016 में नबाम रेबिया मामले पर फैसला सुनाते हुए कहा था कि यदि विधानसभा अध्यक्ष को हटाने के लिये पहले दिये गए नोटिस पर सदन में निर्णय लंबित है, तो विधानसभा अध्यक्ष विधायकों की अयोग्यता संबंधी याचिका पर आगे की कार्यवाही नहीं कर सकते।
7 जजों की संविधान पीठ के पास भेजने की मांग क्यों?
गौरतलब हो कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले शिवसेना के बागी विधायकों के लिए यह निर्णय विधानसभा के उपाध्यक्ष नरहरि सीताराम जिरवाल को हटाने संबंधी नोटिस लंबित होने के आधार पर शीर्ष कोर्ट में लाभकारी साबित हुआ।
बीते साल जून महीने में शिवसेना विधायक शिंदे और 39 अन्य विधायकों द्वारा पार्टी के नेतृत्व के खिलाफ बगावत करने के बाद राज्य में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महाविकास आघाड़ी (एमवीए) सरकार गिर गई थी। एमवीए सरकार में शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) और कांग्रेस शामिल थीं। इस बगावत से शिवसेना दो धड़ों में बंट गई और ठाकरे के नेतृत्व वाला गुट और शिंदे के नेतृत्व वाला गुट अलग हो गया। बाद में एकनाथ शिंदे ने बीजेपी के साथ मिलकर शिवसेना विधायकों (बागी) के समर्थन से महाराष्ट्र में नई सरकार का गठन किया।