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शिवसेना किसकी? सिर्फ सांसदों और विधायकों का समर्थन काफी नहीं, जानें किस आधार पर चुनाव आयोग लेगी फैसला

Shiv Sena Crisis: हाल ही में शिंदे खेमे ने चुनाव आयोग को बताया है कि 55 में से 40 विधायक, विभिन्न एमएलसी और 18 में से 12 सांसद उनके साथ हैं। साथ ही आयोग को पत्र लिखकर पार्टी का ‘धनुष-बाण’ चुनाव चिह्न उसे देने का अनुरोध किया। इसमें शिंदे गुट ने लोकसभा और महाराष्ट्र विधानसभा में उसे मिली मान्यता का हवाला दिया है।

मुंबईJul 23, 2022 / 06:41 pm

Dinesh Dubey

Eknath Shinde and Uddhav Thackeray

एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे

Maharashtra Political Crisis: महाराष्ट्र में शिवसेना और उसके चिन्ह धनुष-बाण के लिए उद्धव ठाकरे गुट बनाम एकनाथ शिंदे गुट की लड़ाई और तेज होने की संभावना है। दरअसल चुनाव आयोग ने दोनों धड़ों को शिवसेना में बहुमत होने के अपने दावे को साबित करने के लिए दस्तावेजी सबूत पेश करने को कहा है। दोनों समूहों को 8 अगस्त तक यह काम निपटाना होगा और फिर उसके बाद चुनाव आयोग शिवसेना में मचे संग्राम को लेकर सुनवाई करेगा।
चुनाव आयोग के इस कदम पर प्रतिक्रिया देते हुए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा “दोनों पक्ष चुनाव आयोग के सामने अपनी भूमिका रखेंगे। विधानसभा में दो तिहाई से ज्यादा लोग हमारे साथ हैं। हम बालासाहेब की शिवसेना हैं। यहां के स्पीकर ने हमें मान्यता दी है। इसका मतलब साफ है कि हम शिवसेना हैं बालासाहेब के विचार वाली शिवसेना हैं।“
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वहीँ शिवसेना (उद्धव गुट) के मुख्य प्रवक्ता और सांसद संजय राउत ने कहा “ये बालासाहेब ठाकरे जी की शिवसेना है जो महाराष्ट्र के अन्याय के खिलाफ 56 साल पहले बनी थी। हमारे हजारों शिवसैनिक महाराष्ट्र और हिंदुत्व के लिए शहीद हो गए और आप हमसे सबूत मांगते हो कि आपकी शिवसेना असली है या नकली। देश की नहीं राज्य की जनता भी जवाब देगी।“

दोनों गुटों ने EC को पत्र लिखकर पेश किया दावा

हाल ही में शिंदे खेमे ने चुनाव आयोग को बताया है कि 55 में से 40 विधायक, विभिन्न एमएलसी और 18 में से 12 सांसद उनके साथ हैं। साथ ही आयोग को पत्र लिखकर पार्टी का ‘धनुष-बाण’ चुनाव चिह्न उसे देने का अनुरोध किया। इसमें शिंदे गुट ने लोकसभा और महाराष्ट्र विधानसभा में उसे मिली मान्यता का हवाला दिया है।
वहीं, उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाले शिवसेना गुट ने भी चुनाव आयोग को पत्र लिखकर अनुरोध किया कि वह पार्टी के नाम और चुनाव चिह्न पर दावे से जुड़े किसी भी आवेदन पर फैसला लेने से पहले उसका पक्ष सुने। साथ ही शिंदे गुट द्वारा ‘शिवसेना’ या ‘बाला साहब’ नामों का उपयोग करके किसी भी राजनीतिक दल की स्थापना पर भी आपत्ति जताई है।

अब आगे क्या हो सकता है?

जब दो गुट एक ही चुनाव चिह्न् पर दावा पेश करते हैं, तो चुनाव आयोग सबसे पहले पार्टी के संगठन और उसके विधायिका विंग के भीतर प्रत्येक गुट के समर्थन की जांच करता है। ऐसे मामलों में आयोग पार्टी के चुनाव चिह्न् को भी जब्त कर सकता है और दोनों गुटों को नए नामों और प्रतीकों के साथ रजिस्टर्ड करने के लिए कह सकता है। चुनाव आयोग को यह शक्ति चुनाव चिह्न (आरक्षण और आवंटन) आदेश, 1968 के पैरा-15 से मिलती है।
हालांकि अभी महाराष्ट्र में बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) समेत कई नगर निकायों में चुनाव होने हैं। तो चुनाव के नजदीक होने की स्थिती में आयोग दोनों खेमों को एक अस्थायी चुनाव चिह्न् चुनने के लिए कह सकता है। यहां जानना जरूरी है कि देश की शीर्ष कोर्ट ने बुधवार को महाराष्ट्र के राज्य निर्वाचन अयोग को दो हफ्ते में स्थानीय निकायों के चुनावों को अधिसूचित करने का निर्देश दिया है।

चुनाव आयोग कैसे लेगी निर्णय?

किसी भी राजनीतिक दल में बंटवारे की स्थिति में चुनाव आयोग सबसे पहले यह देखता है कि प्रत्येक गुट को पार्टी के संगठन और उसके विधायिका विंग में कितना समर्थन प्राप्त है। फिर यह राजनीतिक दल के भीतर शीर्ष समितियों और निर्णय लेने वाले निकायों की पहचान करता है और यह देखा जाता है कि उसके कितने सदस्य या पदाधिकारी किस गुट के पक्ष में खड़े हैं। इसके बाद यह खेमे में मौजूद सांसदों और विधायकों की संख्या की गणना की जाती है।
कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार, पार्टी के रूप में मान्यता प्राप्त करने के लिए सिर्फ 2/3 विधायकों का होना ही पर्याप्त नहीं होता है। जो गुट दावा करता है, उसे चुनाव आयोग के समक्ष पार्टी के सभी पदाधिकारियों, विधायकों और संसद सदस्यों का बहुमत प्राप्त है, यह साबित करना होगा ताकि चुनाव चिन्ह आवंटित किया जा सके। इसके बाद भी यदि वह निर्णय से संतुष्ट नहीं हो तो वह अदालत का दरवाजा खटखटा सकते हैं।
सांसदों और विधायकों की संख्या के अलावा पार्टी के विभिन्न निर्णय लेने वाले निकाय, अन्य निर्वाचित शाखाएं जैसे कि ट्रेड यूनियन, महिला विंग, युवा विंग, पार्टी के सदस्यों की संख्या, एक्टिव सदस्य आदि भी बहुत महत्वपूर्ण होता है। इस दौरान चुनाव आयोग यह भी देखता है कि किस गुट ने पार्टी के संविधान का पालन सही तरीके से किया है।
विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि शिवसेना पर दावा मजबूत करने के लिए उद्धव ठाकरे को चुनाव आयोग के सामने यह दिखाना होगा कि पार्टी और उसकी विभिन्न शाखाओं पर उनका अधिक नियंत्रण है और उनका गुट ही असली शिवसेना पार्टी है।

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