मादा तेंदुआ सी33-डेल्टा संजय गांधी नेशनल पार्क और आरे मिल्क कालोनी के बीच ही घूमती-फिरती रहती है, लेकिन उसका मिल पाना न के ही बराबर है क्योंकि इंसानों के नजदीक आना उसे बिल्कुल पसंद नहीं हैं। वहीं, 10 अक्टूबर को सुबह के समय सुरक्षा कर्मियों को संजय गांधी नेशनल पार्क की सीमा से 100 मीटर की दूरी पर तेंदुए का एक छोटा सा बच्चा दिखाई दिया। जिसके बाद उस तेंदुए के बच्चे को उन्होंने वन विभाग के हवाले कर दिया। इसके बाद वन विभाग के अधिकारियों ने उस नन्हें से बच्चे को एसएनजीपी पशु चिकित्सालय में भेजा।
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बता दें कि 10 अक्टूबर की शाम से वन विभाग के अधिकारी बच्चे को उसकी मां से मिलाने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन उन्हें कामयाबी नहीं मिल पा रही थी। बच्चे को एक पिंजरे में डालकर जंगल के बीचोंबीच रखा गया था। चूंकि मादा तेंदुए के गले में जीपीएस ट्रैकर पट्टा था, जिसकी वजह से सीसीटीवी कैमरे में उसे इधर-उधर घूमते हुए तो देखा जा सकता था, लेकिन उसे पिंजरे के पास लाना काफी मुश्किल था। 11 अक्टूबर को भी वन विभाग के अधिकारी अपनी कोशिश जारी रखें। पिंजरे को जिस स्थान पर रखा गया था उसके आसपास पूरी की पूरी टीम छिपकर तैनात रही। चारों ओर कैमरे लगाए गए। लेकिन इस दिन भी मां अपने बच्चे के पास नहीं आ सकी। अगले दिन करीब पौने चार बजे मादा तेंदुआ पिंजरे के पास पहुंच गई। मां के बच्चे के नजदीक आते ही वन विभाग के अधिकारियों ने रस्सी से पिंजरे के दरवाजे को खोल दिया और बच्चा दौड़कर अपनी मां से आकर चिपक गया। मां भी इतने दिन बाद अपने बच्चे से मिलकर उसे दुलारती रही, फिर महज चंद मिनटों में उसे लेकर जंगल में गायब हो गई।
बता दें कि पिछले साल आरे कालोनी में इंसानों की बस्ती में तेंदुए के लगातार हमले होने की खबर मिली थी। इसके बाद वन विभाग ने तेंदुए को पकड़ने के लिए प्लान बनाया, जिसके बाद मादा तेंदुआ सी33 डेल्टा को पकड़ा गया। लेकिन उसके पकड़े जाने के बाद भी अक्सर हमले होते रहे, तब जाकर पता चला कि सी33 डेल्टा का इन हमलों में कोई हाथ नहीं है। बाद में वन विभाग की टीम ने उसके गले में ट्रैकर पहनाकर उसे छोड़ दिया। हमले का दौर उस समय समाप्त हुआ था जब मादा तेंदुआ सी32 वन विभाग के लगाए पिंजरे में कैद हुई थी।