पिछली बार यह सीट शिवसेना ने जीता था इसलिए इस सीट पर दावा शिवसेना का है। जब एकनाथ शिंदे यह कहते हैं कि उनका गुट ही असली शिवसेना है तो उन्होंने ठाकरे गुट के सामने अपना उम्मीदवार खड़ा क्यों नहीं किया? बीजेपी के लिए यह सीट क्यों छोड़ दी? इसकी कई वजहें हो सकती हैं।
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इस बार बीजेपी की तरफ से उम्मीदवार मुरजी पटेल ने पिछली बार बीजेपी से बगावत की थी और निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा था। शिवसेना ने उन्हें 45 हजार मतों से हराया था। पिछली बार मुरजी पटेल दूसरे नंबर पर रहे। इस लिहाज से अगर ठाकरे गुट ने दिवंगत विधायक की पत्नी को उम्मीदवार बनाया तो बीजेपी ने दूसरे नंबर पर रहे उम्मीदवार को टिकट दे दिया हैं। बता दें कि एकनाथ शिंदे की रणनीति थी कि या तो ऋतुजा पटेल शिंदे खेमे से चुनाव लड़े, या चुनाव नहीं लड़ें। लेकिन ऐसा नहीं हो सका। ऋतुजा ठाकरे गुट से चुनाव लड़ रही हैं। ऐसे में दिवंगत विधायक की विधवा होने के चलते ऋतुजा लटके को सहानुभूति वोट मिलने की भी आशंका है। शिवसेना के मतों का बंटवारा हुआ तो पलड़ा ऋतुजा लटके के पक्ष में झुक सकता हैं। ऐसे में जो बीजेपी और शिंदे गुट के वोट के साथ केंद्रीय मंत्री रामदास आठवले की पार्टी आरपीआई के दलित वोट का गणित मुरजी पटेल के लिए उम्मीदें जगाता है। यही कारण है कि शिंदे खेमा बैकफुट में चला गया।
आज ऋतुजा लटके की उम्मीदवारी की अर्जी भरने से पहले शक्ति प्रदर्शन के समय मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष भाई जगताप भी आए थे। एनसीपी तो पहले से ही ठाकरे गुट के साथ ही थी। ऐसे में शिंदे गुट ने सही गणित बैठाया कि जब अकेले शिवसेना पिछली बार चुनाव जीत सकती है, इस बार तो कांग्रेस और एनसीपी भी उनके साथ है। ऐसे में पिछली बार दूसरे नंबर पर रहे मुरजी भाई की बीजेपी से उम्मीदवारी को सपोर्ट करना ही ठीक है।
अंधेरी पूर्व विधानसभा क्षेत्र में मराठियों के अलावा दलित, मारवाड़ी, मुसलमान और गुजराती मतदाता की भी अच्छी-खासी तादाद है। ऐसे में अगर दिवंगत शिवसेना विधायक का वोट बैंक सहानुभूति की वजह से नहीं बंटा और वह ऋतुजा लटके के पक्ष में चला गया तो शिंदे गुट तो लटक गया। इस बार तो कांग्रेस-एनसीपी को समर्थन करते हुए आए मुस्लिम और क्रिश्चियन वोटर्स भी ठाकरे गुट की ऋतुजा लटके को सपोर्ट करेंगे।
बता दें कि दूसरी तरफ भले ही उद्धव ठाकरे गुट के पास चुनाव चिन्ह नया है। लेकिन दिवंगत विधायक ने जमीन तैयार कर रखी है। सहानुभूति की सिंचाई से बस ऋतुजा लटके के हाथों जीत की फसल काटना आसान है। हां, अगर ऋतुजा शिंदे गुट में शामिल हो जातीं तो शिंदे गुट के लिए राहें बहुत आसान हो जातीं। लेकिन शिंदे गुट को नए चुनाव चिन्ह और नए उम्मीदवार के साथ लड़ाई लड़ना मुश्किल था।