शमिता ( बदला हुआ नाम ) के पास तीन बच्चें है, उसने बताया कि हम तो पहले से ही बेसहारा हैं अगर लॉक डाउन ऐसे ही रहा तो हम सब भूखे मर जाएंगे। उसने बताया कि यहां पर निचले तबके के लोग ही आते हैं इस लिए दिन की कमाई दो से तीन सौ रूपये तक ही हो पाती है, इन पैसों में घर चलाना मुश्किल होता है। सेक्स वर्करों के लिए काम करने वाली संस्था सोशल एक्टिव्हीटीज इंटिग्रेशन के संस्थापक विनय वस्त ने बताया कि सेक्स वर्करों के पास राशन कार्ड नहीं है इस लिए ये सरकारी सहायता की भी पात्र नहीं बनती। विनय वस्त 1991 से इन इलाकों में काम कर रहे हैं। वे सेक्स वर्करों के बच्चों के लिए एक स्कूल चलाते हैं जिसमें 45 बच्चे हैं, उनको प्रतिदिन भोजन का पैकेट भी देते रहे हैं अब स्कूल बंद है तो करीब दो सौ पैकेट प्रतिदिन जरूरतमंद सेक्स वर्करों को दे रहे हैं। उनका कहना है कि इससे कुछ नहीं होगा , यहां तो कोरोना महामारी भूखमरी बनती जा रही है।