यह कहानी है भोपाल शहर की मुंहफट और बिंदास लड़की एनी यानी अनीता (आथिया शेट्टी) की। छोटे शहर की एनी का सपना है विदेश में शादी करके बसना। वह ऐसा इसलिए करती है, क्योंकि उसकी सहेलियां विदेशों में सेटल्ड हैं। परेशानी यह है कि एनी को कोई लड़का ही नहीं मिलता। तभी कहानी में एंट्री होती है पुष्पिंदर (नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी) की। दुबई से लौटा पुष्पिंदर 36 साल का है और अब तक कुंवारा है, क्योंकि उसकी मां को दहेज में ढेर सारे पैसे चाहिए। अब उसके लिए रिश्ते ही नहीं आ रहे हैं। जहां एनी को विदेश ले जानेवाला दूल्हा चाहिए, वहीं पुष्पिंदर को शादी के लिए कोई भी लड़की। अपनी-अपनी मजबूरियों के चलते दोनों क़रीब आते हैं। पर कहानी में बड़ा ट्विस्ट तब आता है, जब पता चलता है कि पुष्पिंदर की दुबई वाली नौकरी जा चुकी है। क्या इसके बाद भी दोनों का रिश्ता टिका रहेगा? जानने के लिए देखें फ़िल्म मोतीचूर चकनाचूर। फ़िल्म की कहानी भले ही साधारण है और आगे क्या होगा वाला फैक्टर काम नहीं करता, पर फ़िल्म का ट्रीटमेंट ऐसा है कि वो आपको ख़ूब गुदगुदाता है। हां, फ़िल्म देखते समय यह एहसास होता है कि कहानी को ज़बर्दस्ती खींचा गया है। अगर कहानी का लेंथ थोड़ा कम किया जा सकता तो बेहतर होता।
नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी कमाल के अभिनेता हैं। इस फ़िल्म में उन्होंने इस बात को एक बार फिर साबित किया है। 36 साल का कुंवारा लड़का कैसा होगा, उसके दिमाग़ में क्या कुछ चल रहा होगा, नवाज़ ने बेहतरीन ढंग से प्रदर्शित किया है। लीड ऐक्ट्रेस अथिया शेट्टी ने भी छोटे शहर की लड़की की मानसिकता और हावभाव को तरीक़े से पकड़ा है। उन्होंने मालवा की भाषा का टोन ढंग से पकड़ा, जिसके चलते कुछ सीन्स में उनकी ओवरऐक्टिंग नज़रअंदाज़ की जा सकती है। उम्र में फ़र्क़ होने के बाजवूद नवाज़ और आथिया की केमिस्ट्री अच्छी लगती है। सपोर्टिंग कलाकारों ने भी नपा-तुला अभिनय किया है। औसत गीत-संगीत के बावजूद बेहतरीन स्टार कास्ट, संतुलित अभिनय, अच्छी सिनेमैटोग्राफ़ी और संवाद के चलते फ़िल्म अच्छी बन पड़ी है। छोटी-मोटी ख़ामियों को अनदेखा करके इस फ़िल्म को देखेंगे तो आपका अच्छा-ख़ासा मनोरंजन होगा।