हैदराबाद रियासत के भारतीय संघ में ऐतिहासिक विलय के उपलक्ष्य में हर साल 17 सितंबर को हैदराबाद मुक्ति दिवस मनाया जाता है। ‘ऑपरेशन पोलो’ के नाम से जाना जाने वाला यह दिन पुलिस कार्रवाई का प्रतीक है। जिससे 1948 में निजाम के दमनकारी शासन का अंत किया गया था।
हैदराबाद रियासत
भारत को अंग्रेजों से आजादी मिलने के एक साल से ज्यादा समय बाद 17 सितंबर 1948 को हैदराबाद निजाम शासन से आजाद हुआ। निजाम के शासनकाल में हैदराबाद रियासत में आज का पूरा तेलंगाना, महाराष्ट्र का मराठवाडा क्षेत्र (जिसमें औरंगाबाद, बीड, हिंगोली, जालना, लातूर, नांदेड, उस्मानाबाद, परभणी जिले है), कर्नाटक का कलबुर्गी, बेल्लारी, रायचूर, यादगिर, कोप्पल, विजयनगर और बीदर जिले शामिल थे।जन आंदोलन से टूटी निजाम शासन की कमर
1947 में शेष भारत के स्वतंत्र होने के बाद भी हैदराबाद राज्य के लोगों को स्वाधीनता के लिए 13 और महीने का इंतजार करना पड़ा। इस दौरान वहां की आम जनता को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। किसानों ने अपने अधिकारों की रक्षा के लिए सशस्त्र संघर्ष किया। यह दुनिया का एकमात्र ऐसा संघर्ष था जिसमें किसानों को अपनी जमीन पर उचित अधिकार पाने के लिए हथियार उठाने पड़े थे। यह भी पढ़ें
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दरअसल भारत की आजादी के बाद हैदराबाद रियासत को भारत में मिलाने का संघर्ष मुखर हो गया। वंदे मातरम् गाते हुए लोग जुड़ते गए और इस आंदोलन में जन भागीदारी अपार हो गयी। कुछ समय में यह संघर्ष हैदराबाद रियासत के भारतीय संघ में विलय की मांग के साथ एक विशाल जन आंदोलन बन गया। इस वजह से हैदराबाद रियासत की कुर्सी डगमगाने लगी।5 दिन और… निजाम शासन खत्म
हैदराबाद की मुक्ति में भारत के प्रथम गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल का योगदान बेहद अहम रहा। उनके ‘ऑपरेशन पोलो’ के तहत त्वरित और समय पर की गई कार्रवाई के कारण यह संभव हुआ। तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने हैदराबाद रियासत के भारतीय संघ में विलय के लिए पुलिसिया कार्रवाई का आदेश दे दिया। भारतीय सेना ने निजाम शासन और उनकी निजी सेना के राजाकारों के खिलाफ पांच दिनों तक कार्रवाई की और यह सपना हकीकत बन गया। सैन्य अभियान में परास्त होने के बाद आखिरकार आसफ जाह वंश के अंतिम निज़ाम, मीर उस्मान अली खान ने 17 सितंबर 1948 में विलय समझौते पर हस्ताक्षर किये। इस वजह से महाराष्ट्र और कर्नाटक की राज्य सरकारें आधिकारिक तौर पर 17 सितंबर को ‘मुक्ति दिवस’ के रूप में मनाती हैं। सही मायनों में यह दिन मराठवाडा क्षेत्र के लिए स्वतंत्रता दिवस से कम नहीं है।