महाराष्ट्र विधानसभा के विशेष सत्र से पहले मंगलवार सुबह एकनाथ शिंदे की अध्यक्षता में कैबिनेट बैठक हुई। इसमें पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट को मंजूरी दे दी गई। रिपोर्ट में मराठा समुदाय को दस फीसदी आरक्षण देने की सिफारिश की गई है। कुछ ही देर में विशेष सत्र में मराठा आरक्षण बिल पेश किया जाएगा। हाल ही में महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा आयोग के मुख्य न्यायाधीश शुक्रे ने मराठा समुदाय की सामाजिक और वित्तीय स्थिति पर आयोग की सर्वेक्षण रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंपी थी।
रिपोर्ट में क्या है?पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि मराठा समुदाय पिछड़ा हुआ है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि ऐसी असाधारण परिस्थितियाँ भी हैं जिनमें 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण की आवश्यकता होती है। राज्य में 28 फीसदी लोग मराठा समुदाय से है। मराठा शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण की मांग कर रहे हैं।
आयोग ने रिपोर्ट में कहा है कि राज्य में अभी मौजूदा लगभग 52 प्रतिशत आरक्षण में बड़ी संख्या में जातियाँ और समूह शामिल है। राज्य की बड़ी आबादी पहले से ही आरक्षित श्रेणी का हिस्सा हैं। ऐसे मराठा समुदाय, जो राज्य में 28 प्रतिशत है, को अन्य पिछड़ा वर्ग में रखना असामान्य होगा।
विशेष सत्र में अंतिम मुहर
मराठा समुदाय की विभिन्न मांगों पर चर्चा के लिए आज (20 फरवरी) विधानसभा का एक दिवसीय विशेष सत्र बुलाया गया है। मनोज जरांगे की मांग है कि कुनबी मराठों के रक्त संबंधियों को कुनबी जाति प्रमाणपत्र देने को लेकर मसौदा अधिसूचना को कानून में बदलने के लिए विशेष सत्र बुलाया जाए।
मालूम हो कि पिछले एक साल में चार बार मनोज जरांगे मराठा समुदाय को ओबीसी समूह के तहत आरक्षण दिलवाने की मांग को लेकर भूख हड़ताल कर चुके हैं।
मराठों को मिलेगा स्थायी आरक्षण!
पिछले महीने सीएम शिंदे ने ऐलान किया था कि जब तक मराठों को आरक्षण नहीं मिल जाता है, तब तक उन्हें ओबीसी को मिल रहे सभी लाभ मिलेंगे। इस संबंध में राज्य सरकार ने एक मसौदा अधिसूचना भी जारी की है, जिसमें कहा गया कि अगर किसी मराठा व्यक्ति के रक्त संबंधी के पास यह दर्शाने के लिये रिकॉर्ड है कि वह कृषक कुनबी समुदाय का है, तो उसे भी कुनबी के रूप में मान्यता दी जाएगी।
कृषक समुदाय ‘कुनबी’ ओबीसी के अंतर्गत आता है और जरांगे भी सभी मराठों के लिए कुनबी प्रमाणपत्र मांग रहे है। जिससे सभी मराठों को राज्य में ओबीसी श्रेणी के तहत आरक्षण मिल सके। गौरतलब हो कि महाराष्ट्र सरकार ने 2018 में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग के लिए महाराष्ट्र राज्य आरक्षण अधिनियम लागू किया था जिसमें मराठा समुदाय को शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण देने का प्रावधान था। हालांकि, इसे बॉम्बे हाईकोर्ट ने सही ठहराया था। लेकिन बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया।