मराठा आरक्षण की मांग को लेकर जालना जिले के अंबड तालुका के अंतरवाली सराटी गांव में भूख हड़ताल पर बैठे मराठा नेता मनोज जरांगे पाटिल (Manoj Jarange Patil) अपनी मांग पर अड़े हुए है। उन्होंने राज्य सरकार को मराठा आरक्षण को लागू करने का अल्टिमेटम दिया है। पाटिल ने मांग की है कि मराठवाडा के मराठों को कुनबी प्रमाणपत्र दिया जाए और ओबीसी आरक्षण में शामिल किया जाए। हालाँकि माना जा रहा था कि सीएम शिंदे आज इसे लेकर कोई बड़ी घोषणा करेंगे। लेकिन मुख्यमंत्री ने फ़िलहाल इस संबंध में कोई ठोस रुख नहीं अपनाया है।
यह भी पढ़ें
Maratha Andolan: सीएम शिंदे बोले- मराठा समुदाय को मिलना चाहिए आरक्षण, फडणवीस ने लाठीचार्ज के लिए मांगी माफी
मराठा आंदोलन के बड़े चेहरे मनोज जरांगे ने कहा, मराठा आरक्षण का अध्यादेश लाया जाना चाहिए। सिर्फ बातचीत करने की बात कहने से काम नहीं चलेगा। सरकार ने मराठों को 100 प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला किया होगा। मनोज जरांगे ने विश्वास जताया कि जब सरकारी प्रतिनिधिमंडल उनके पास आएगा तो मराठा आरक्षण का विजय पत्र लेकर ही आएगा। उन्होंने कहा, “सरकार का प्रतिनिधिमंडल जीआर लेकर आयेगा और हम उनका इंतजार कर रहे हैं। लेकिन अगर जीआर नहीं आया तो आंदोलन वापस नहीं लिया जायेगा। अगर जीआर नहीं आया तो मान लीजिए कि कल से पानी भी छोड़ दिया जाएगा। मैं सरकारी प्रतिनिधियों का इंतजार करूंगा। उसके बाद मैं अपनी भूमिका जाहिर करूंगा…।“
मनोज जरांगे ने कहा “सरकार के पास दो दिन का समय हैं। मराठा डरे हुए नहीं हैं। हर किसी की रगों में ऊर्जा भरी है। मैं मराठा समुदाय को आरक्षण दिलवाकर ही रुकूंगा। हमें जानकारी मिली है कि सरकार का प्रतिनिधिमंडल आ रहा है। यह प्रतिनिधिमंडल हमें जो जानकारी देगा, उसे हम ग्रामीणों के साथ साझा करेंगे और बैठक कर आगे का निर्णय लेंगे। इस बैठक में आंदोलन की आगे की दिशा तय की जाएगी।”
इससे पहले सीएम एकनाथ शिंदे ने कहा, “मराठा आरक्षण पर आज हमने उच्च स्तरीय बैठक की। मैं पहले ही प्रदर्शनकारियों से बात कर चुका हूं और हम इस मुद्दे को व्यवस्थित तरीके से सुलझाएंगे। हमारी सरकार मराठा आरक्षण से जुड़े मुद्दों को सुलझाने के लिए गंभीर है। राज्य मंत्री गिरीश महाजन और अन्य मंत्री चर्चा के लिए जालना जाएंगे। हम इस मसले को बातचीत से ही सुलझा सकते हैं। राज्य सरकार मराठा समुदाय की मांगों पर गंभीरता से काम कर रही है।”
मालूम हो कि महाराष्ट्र सरकार ने मराठा समुदाय को नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण दिया था, लेकिन मई 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने अन्य आधारों के अलावा कुल आरक्षण का 50 प्रतिशत की ऊपरी सीमा का हवाला देते हुए इस फैसले को रद्द कर दिया था।